Padma Agrawal

Romance

4.5  

Padma Agrawal

Romance

रोज डे

रोज डे

3 mins
36



             

      ललिता अपनी बॉलकनी पर खड़ी हुई थी तभी उनकी निगाह अपने घर के सामने रहने वाली धरा के कमरे में पड़ गई थी . आज रोज डे पर शिशिर अपनी पत्नी धरा को रोज का बुके देकर आलिंगनबद्ध करते देख कर वह स्वयं भी अपने प्रियतम से रोज के बुके लेकर उनकी बाहों में लिपटने की कल्पना करती हुई शर्मा गईं और वहाँ से हट कर अपने कमरे में आ गईं .

उनको अपने पति गौतम पर बहुत गुस्सा आ रहा था . इतनी रोमांटिक कविताये मंच से सुनाया करते हैं और कहानियाँ लिखते हैं लेकिन उनके लिये आज तक एक बार भी गुलाब कौन कहे गेंदे की फूल भी नहीं लेकर आये हैं . धरा को जब से उन्होंने हाथ में बुके पकड़ कर आलिंगनबद् देखा था , उनकी दिल की धडकनें बढ गईं थीं .

वह मन ही मन सोच बैठी थी कि आज यदि गौतम गुलाब लेकर नहीं आये तो बस किचेन में ताला डाल दूँगीं . क्या समझ रखा है .... वह दिन भर सोचती रही थी कि गौतम बड़ा सा रोज का बुके लेकर आये हैं और प्यार से उन्हें अपनी बाहों के घेरे में लिपटा लिया है .... वह सज धज कर गौतम के साथ डिनर पर जा रही हैं .

तभी कॉल बेल की आवाज से उनकी तंद्रा टूटी थी. बबिता दीदी बर्तन झाड़ू करने आईं थीं . लेकिन उसके जूड़े में लगे हुए गुलाब ने फिर उन्हें रोज डे की याद ताजा कर दी थी .

वह उसको टटोलते हुए बोली , “आज बालों में बड़ा गुलाब लगा कर आई है . “

 “हाँ दीदी , आज रोज डे है न , इन्होंने सुबह सुबह प्यार से मेरे जूड़े में लगा दिया था .”

अब तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था . वह गौतम के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी . लेकिन जब वह गुनगुनाते हुय़े खाली हाथ घर में घुसे तो उनकी त्यौरी चढ गई और वह पैर पटकते हुए बच्चों के कमरे की ओर बढ गईं थी . आजकल बच्चों का कमरा उनके लिये कोपभवन बना हुआ था ...गौतम उनको उधर की ओर जाते देख कर समझ गये थे कि आज मैडम चंडी रूप में हैं बस अब उनकी खैरियत नहीं है जल्दी ही उनके ऊपर गर्म लूह के थपेड़े जैसे शब्दवाण पड़ने वाले हैं ,

वह तुरंत समझ गये थे कि वह किसलिये नाराज हैं... आज सुबह उन्होंने उन्हे याद दिलाया था.... कि आज रोज डै है ...लोग अपनी पत्नी या प्रेमिका को रोज देते हैं . इसलिये उन्होंने तुरंत अपने को संभाल लिया था और प्रेमालाप करते हुए बोले, “मेरी प्रियतमा , वसंत का महीना तो सदा से प्रेम का पर्व रहा है . वसंत का पर्याय कुसुमाकर भी है . हम सब तो सदियों से इस पर्व को मदनोत्सव कहते आये हैं . इस समय विभिन्न रंग बिरंगे पुष्पों के द्वारा प्रकृति अपना श्रंगार करती दिखाई पड़ती है . आम्रमंजरी की मादक सुगंध रतिपति कामदेव की पदचाप की तरह रति को मदोन्मत्त करती है .”

“इस मदनोत्सव के मदमाते पर्व पर गुलाब की महक भला कहाँ टिक पायेगी ... “

“बस करिये मेरे लेखक पति , आज आपके यह कोरे डायलॉग्स मुझे जरा भी रुचिकर नहीं लग रहे हैं . “

गौतम ने ठान लिया था कि वह आज अपनी प्रिया पत्नी को खुश करके रहेगा और वह अपनी स्कूटी स्टार्ट करके चला गया .

ललिता अपनी जीत पर प्रसन्नता के अतिरेक से मुस्कुरा पड़ीं थीं .

5 मिनट भी नहीं बीता कि पति महाशय हाथ में गोभी का फूल लेकर हाजिर हो गये थे .

ललिता रानी मुझे बेचारे गुलाब पर बहुत तरस आ गया . वह मुर्झाया हुआ मुँह लटकाये हुय़े आँसू बहा रहा था और मानों मुझसे कह रहा था, “ भला आया ये रोज डे ... मैं बगीचे में खिला हुआ कितना खुश था , अपने साथियों केसाथ खुशी से झूम रहा था लेकिन अब मेरे भाई बंधु और संगी साथी इस रोज डे की भेंट चढ कर जाने कहाँ गुम हो गये ...” मैंने उसके दर्द को महसूस किया और देखो मैं गोभी का फूल लेकर आया हूँ ,” “आज अपनी प्रियतमा को गोभी के गर्म गर्म पकौड़े खिला कर रोज डे मनाऊँगा . “

वह अपनी हँसी नहीं रोक पाई और किचेन में जाकर गोभी के पकौड़े और चटनी बना कर ले आई और फिर उनका रोज डे इस तरह से मन गया ... ...


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