आरोही
आरोही
शाम के 5 बजे का समय था , आज अविरल ऑफिस से जल्दी आ गये थे तो पति पत्नी दोनों बैठ कर कॉफी पी रहे थे तभी अविरल ने कहा , ‘’ आरोही , अगले महीने में 5 दिनों का लंबा वीकेंड है, अपुन दोनों काश्मीर चलते हैं , एक दिन डल लेक में शिकारे पर बितायेंगें “,
“ मुझे स्नो फाल देखने की बचपन से बहुत बड़ी तमन्ना है। मैंने वेदर फोरकास्ट में देखा था श्रीनगर में स्नो फॉल बता रहा है।. वह उम्मीद भरी नजरों से पत्नी के चेहरे की ओर देख रहा था। आरोही आदतन अपने मोबाइल पर नजरें लगाये कुछ देख रही थी।
अविरल आईटी की मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर हैं ,उनकी ऑफिस की व्यस्तता लगातार बनी रहती थी.
पत्नी डॉ. आरोही सर्जन हैं। वह एस्कॉर्ट और मैक्स जैसे हॉस्पिटल में विजिटिंग डॉक्टर हैं , उन्होंने अपने घर पर भी क्लीनिक खोल रखा है। इसलिये यहाँ पर भी पेशेंट आते रहते हैं.
दोनों पति पत्नी अपनी अपनी दिनचर्या में बहुत बिजी रहते हैं.
. वह धीरे से वह बुदबुदायी ‘क्या? ‘ ‘तुम कुछ कह रहे थें.?”
“ आरोही तुम्हें भी सर्जरी से ब्रेक की जरूरत है और मैं भी दो चार दिन का ब्रेक चाहता हूँ इसीलिये मैंने पहले ही टिकिट और होटल में बुकिंग करवा ली है”
वह पति की बात को समझने की कोशिश कर रही थीं क्यों कि उस समय उसका ध्यान अपने फोन पर था।.
“आजकल लगता है कि लोग छुट्टियों की पहले से ही प्लानिंग करके रखते हैं। बड़ी मुश्किल से रैडिसन में रूम मिल पाया। एयरलाइन्स तो छुट्टी के समय टिकट का चारगुना दाम बढ़ा देते हैं।..”
“कहाँ की बुकिंग की बात कर रहे हो ? मुझे भी तो अपनी सर्जरी की डेट देखना पड़ेगा कि नहीँ...”
“तुमसे तो बात करने के लिये लगता है कुछ दिनों के बाद , मुझे भी पहले एप्वायंटमेंट लेना पडेगा।” वह रोष भरे स्वर में बोले थे.
वह तल्खी भरी आवाज में बोले , “श्रीनगर “
“श्रीनगर , वह भी दिसंबर में.... ना बाबा ना।.. मेरी तो कुल्फी दिल्ली में ही जमी रहती थी, (आरोही का मायका दिल्ली में ही है और तुम काश्मीर की बात कर रहे हो....”
“’तुम्हारे साथ तो कभी कोई छुट्टी का प्लान करना ही मुश्किल रहता है।.. कहीं लंबा जाने का सोच ही नहीं सकते। “
अविरल के मुँह से श्रीनगर का नाम सुनते ही आरोही का मूड ऑफ हो गया था।
“जब तुम जानते हो कि पहाड़ों पर जाने से मेरी तबियत खराब हो जाती है फिर भी तुम हिल्स पर ही जाने का प्रोग्राम बनाते हो।” “तुम्हें मेरी इच्छा से कोई मतलब ही नहीं रहता।”
“ मैंने कितनी बार तुमसे कहा है मुझे महाबलीपुरम् जाना है समुद्र के किनारे लहरों का शोर ,उनका अनवरत संघर्ष देख कर मुझे जीवन जीने की ऊर्जा सी मिलती है। लहरों का गर्जन तर्जन मुझे बहुत आकर्षित करता है।”
“हद् करती हो।.. रहती मुंबई में हो ,और सी बीच के लिये महाबलीपुरम जाना है ?”
“तुम्हें कुछ पता भी है यह शहर तमिलनाडु के सबसे सुंदर और लोकप्रिय शहरों में गिना जाता है। यहाँ 7वीं और 8वीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजाओं ने द्रविड़ शैली के नक्काशीदार अद्भुत मंदिर बनवायें थे , जिन्हें यूनेस्को ने विश्व धरोहर या वर्ड हेरिटेज में 1984 में शामिल किया है.... वह तुम्हें दिखाना चाहती हूँ।”
“मुझसे बिना पूछे तुमने क्यों बुकिंग करवाई ? जब कि तुम्हें मालूम है कि मुझे पहाड़ों पर जाना पसंद ही नहीं “....
