Padma Agrawal

Abstract

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Padma Agrawal

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दीपावली का पौराणिक , साहित्यिक , और ऐतिहासिक महत्व

दीपावली का पौराणिक , साहित्यिक , और ऐतिहासिक महत्व

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                                                दीपावली त्यौहार का पौराणिक , ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक महत्व                              

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का संदेश देता दीपावली के पर्व हिंदूओं का सबसे प्राचीन धार्मिक त्यौहार है। यह प्रतिवर्ष कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। पूरे देश और अब तो विदेशों में भी यह पर्व बडी श्रद्धा , विश्वास और समर्पण की भावना से मनाया जाता है यह पर्व ‘ प्रकाश पर्व ‘ के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार के संबंध में अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक मान्यतायें जुड़ी हुई हैं। मुख्य रूप से यह पर्व लंकापति रावण पर विजय प्राप्त कर अपने घर अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ जब 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों ने घर घर दीपक प्रज्जवलित करके खुशियां मनाते हुये उनका स्वागत् किया था। उसी परंपरा का निर्वहन करते हुये आज भी दीप जलाये जाते हैं और खुशियां मनाई जाती हैं। दीपावली पर्व के संदर्भ में कठोपनिषद में यम और नचिकेता की कथा का भी प्रसंग है। इसके अनुसार नचिकेता जन्म और मृत्यु का रहस्य यमराज से जानने के बाद यमलोक से मृत्युलोक पर लौटे थे। इस प्रसंग के अनुसार नचिकेता के मृत्यु पर अमरता के विजय का ज्ञान लेकर लौटने की खुशी में भूलोकवासियों ने घी के दीप जलाये थे। किंवदंती है कि यह आर्यवर्त की सबसे पहली दीपावली थी। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन श्री लक्ष्मी जी का अविर्भाव समुद्र मंथन के द्वारा हुआ था। कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा द्वारा देवराज इंद्र को दिये गये श्राप के कारण लक्ष्मी जी को समुद्र में जाकर निवास करना पड़ा। ...लक्ष्मी जी के बिना देवता गण बलहीन और श्री हीन हो गये , इस स्थिति का लाभ उठा कर असुर देवताओं पर हावी हो गये थे। ... तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान् विष्णु ने योजनाबद्ध तरीके से देवताओं और असुरों के द्वारा समुद्र मंथन करवाया।

समुद्र मंथन से अमृत सहित 14 रत्नों में श्री लक्ष्मी जी भी निकलीं , जिसे भगवान विष्णु ने ग्रहण कर लिया। लक्ष्मी जी के पुनः अविर्भाव से देवगणों में बल एवं श्री का संचार हुआ और उन्होंने फिर असुरों पर विजय प्राप्त की। श्री लक्ष्मी के पुनः अविर्भाव की खुशी में समस्त लोकों में दीप प्रज्वलित करके खुशियां मनाई गईं। इसी मान्यता के अनुसार प्रतिवर्ष दीपावली को लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी का पूजन भगवान् नारायण ने सर्व प्रथम किया था , फिर ब्रह्मा , उसके बाद शिव जी ने किया और फिर समुद्र मंथन के समय चौथी बार विष्णु जी ने पाँचवीं बार मनु ऩे और छठीं बार नागों ने की थी। दीपावली त्यौहार के संदर्भ में भगवान् श्री कृष्ण की भी प्रचलित है। .. इस प्रसंग के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण अपनी बाल्यवस्था में पहली बार गाय चराने के लिये वन में गये थे। एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिननरकासुर नामक असुर का वध करके , उसके द्वारा बंदी बनाई गई देव , मानव और गंधर्वों की 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में लोगों ने दीप जला कर खुशी मनाई थी जो बाद में एक परंपरा र पर्व के रू में परिवर्तित हो गया. दीपावली के पर्व से भगवान् विष्णु के वामन अवतार की कथा भी जुड़ी हुई है। एक बार दैत्यराज बलि ने गुरु शुक्राचार्य के सहयोग से देवलोक के राजा इंद्र को परास्त करके स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था। समय आने पर भगवान् विष्णु ने अदिति के गर्भ से महर्षि कश्यप के घर पर वामन के रूप में अवतार लिया। जब राजा बलि भृगकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ क रहे थे , तब भगवान् वामन ब्राह्मण के वेश में राजा बलि के यज्ञ मंडप में जा पहुंचे समुद्र मंथन से अमृत सहित 14 रत्नों में श्री लक्ष्मी जी भी निकलीं राजा बलि ने उनसे इच्छित दान मांगने का आग्रह किया। वामन ने बलि से संकल्प लेने के बाद तीन पग भूमि मांगी। संकल्पबद्ध राजा बलि ने तीन पग भूमि नापने की अनुमति दे दी। तब वामन भगवान ने एक पग में समस्त भूमंडल और दूसरे पग में त्रिलोक को नाप डाला। तीसरे पग के लिये राजा बलि को अपना मस्तक आ8 कर देना पड़ा , भगवान् वामन राजा बलि की दान शीलता से बहुत प्रसन्न हुये उन्होंने बलि को सुतल लोक का राजा बना दिया और इंद्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया। .. देवताओं ने इस अवसर पर दीप प्रज्वलित करके खुशियां मनाईं और पृथ्वीलोक में भी भगवान् वामन की इस लीला के लिये दीपमालायें प्रज्जवलित कीं गई.दीपावली के दीपों के संदर्भ में देवीपुराण का एक विशेष प्रसंग भी जुड़ा हुआ है। इसी दिन मातेश्वरी दुर्गा जी ने महाकाली का रूप धारण किया और असंख्य असुरों सहित चण्ड मुण्ड को मौत के घाट उतारा था। मृत्युलोक से असुरों का विनाश करते करते क्रोधित महाकाली ने देवताओं का भी सफाया करना शुरू कर दिया तो देवताओं की प्रार्थना पर शिव महाकाली के समक्ष प्रकट हुये। ... क्रोध के वशीभूत महाकाली शिव के सीने पर चढ कर बैठ गईं , परंतु शिव जी के शरीर का स्पर्श पाते ही उनका क्रोध शांत हो गया। किंवदंती यह भी है कि तब देवताओं ने दीपोत्सव मना कर अपनी खुशी जाहिर की।