“क्या तुमने कसम खा रखी है कि तुम वहीं का प्रोग्राम बनाओगे , जहाँ मुझे जाने में परेशानी होने वाली है।”
उन दोनों की शादी के 3 वर्ष हो चुके थे . दोनों की पसंद बिल्कुल अलग अलग है।. इसी वजह से आपस में अक्सर नोक झोंक हो जाया करती थी। और फिर दोनो के बीच आपस में कुछ दिनों तक के लिये बोलचाल बंद हो जाती थी।
आरोही ने गाड़ी की चाभी उठाई और बोली ,” अब बंद करो इस टॉपिक को ... कहीं नहीं जायेंगें .... आओ ,बाहर मौसम कितना सुहावना हो रहा है …चलते हैं कहीं आइसक्रीम खाकर आते हैं। थोड़ा ठंडी हवा में बैठेंगें, आज के ऑपरेशन ने मुझे बिल्कुल थका कर रख दिया है”
अविरल ने साफ मना कर दिया।.. “मुझे तुम्हारी तरह भटकना पसंद नहीं।”.
लगभग 15 दिनों तक दोनों के बीच बोलचाल बंद रही थी। एक दिन यूँ ही समझौता करने के लिये वह पति से कहने लगी ,” अविरल, हमारे यहाँ लोग सर्जरी से बचने के लिये वैद्य , हकीम के पास चक्कर काटते रहते हैं और जब बीमारी बढ कर लाइलाज हो जाती है “
“तो डॉक्टर से बार बार पूछते हैं ,” डॉक्टर साहब ये ठीक तो हो जायेंगें न “... पत्नी बेटे के चेहरे की मायूसी देख कर मेरा दिल दुख जाता है।”
“अवि प्लीज।. थियेटर में अमोल पालेकर का ड्रामा है . मैंने ऑनलाइन टिकट बुक कर लिये हैं। रात में 8 से 10 तक का है।
“मेरी तो इम्पॉर्टेंट मीटिंग है .”
“उफ अविरल तुम कितने बदल गये हो , पहले मेरे साथ आइसक्रीम पॉर्लर भी उछलते कूदते चल देते थे। अब तो जहाँ कहीं भी चलने को कहती हूँ , तुरंत मना कर देते हो।..
“बस भी करो आरोही मैं तो तुम्हें खुश करने के लिये तुम्हारे साथ चल देता था। मुझे पहले भी यहाँ वहाँ भटकना पसंद नहीं था।”
“शायद तुम्हें याद भी नहीं है कि आज मेरा बर्थ डे है , सुबह से मैं तुम्हारे मुँह से हैप्पी बर्थ डे सुनने का इंतजार कर रही थी लेकिन छोड़ो जब तुम्हें कोई इंटेरेस्ट नहीं तो अकेला चना कहाँ तक भाड़ झोंकता रहेगा”
कहती हुई उसने तेजी से कमरे के दरवाजे को बंद किया और लिफ्ट के अंदर चली गई थी।
उसकी आंखों से आँसू बह निकले थे। उसने अपने आंसू पोछे और लिफ्ट से बाहर आकर सोचने लगी कि अब वह कहाँ जाये ?
तभी उसका मोबाइल बज उठा था , उधर उसकी बहन अवनी थी , “हैप्पी बर्थ डे दी।..” “जीजू को आपका बर्थ डे याद था कि नहीं।..”
“उनके यहाँ यह सब चोंचले नहीं होते” कह कर वह खिसियाय़ी सी हँसी हँस दी”
“दी, क्या सारे आदमी एक ही तरह के होते हैं।. यहाँ रिषभ का भी यही हाल है।.. उसे भी कुछ नहीं याद रहता।.. इस बार तो एनिवर्सरी भी मैंने ही याद दिलाई तो महाशय को याद आई थी।.. “
वह जानती थी कि रिषभ इन सब बातों का कितना ख्याल रखता है , आज सुबह सबसे पहला फोन उसी का आया था। अवनी केवल उसका मूड अच्छा करने के लिये ,उसे बहलाने के लिये कह रही थी। वह थोड़ी देर तक सोसायटी के लॉन में वॉक करते करते बहन से बात करती रही फिर घर लौट आई थी।
डिनर का टाइम हो रहा था , श्यामा उनकी (सहायक) उन्हें देखती ही बोली , “मैडम खाना लगाऊँ “?
“चलो , मैं हाथ धोकर किचेन में आती हूँ “
“सर ने कहा है , आज सब लोग साथ में खायेंगें। “
अविरल अभी भी अपने फोन पर गेम खेल रहे थे , उसे उनका गेम खेलते देख मूड खराब हो जाता था। वह रात दिन काम कर करके परेशान रहती है और इन साहब को इतनी फुर्सत रहती है कि बैठ कर गेम खेल रहे हैं. उनका कहना है कि गेम खेल कर अपना स्ट्रेस कम करता हूँ।
उसे भी थोड़ा अपने को कंट्रोल करना चाहिये।..उसे रिलैक्स करने के लिये बाहर जाकर शॉपिंग करना या आइस क्रीम खाना पसंद है।
उसके चेहरे पर मुसुकुराहट आ गई थी, तब तक माँ जी डाइनिंग टेबिल पर बैठ चुकीं थीं। श्यामा ने भी खाना लगा दिया था।
उसने डोंगा खोला तो छोला देख उसके मुंह में पानी आ गया था , “ओह आज कुछ खास बात है क्या ?”
“मैडम सर ने आज कुछ स्पेशल बनाने के लिये बोला था। आज मूँग दाल का हलवा भी बना है “.
मूंग दाल हलवा तो हमेशा से उसका फेवरेट रहा है।
“मेरे तो मुँह में पानी आ रहा है , अवि जल्दी आओ प्लीज।..
अविरल फोन पर किसी से बात कर रहा था।
माँ जी ने उसके माथे पर टीका लगाया और उसके हाथ पर एक अँगूठी का डब्बा रख दिया ,” हैप्पी बर्थ डे आरोही “ “यह अविरल अपनी पसंद से लाया है “. उसने झुक कर माँ जी का पैर छू लिया था।
वह जानती थी कि ये काम अकेली माँ जी का है , अविरल का दिमाग इन सबमें चलता ही नहीं है , लेकिन उनके चेहरे की मंद मंद मुस्कान देख उसे उन पर बहुत प्यार आ रहा था।
वह मुस्कुरा कर बोले , सुबह जब मैं फ्रेश होकर इधर आया तुम हॉस्पिटल जा चुकी थीं।
इसलिये मैंने ये सर्प्राइज प्लान कर लिया। “कैसा लगा डॉ. आरोही मेरा सर्प्राइज ?” “ओह अविरल यू आर वेरी क्यूट “. वह खाना सर्व ही कर रही थी ,
तभी कॉल बेल की आवाज हुई , मामा जी रोनी सी सूरत बना कर आये , माहौल बदल चुका था वह अपने हाथ में एक फाइल लिये हुय़े थे, “मैंने कहा मेरी आरोही बहू इतनी बड़ी डॉक्टरनी है , पहले उसे दिखायेंगें।..” सबकी निगाहें उस पर अटकी हुई थीं।
“लो, यह प्रसाद “ माता वैष्णव देवी के प्रसाद से तुम्हारी मामी अब जल्दी ठीक हो जायंगीं। मुझे सपना आया था कि तुम हर महीने दर्शन करने आओगे तो तुम्हारी पत्नी एकदम ठीक हो जायेंगीं . मैं महीने में दो बार तो हो आया , एक बार तो तुम्हारी मामी को भी ले गया था और उन्हें भी दर्शन करवा लाया। माता रानी की जरूर कृपा होगी और तुम्हारी मामी अब जल्दी ठीक हो जायेंगीं।
उन्होंने सबको अलग अलग हाथों में प्रसाद दिया . आरोही के हाथ में उन्होंने फाइल भी पकड़ा दी थी।
“मामा जी , आप भी खाना खा लीजिये। “
“अरे डॉक्टर बहू , तुम खाने की बात कर कही हो , यहाँ मेरी साँसें रुकी जा रही हैं। “
मजबूरन उसने फाइल हाथ में ले ली , सरसरी निगाहों से देखा , फिर बोली , “डॉक्टर मयंक ने बॉयप्सी के लिये लिखा है तो आपको सबसे पहले बॉयप्सी करवानी पड़ेगी. “
“ बहू तुम समझती क्यों नहीं , उन्हें दर्द वर्द बिल्कुल नहीं है” तुम तो बेमतलब की बात कर रही हो “?, “काटा पीटी होगी तो बीमारी बढ नहीं जायेगी।”
वह पहले भी कई बार स्पष्ट रूप से सबसे कह चुकी थी वह हार्ट की डॉक्टर है , कैंसर के बारे में मैं ज्यादा नहीं जानती लेकिन मामा जी तो बस बार बार बहू बहू करके पीछे पड़ कर रह गये हैं।
उसने फाइल पकड़ाते हुए कहा “ बायप्सी जरूरी है , यह आवश्यक नहीं कि कैंसर ही हो.... फैब्रायॉड भी हो सकता है , वह ऑपरेट करके आसानी से निकाल दिया जायेगा। “
“अरे बहू तुम तो इतनी बड़ी डॉक्टर हो कुछ और इलाज बता दो , आपरेशन न करवाना पड़े।”
यह पहली बार नहीं था , कभी मामा जी तो कभी मौसा जी तो कभी कोई अंकल हर 8-10 दिनों बादकोई न कोई अपनी समस्या लेकर आ खड़ा होता।
मामा जी ने उसके लिये मुसीबत ही खड़ी कर रखी है एक ही बात , कभी कहते फलां वैद्य का इलाज चल रहा है ,मैं कहता था न.. अब गाँठ एकदम छोटी हो गई है।
वैद्य जी सही कह रहे थे कि डॉक्टर तो बस अपना धंधा चलाते हैं , देखियेगा , मैं शर्तिया 15 दिन में ठीक कर दूँगा , वह उसकी ओर व्यंग भरी नजरों से देख कर कह रहे थे , कुछ दिनों बाद पता लगा था कि अब कोई हकीम का इलाज कर रहे हैं।.. बहुत फायदा है। खुश होकर आये थे ,
स्वयं ही खबर दे गये थे।कभी किसी नेचुरोपैथी के कैंप में 10 दिन के लिये गये थे , लेकिन वहाँ के इलाज से घबरा कर 3 दिनों में ही भाग कर आ गये थे।
फिर कुछ दिनों तक होमियोपैथी का इलाज करने के बाद उसके पास फिर से आये तो उसने कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर मयंक के पास भेज दिया तो उन्होंने बॉयप्सी करवाने को कहा तो वह फिर उसको परेशान करने के लिये आ गये थे। उसका मन तो कर रहा था कि मामा जी को डाँट कर घर से बाहर कर दे और फाइल उठा कर फेंक दे लेकिन अपने को कंट्रोल करते हुये वह अपने कमरे में आ गई और अपनी मेल चेक करने लगी। अब कुछ जिनों से वह मेडिकल कॉलेज में लेक्चर के लिये बुलाई जाती हैं .सर्जरी के क्षेत्र में अब वह पहचानी जाने लगी हैं।, अपने स्टूडेंट टाइम से वह टॉपर रहीं थी , हमेशा मेरिटोरियस छात्रा रही थीं , एम। एस में वह गोल्डमेडलिस्ट रहीं थीं।
.वह अपने अतीत में विचरण करने लगी थी।..