दीपावली पर्व के साथ ऐतिहासिक घटनायें भी जुड़ी हुई हैं। .....गुप्त वंश के प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के समय पूरे राज्य में दीपोत्सव मना कर पूरे राज्य की प्रजा ने अपनी खुशी की अभिव्यक्ति की। इसके अतिरिक्त इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपना संवतचलाने का निर्णय लिया था। विद्वानों के मतानुसार नया संवत् चैत्र माह की प्रतिपदा से ही शुरू किया जाये। दीपावली के दिन ही महान् समाजुधारक आर्य समाज के संस्थापक और सत्यार्थ प्रकाश के रचयिता महर्षिदयानंद सरस्वती की महान् आत्मा ने 30 अक्टूबर 1883 को अपने नश्वर शरीर को त्याग कर निर्वाण प्राप्त किया था.परम संत स्वामी रामतीर्थ का जन्म इसी दिन कार्तिक की अमावस्या को हुआ था और उनके देह त्याग का भी अनूठा उदाहरण मिलता है। इस तरह से स्वामी रामतीर्थ के जन्म और निर्वाण दोनों दिवसों के रूप में दीपावली का विशेष महत्व है. बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान् बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व हजारों लाखों दीपक जला कर उनका स्वागत् किया था। आदि शंकराचार्य के निर्जीव शरीर में जब पुनः प्राणों के संचारित होने की घटना से जब हिंदू समाज अवगत् हुआ तो समस्त हिंदू समाज ने अपने उल्लास और खुशी की भावना को व्यक्त किया था। दीपावली के साथ एक अन्य ऐतिहासिक घटना भी जुड़ी हुई है। मुगल सम्राट जहांगीर ने ग्वालियर किले में सारे सम्राटों को बंद कर रखा था। इन बंदी सम्राटों में सिक्खों के छठवें गुरू गुरू गोविंद सिंह जी भी थे। गुरू। गोविंद सिंह जी बहुत वीर और दिव्यात्मा थे।  उन्होंने अपने पराक्रम से न केवल स्वयं को आजाद करवाया , वरन् शेष राजाओं को भी बंदीगृह से स्वतंत्र करवाया था। इस मुक्ति पर्व दीपोत्सव के रूप में समस्त हिंदू और सिक्ख समुदाय के लोगों ने अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करने के लिये कार्तिक पूर्णिमा को दीप जला कर प्रकाश पर्व मनाते हैं। दीपावली पर्व का वैज्ञानिक महत्व भी है क्योंकिदीपावली त्यौहार ऐसे समय पर आता है जब वर्षा ऋतु बीत चुकी होती है और शरद ऋतु का पदार्पण हो रहा होता है। इस समय वातावरण मे वर्षा ऋतु में पैदा हुए विषाणु और कीटाणु सक्रिय रहते हैं और घरों में दुर्गंध ऒर सीलन आदि की गंदगी हो जाती है। इसलिये दीपावली पर चरों , दफ्तरों की साफ सफाई व रंगाई पुताई , इस आस्था और विश्वास के साथ की जाती है कि लक्ष्मी जी यहां पर निवास करें , परंतु इस आस्था और विश्वास के कारण वर्षा ऋतु से उत्पन्न गंदगी समाप्त हो जाती है।  

दीपावली पर दीपों की माला जलाई जाती है। देशी घी और सरसों तेल या अन्य तेल और बत्ती न केवल वातावरण की दुर्गंध समाप्त कर सुगंधित बनाते हैं वरन् वातावरण में सक्रिय कीटाणुओं और विषाणुओं को समाप्त करके एकदम स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते है। सच तो यही है कि दीपावली पर्व पर दीपों का स्थान बिजली से जलने वाली रंग बिरंगी बल्बों की लड़ियां कभी नहीं ले सकती इसलिये हम सबको इस पर्व को पारंपरिक तरीके से ही मनाने का प्रयास करना चाहिये। दीपावली का पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है। ....1। ...धनतेरस। ...भगवान् धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। नये वस्त्र , बर्तन , जेवर , और गणेश लक्ष्मी की मूर्ति खरीदना शुभ माना जाता है। 2.... नरकाचौदस। ... इस दिन ज्ञगवान् कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसे छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है। 3.... दीपावली। .. अमावस्या की अंधेरी रात मे दीपों से प्रज्जवलित करके माता लअमी और गणेश का पूजन किया जाता है। 4......गोवर्धन पूजा। ...अगले दिन गोवर्धन पूजा की जातीहै। गोबर से गोवर्धन जी बनाये जाते हैं और फिरधूप दीप से पूजन किया जाता है. इसको अन्न कूट भी कहा जाता है और 56 तरह के व्यंजन का भोग लगाने का प्रचलन है। 5...। .भइया दुइज। ... ज्ञइया दुइज के दिन बहनें अपने भाइयों के मस्तक पर तिलक लगा कर उनके सुखद ज्ञविष्य की कामना करती हैं। भाई बहन एक दूसरे को उपहारों का आदान प्रदान करते हैं।      अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्वसमाज में उल्लास, भाईचारे और प्रेम का संदेश फैलाता है।

    


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