जब वह 28 साल की हो गईं तो शादी के लिये पैरेंट्स के दबाव के साथ साथ में, वह भी अपने अकेले पन से ऊब चुकी थीं , जब उसे कोई डॉक्टर मैच समझ नहीं आ रहा था तो मैट्रिमोनियल साइट पर ढूढते हुए अविरल का बॉयोडेटा उन्हे पसंद आया था।. अविरल आई टी के साथ आईएमएम से एम बी।ए. थे।वह मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर थे।
उसने उनके साथ चैटिंग शुरू कर दी थी , कुछ दिनों की चैटिंग के बाद मिलना जुलना शुरू हो गया। अविरल मुंबई में पोस्टेड था और वह भी मुंबई में ही जॉब कर रही थी , इसलिये उसे वहीं रहने वाला जीवनसाथी चाहिये था। सब कुछ ठीक ठाक लग रहा था।
बस दूसरी जाति के कारण वह मन ही मन हिचक रही थी लेकिन उसकी चिकनी चुपड़ी प्यार भरी बातों में वह सब कुछ भूल गई थी।
3 महीने तक मिलने जुलने के बाद दोनों ने अपने पैरेंट्स से बता दिया , फिर धूमधाम से उन दोनो की रिंग सेरेमनी तो हो गई लेकिन चूँकि लगातार उसकी सर्जरी की डेट फिक्स थी , इसलिये वह शादी नहीं कर पा रही थी क्योंकि वह शादी को एन्ज्वाय करके हनीमून के लिये योरोप जाना चाहती थी। लगभग 4 महीने , लंबे इंतजार के बाद दोनों की घूमघाम से शादी हुई।
उसके ससुराल पक्ष के सारे रिश्तेदार , चाहे चाचा ताऊ , बुआ या फिर मामा आदि सब आस पास ही रहते थे , चूँकि बड़ा परिवार था , इसलिये रोज ही कहीं न कहीं बर्थ डे , एनिवर्सरी जैसे फंक्शन में जाना पड़ता था ,
माँ जी कहतीं बहू साड़ी में तुम ज्यादा अच्छी लगती हो ,गले में हार तो पहन लो।.. अविरल भी कहता साडी तुम पर बहुत जँचती है। और वह उन लोगों की बातों में आकर शुरू- शुरू में साड़ी पहन कर तैयार हो जाती.
लेकिन वहाँ पर तो वह सबके लिये वह फ्री की डॉ. आरोही थी , 2 -4 ळोग अपनी अपनी बीमारियों के लिये दवा लिखवाने के लिये हाजिर ही रहते। वह परेशान हो कर रह जाती क्योंकि वह जनरल फीजिशियन तो थी नहीं कि हर मर्ज की दवाई लिखती लेकिन कोशिश करके कुछ लिख देती। कोई किडनी को लेकर परेशान है तो कोई लिवर सिरोसिस तो किसी को बच्चा नहीं हो रहा है तो आरोही ऐसी गोली दे दे, जिससे वह प्रेग्नेंट हो जायें
उन लोगों की बातें सुन कर उसे बहुत कोफ्त होती और यदि परहेज बताओ तो करना नहीं , यहाँ वहाँ किसी से पूछ कर दवा बता भी दो तो वह लोग शिकायत लेकर आ जाते बहूरानी तुमने जाने कैसी दवा दे दी मुझे नुकसान कर गई , गरम कर गई , इस तरह की रोज रोज की बातों से वह परेशान हो चुकी थी।
शादी के 2 साल तक वह किसी तरह से ऱिश्तेदारों को झेलती रही थी।फिर अविरल से उसने साफ साफ कह दिया कि इस तरह से मेरी पोजीशन बहुत खराब हो जाती है , मैं हर मर्ज की दवा नहीं बता सकती। लेकिन वह भी अक्ल का कच्चा था डॉक्टर हो तो इन छोटी मोटी बीमारियों में भला क्या सोचना.... वह लोग तो तुम्हारी इतनी इज्जत करते हैं।.. कोई भाभी कोई मामी सब कितना तुम्हें प्यार करते हैं।.. वह मन ही मन कुड़ कुड़ाई थी कि अविरल को जरा भी अकल नहीं है , वह सब प्यार का दिखावा करके अपना मतलब साधते हैं।
उसने परेशान होकर इस तरह की रिश्तेदारियाँ निभाना बंद कर दिया था। जब भी कहीं कोई फंक्शन के लिये फोन आता वह अपनी हॉस्पिटल की व्यस्तता का बहाना बता देती और फिर अविरल का मूड खराब हो जाता माँ जी का भी मिजाज बिगड़ा रहता वह अपना ज्यादा टाइम हॉस्पिटल में बिता कर आती . जो ढंग से बोलता उससे बोल लेती नहीं तो अपना काम करके गुड नाइट।.. कह देती।
दोनों के बीच मूक समझौता हो गया था , तुम मेरे घर वालों के यहाँ नहीं जाओगी तो मैं तुम्हारे घर वालों के यहाँ भी नहीं जाऊँगां.
अविरल ने उसके बैंक एकाउंट में ताक झांक करना शुरू किया तो उसने इशारों इशारों में कह दिया कि मैं तो अपना एकाउंट खुद संभाल लेती हूँ . यदि जरूरत पड़ी तो जरूर तुम्हारी मदद लूँगीं। अविरल का मुँह बन गया था लेकिन उसे परवाह नहीं थी। क्योंकि य़दि वह साफ साफ न कहती तो वह उसके पैसे पर अधिकार जमाने लगता। वह उसे पसंद नहीं....
उसका और अविरल की पसंद में जमीन आसमान का अंतर था उसे सुबह सुबह धीमी आवाज में या शास्त्रीयि संगीत या कोई भजन सुनना पसंद था ,
वह तुरंत बोलता , तुम्हें शांति से रहना पसंद नहीं है , सुबह से ही शोर शुरू कर देती हो , यहाँ तक कि वह कई बार जाकर बंद कर देता।
वह सुबह वाकिंग पर जाना पसंद करती , लेकिन अविरल को सुबह देर तक बिस्तर पर लेटे रहना पसंद था , नाश्ते में यदि वह इडली खाती तो वह ऑमलेट , माँ जी को चीला। इसी तरह से खाने में वह चटपटा खाना पसंद करती तो उन लोगों को प्याज लहसुन वाला खाना चाहिये होता जब कि वह बहुत कोशिश करके भी लहसुन और प्याज की सब्जियाँ नहीं खा पाती। वह हर तरह से इस परिवार के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी .
अविरल पति बनने के बाद उस पर बात बेबात रौब गाँठने की कोशिश करने लगा था .
वह रात में पढ रही थी ,तो जोर से बोला , “बंद करो लाइट , मुझे सोना है “
“कल मेरा लेक्चर है, मुझे उसकी तैयारी करनी है ,लाइट तुम्हारे चेहरे पर थोड़े ही पड़ रही है।..”
वह भुनभुनाता हुआ जोर से दरवाजा बंद करके अपनी तकिया लेकर ड्राइंगरूम में जाकर दीवान पर सो गया।
“आरोही तुम किचेन में जाकर देख नहीं सकती कि क्या खाना बना है , आज उसने इतना घी , मसाला , मिर्च डाल दिया है कि खाना मुश्किल हो गया , दही माँगा तो घर में दही भी नहीं था , खाना एकदम ठंडा रख देती है , रोटी कभी कच्ची तो कभी जली कभी ऐसी कि चबाना भी मुश्किल हो जाता है.... एक टाइम तो घर में खाता हूँ , वह भी कभी ढंग का नहीं मिलता”। कहते हुय़े वह खड़ा हो गया था।
दिन पर दिन अविरल का गुस्सा बढ़ता जा रहा था और व्यवहार में रूखा पन आता जा रहा था। उसने भी निश्चय कर लिया था कि जितना उसे बेड़ियों में जकड़ने की कोशिश करेगा , उतना ही वह ईंट का जवाब पत्थर से देगी।.. साथ में रहना है तो ठीक से रहो नहीं तो तो अलग हो जाओ।..
लेकिन वह अपनी तरफ से रिश्ता बनाये रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी।
कुछ दिनों तक तो उसने गृहिणी की तरह उसे और माँ जी को गरम रोटियाँ खिलाईं लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि शादी करके वह लोहे की जंजीर के बंधन में जकड़ कर रह गई है।
वह अपने मम्मी पापा से शिकायत कर नहीं सकती थी , उन्होंने पहले ही कहा था कि अविरल का स्वभाव गुस्सैल है। तुम्हें उसके साथ निभाना मुश्किल होगा।..
अविरल के क्रोध की ज्वाला शांत करने के लिये उसका मौन प्रज्जवलित अग्नि पर जल के छींटे के समान होता। और वह शांत होकर उसकी शिकायतों को दूर करने की कोशिश भी करती।
वह अपनी खुशी अब अपने प्रोफेशन में ढूढती और घरेलू उलझनों को अपने घर पर ही छोड़ जाती थी।
इस बीच वह ऩन्हीं परी की माँ बन गई थी . अब परी को लेकर हर समय अविरल उस पर हावी होने की कोशिश करने लगा यदि वह जवाब दे देती तो अनबोला साध लेता। फिर उसकी पहल पर ही बोलचाल शुरू होती। वह इतनी हँसने खिलखिलाने वाली स्वभाव की थी , अविरल के साथ रह कर तो वह हँसना ही भूल गई थी।दोनों के बीच में अक्सर कई दिनों तक बोलचाल बंद रहती।
वह कई बार शादी तोड़ देने के बारे में सोचती परंतु बेटी परी के बारे में सोच कर और अपने अकेलेपन की याद करके वह चुप रह जाती।
अविरल के फ्रेंड अन्वय के बच्चे की बर्थ डे पार्टी थी , वहाँ पर जब ड्रिंक के लिये उसने मना कर दिया तो अविरल सबके सामने उस पर चिल्ला पड़े . अन्वय बार बार एक पेग लेने की जिद् करते जा रहे थे... वह सब पहले ही कई पेग लगा चुके थे। वह नाराज होकर वहाँ से घर लौट कर आ गई।
अविरल घर आकर उस पर चिल्लाने लगे ,” यदि एक छोटा सा पेग ले लेतीं तो क्या हो जाता।.. लेकिन तुम्हें तो मेरी इन्सल्ट करना होता है।”
वह कुछ नहीं बोली , गुस्सा तो बहुत आ रही थी कि जब मालूम है कि वह ड्रिंक नहीं करती , तो क्यों जबर्दस्ती कर रहे थे।
वह मौन रह कर अपना काम करती और नन्हीं परी के साथ अपनी खुशियाँ ढूढती। वह कई बार सोचती कि आखिर अविरल ऐसा व्यवहार क्यों करता है ?
धीरे धीरे उसे समझ में आया कि अविरल के मन में उसकी बढती लोकप्रियता के कारण हीन भावना आती जा रही है चूँकि कोविड के कारण उसकी कंपनी घाटे में चल रही थी और कंपनी में छंटनी चल रही थी। इसलिये उसके सिर पर हर समय नौकरी के हाथ से जाने की तलवार लटकती रहती थी।
उसने उसकी परेशानी को समझा और पत्नी का फर्ज निभाने की कोशिश करती परंतु ताली एक हाथ से नहीं बजती। अविरल का पुरुषोचित अहंकार बढता जा रहा था।
उन दोनों के बीच की दूरियाँ बढती जा रही थीं। उसे देर रात तक पढने का शौक था और उसके प्रोफेशन के लिये भी पढना जरूरी था। अविरल के लिये उसकी अंकशायिनी बनने का मन ही नहीं होता। इसलिये भी उसका फ्रस्ट्रेशन बढता जा रहा था।
समय बीतने के साथ वह मां जी और अविरल के स्वभाव और खान पान को अच्छी तरह से समझ चुकी थी।वह माँ जी की दवा वगैरह का पूरा ख्याल रखती और उसने एक फुल टाइम मेड रख दी थी। सुबह शाम मां जी के पास थोड़ी देर बैठ कर उनका हाल चाल पूछती। अब माँ जी उससे बहुत खुश रहतीं . वह कोशिश करती कि अविरल के पसंद का खाना बनवाये संभव होता तो वह डाइनिंग टेबिल पर उसे खाना भी सर्व कर देती।
लेकिन वह महसूस करती थी कि अविरल की अपेक्षायें बढती ही जा रही हैं और शादी उसके केरियर के बाधा बनती जा रही है। उसका पुरुषोचित अहम् बढता ही जा रहा था। वह उस पर अधिकार जमा कर उस पर शासन करने की कोशिश करने लगा था। बात बेबात क्रोधित कर चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया था।
शुरू के दिनों में तो वह उसकी बातों पर ध्यान देती और उसकी पसंद को ध्यान में रख कर काम करने की कोशिश करती , परंतु जब उसके हर काम में टोका टाकी और ज्यादा दखलंदाजी होने लगी।
अब उसने चुप रह प्रतिकार करना शरू कर दिया था। अपने मन के कपड़े पहनती , अपने मन का खाती। माँ बेटा दोनों को उसने नौकरों के जिम्मे कर दिया था।
यदि अविरल कोई शिकायत करते तो साफ शब्दों में कह देती ,”मेरे पास इन कामों के लिये फुर्सत नहीं है।” ‘”यदि श्यामा सही से काम नहीं करती तो ऑनलाइन दूसरी बुला लो” लेकिन मेरे पास इन झंझटों में पड़ने का टाइम भी नहीं है और ताकत भी नहीं... कोई भी व्यक्ति पूरा परफेक्ट नहीं होता “....
“जब मैं इतनी कोशिश करके तुम लोगों की आशाओं पर खरी नहीं उतरी तो बेचारी श्यामा तो.... कहती हुई बैग उठा कर घर निकल गई थी “
.वह मन ही मन सोचती कि पति बनते ही सारे पुरुष एक जैसे ही बन जाते हैं.स्त्री के प्रति उनका नजरिया नहीं बदलता है। वह स्त्री पर अपना अधिकार समझ कर उस पर एकछत्र शासन करना चाहता है। पत्नी के लिये लकीर खींचने का हक पति को क्यों दिया जाये ..आखिर पत्नी के लिये सीमायें तय करने वाले ये पति कौन होते हैं। दोनो समान रूप से शिक्षित और परिपक्व होते हैं इसलिये पत्नी के लिये कोई भी फैसला लेने का अधिकार पति का कैसे हो सकता है ?
इन्हीं ख्यालों में डूबी हुई वह अपनी दुनिया में आगे बढती जा रही थी।..
उसकी व्यस्तता बढती जा रही थी . परी भी बड़ी होती जा रही थी , वह स्कूल जाने लगी थी। वह कोशिश करके अपनी शाम खाली रखती, उस समय बेटी के साथ हँसती खिलखिलाती उसे प्यार से पढाती।
वह अपनी दुनिया में मस्त रहने लगी थी।
चूँकि वह सर्जन थी , उसका डॉयग्नोसिस और सर्जरी में हाथ बहुत सधा हुआ था। वह ऑन लाइन भी पेशेंट को सलाह देती। अब वह मुंबई के अच्छी डॉक्टरों में गिनी जाने लगी थी।
उसे अक्सर कॉन्फ्रेंस में लेक्चर के लिये बुलाया जाता। उसे कई बार कॉंफ्रेंस के लिये विदेश भी जाना पड़ता और अन्य शहरों में भी अक्सर जाना आना लगा ऱहता था।
डॉ निर्झर कॉलेज में उनसे जूनियर थे . वह सर्जरी में कई बार उनके साथ रहते थे। इसी सिलसिले में उनके पास आया करते थे। मस्त स्वभाव के थे , अक्सर उन लोगों के साथ खाना खाने भी बैठ जाया करते थे।
वह देर रात तक काम के सिलसिले में बैठे रहते और वह उनके साथ ज्यादातर दौरों पर भी जाया करते।। डॉ. निर्झर उसी की तरह हँसोड़ और मस्त स्वभाव के थे। वह उनके संग रहती तो लगता कि उसके सपनों को पंख लग गये हैं। निर्झर के साथ बात करके उसका मूड फ्रेश हो जाता और उसके मन को खुशी और मानसिक संतुष्टि मिलती।
डॉ. निर्झर की बातों की कशिश के आकर्षण में वह बहती जा रही थी। वह भी उसके हँसमुख सरल स्वभाव और सादगी के कारण आकर्षण महसूस कर रहा था। दोनों के बीच में दोस्ती के साथ आत्मिक रिश्ता पनप उठा था। दोनों काम की बात करते करते अपने जीवन के पन्ने भी एक दूसरे के साथ खोलने लगे थे।
निर्झर से नजदीकियाँ बढती हुई अंतरंग रिश्तों बदल गई थी. यही कारण था कि अविरल और उसके रिश्ते के बीच दूरियाँ बढती जा रही थीं।
निर्झर का साथ पाकर उसे ऐसा महसूस होने लगा जैसे उसके जीवन से पतझड़ बीत गया हो और वसंत के आगमन से दुबारा खुशियों रूपी कलियों ने प्रस्फुटित होकर उसके जीवन को फिर गुलजार कर दिया हो। वह दिन भर निर्झर के ख्यालों में खोई रहती। वह उससे मिलने के मौके तलाशती हुई उसके केबिन में पहुँच जाती .
निर्झर उससे उम्र में छोटा था , अब वह फिर से पार्लर जाकर कभी हेयर सेट करवाती तो कभी कलर करवाती। उसकी वार्डरोब में नई ड्रेसेज जगह बनाने लगी थी।
यहाँ तक कि उसकी बेटी भी उसकी ओर अजीब निगाहों से देखती कि मॉम को क्या हो गया है। अविरल शांत भाव से उसके सारे क्रिया कलापों को देखते रहते परंतु मुँह से कुछ नहीं कहते। वह अपनी दुनिया में ही खोई रहती। घर नौकरों के जिम्मे हो गया था। उसके पास बस एक ही बहाना था कि काम बहुत है। बेटी परी के लिये भी अब उसके पास फुर्सत नहीं रहती थी।
समय चक्र तो गतिमान रहता ही है.... लड़ते झगड़ते 10 साल बीत गये थे।वह अपनी दुनिया में खोई हुई थी।
उसने ध्यान ही नहीं दिया था कि अविरल कब से उसकी पसंद का नाश्ता खाने लगा था। अपना पसंदीदा ऑमलेट खाना छोड़ दिया था। सुबह सबेरे उठते ही उसके मनपसंद म्यूजिक बजा देता था और कोशिश करता कि उसे किसी तरह से टेंशन न हो। कई बार उसके लिये खुद ही कॉफी बना कर बेडरूम में ले आता क्यों कि वह हमेशा से रात में कॉफी पीना पसंद करती थी। अविरल की आँखों में उसके लिये प्यार और प्रशंसा का भाव दिखाई पड़ता।
एक कॉंन्फ्रेंस के सिलसिले में वह 4 दिनों के लिये चेन्नई जाना था। वह बहुत उत्साहित थी। वहाँ के लिये उसने खूब शॉपिंग की थी।
वह बैग लगाने के बाद यूँ ही मेल चेक करने लगी .. निर्झर की मेल थी , उसने यू. एस की जॉब के लिये एप्लाई किया था। वह अपने वीसा इंटरव्यू के लिये दिल्ली जा रहा है। उसे बाद में पता लगा था कि वह यहाँ पर रेजिग्ऩेशन पहले ही दे चुका था।
उफ कितना छुपारुस्तम निकला , जब तक चाहा उसको यूज करता रहा और टाइमपास करता रहा और चुपचाप नौदो ग्यारह हो गया.
वह निऱाशा में डूब गई थी। उदास मन से बेड पर लेट गई थी। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह बीमारी का बहाना करके उन लोगों से अपने न आ पाने के लिये माफी माँग लेगी। लेकिन पशोपेश भी था कि वह भी नहीं जायेगी और निर्झर तो पहले ही नहीं गया होगा .... वहाँ परेशानी हो जायेगी। वह बुझे मन से गुमसुम मायूस ही बेड पर लेट गई थी . उसे झपकी लग गई थी। जब आँख खुली तो कमरे में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था.
अविरल ऑफिस से आये तो उसे लेटा देख परेशान हो उठे, “डार्लिंग एवरी थिंग इज ओके” वह जवाब भी नहीं दे पाई थी कि इसने देखा कि अविरल उसके सामने कॉफी का प्याला लेकर खड़ा था ...”
वह तेजी से उठी और बोली , “अरे तुम मेरे लिये कॉफी”.....
“तो क्या हुआ, डार्लिंग इट्स ओके....”
...” वह अपने मन को कांफ्रेंस के लिये तैयार कर ही रही थी कि तभी कमरे में परी आ गई थी , बैग देख कर बोली , “मॉम कहीं जा रही हो क्या ?”
वह गुमसुम सी थी कुछ समझ नहीं पा रहीं थी कि क्या कहे....
“पापा बता रहे थे कि आप चेन्नई कॉंफ्रेंस में जा रही हैं। “
वह चौंक पड़ी थी , अविरल से तो उसकी कोई बात नहीं हुई , उन्हें उसके प्रोग्राम के बारे में कैसे पता है।.?
“मॉम, मेरी छुट्टियाँ हैं। पापा भी फ्री हैं।. चलिय़े फेमिली ट्रिप पर चलते हैं “.
“ आपको पूरे समय कांन्फ्रेंस में थोड़े ही रहना होता है ...”
“ मॉम प्लीज हाँ कर दीजिये , हम लोग कब से साथ में किसी फेमिली ट्रिप पर नहीं गये हैं .” वह उससे लिपट गई थी।
अविरल भी आशा भरी निगाहों से उसकी ओर देख कर उसकी हाँ का इंतजार कर रहा था।
परी झटपट उसके बैग के सामान को उलट पुलट कर देखने लगी , वह मना करती, उसके पहले ही उसने उसकी सेक्सी सी पिंक नाइटी निकाल ली थी। वह शर्म से डूब गई थी. कि अब क्या कहे।..
“पापा मॉम ने तो पहले से आपके साथ ही जाने का प्रोग्राम बना रखा है।”
उसकी अपनी बेटी ने आज उसे इस अजीब सी स्थिति से उबार लिया था।
कहीं दूर पर गाना बज रहा था , “मेरे दिल में आज क्या है , तू कहे तो मैं बता दूँ “
एक अर्से के बाद उसने आगे बढ कर अविरल और परी दोनों को अपने आगोश में भर लिया था .दोनों की आँखों में खुशी के आंसू आ गये थे।
“आरोही हम लोग इस बार महाबलीपुरम भी चलेंगें। “
अविरल खुश होकर बोले, “यस यस।.वी विल सेलिब्रेट अवर 10 एनिवर्सरी “ कहते हुय़े प्यार से उसने पत्नी को अपने आगोश में ले लिया था।.
आज अविरल के प्यार भरे चुंबन ने उसके दिल को तरंगित कर दिया था।
परी तेजी से उनसे अलग होकर भागती हुई अपनी फ्रेंड्स को अपनी चेन्नई ट्रिप के बारे में बताने में मशगूल हो गई थी।