Padma Agrawal

Romance

4  

Padma Agrawal

Romance

बारिश की बूँदे

बारिश की बूँदे

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यशिता अपनी बॉलकनी में बैठी हुई पति महिम का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. घने काले बादलों के कारण घुप्प अँधेरा छा गया था, बादलों का गर्जन और बिजली की कड़कने की आवाज से उसका दिल घबरा रहा था . तेज हवा के कारण पानी की बौछार उसे भिगो रही थी। वह चिंतित थी महिम अभी ऑफिस से नहीं आये थे। बारिश के कारण आज बबिता ने भी आने से मना कर दिया था। उसका चाय पीने का मन हो रहा था लेकिन वह आलस्य वश वहीं बैठी हुई अपने अतीत में विचरण लगी थी।

ऐसी ही मूसलाधार बारिश ने ही तो महिम से उसकी मुलाकात करवाई थी,  और इसी बारिश की बूँदों के कारण ही उसे महिम जैसा प्यारा जीवन साथी मिला। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी थी। पूरा एक वर्ष कितनी जल्दी बीत गया।.. ऐसा लग रहा है जैसे कल की ही बात हो... अतीत चल चित्र की तरह उसकी आँखो के समक्ष सजीव हो उठा था।...

यशिता ऑफिस से बाहर निकली तो घने काले बादलों को देख कर वह चिंतित हो उठी थी। उसके हाथ में छतरी तो थी लेकिन मुंबई की बारिश का क्या भरोसा।.. शुरू हो गई तो बंद होने का नाम ही नहीं लेती।..वह जल्दी जल्दी कदम बढा कर बस स्टैंड तक पहुँच जाना चाहती थी। वह मन ही मन अपने भगवान को मनाती जा रही थी, लेकिन बारिश भला कब उसका कहा मानती।... बड़ी बड़ी बूंदो ने जैसे उस पर हमला ही कर दिया था।.. वह बैग से छतरी निकाल पाती तब तक वह काफी हद तक भीग चुकी थी। हवा का वेग बहुत था, उसकी छतरी हवा के कारण उल्टी होकर उसके हाथ से छूट कर दूर जा गिरी थी। वह असहाय सा महसूस कर रही थी। बस स्टॉप तो अभी दूर था, कोई रिक्शा भी नहीं दिखाई दे रहा था।.. उसकी आँखों में आँसू आ गये थे तभी एक गाड़ी उसके नजदीक आकर रुक गई।. उसने गाड़ी के अंदर नजर भी नहीं डाली और वह लगभग दौड़ने सी लगी थी तभी अंदर से आवाज आई, “आपको कहाँ जाना है मैं छोड़ दूँगा।” उसने अपनी निगाहें उठा कर देखा तो उसके ही ऑफिस के एकाउंट सेक्शन के मैनेजर थे, एक क्षण को वह ठिठकी फिर बोल पड़ी, ” सर मुझे बस स्टॉप तक जाना है। मैं चली जाऊँगीं।.. आप मत परेशान होइये.” 

“आप भीग जाइयेगा। अंदर आ जाइये।.. मैं बस स्टॉप पर उतार दूँगा। “ उसने कातर निगाहों से अंदर देखा... कार ड्राइवर चला रहा था ड्राइवर को देख कर उसकी हिम्मत बढ गई और वह गाड़ी के अंदर बैठ गई। उसने महिम सर की तरफ कृतज्ञता भरी नजरों से देखा। उन्हें ऑफिस में उसने कई बार देखा भी था लेकिन बात कभी नहीं हुई थी। उन्होंने उसको तौलिया देते हुये कहा, “अपने बाल पोछ लीजिये नहीं तो सर्दी लग जायेगी। “

“थैंक्स सर “ कहते हुये आज्ञाकारी लड़की की तरह वह अपना बाल और चेहरा पोछने लगी थी। काले बादलों और घिरती शाम के कारण घना अँधेरा छा चुका था। बस स्टॉप पर सन्नाटा देख वह घबरा उठी थी। पूछने पर पता चला कि आज 502 नं. वाली बस नहीं आयेगी। उधर पानी भर गया है इसलिये बस कैंसिल कर दी गई है। 

बारिश की रफ्तार बढती ही जा रही थी। उसने अपना फोन निकाल कर माँ को बताना चाहा कि पानी के कारण उसे थोड़ी देर हो जायेगी।... लेकिन नेटवर्क ही नहीं था।

“आप परेशान मत हों।.. मैं आपको आपके घर तक छोड़ दूँगा। “

“सर, आज मेरी वजह से आप भी परेशानी में फँस गये हैं। “

“वह इंसान ही क्या जो किसी दूसरे के काम में न आये।”

यशिता चुप हो गई थी।” सर मेरा घर काँजुरमार्ग की तरफ एक गली में है, आप गली के बाहर उतार दीजियेगा …मैं वहाँ से चली जाऊँगीं। “

“ड्राइवर काँजुरमार्ग की तरफ ले चलो “

वह जानती थी कि उसकी गली तो थोड़ी सी बारिश में ही घुटनों तक पानी से लबालब भर जाती है। लेकिन फिर भी मन ही मन सोच रही थी कि आज गली में पानी न मिले पर उसका सोचा भला कभी हुआ भी है।...आज उसके कारण महिम सर भी मुसीबत में फँस गये हैं।

उसका मन नहीं माना, वह फिर बोल पड़ी, ” सर आप मुझे अगले मोड़ पर ही उतार दीजिये, मैं गली में घर तक पैदल ही चली जाऊँगीं। थोड़ा भीग जाऊँगी घर जाकर कपड़े बदल लूँगीं।” लेकिन यह क्या।... अँधेरी पहुँचने के पहले ही पुलिस रास्ता रोक कर खड़ी थी, उधर पानी लगभग 3 फिट जमा हो गया है इसलिये उधर नहीं जा सकते।

 ट्रैफिक के कारण गाड़ी बहुत धीरे धीरे रेंग रही थी। पानी की रफ्तार में जरा भी कमी नहीं आई थी। वरन् ऐसा लग रहा था कि मानों बादल फट पड़ा है।

ड्राइवर बोला, “सर गाड़ी का पहिया पूरा पानी में डूबा हुआ है, यदि हम लोग इसी तरह पानी में घूमते रहे और इंजन में पानी भर गया तो गाड़ी बंद हो जायेगी। घर तो अभी बहुत दूर है। “

“आस पास कोई होटल हो तो वहाँ ले चलो “

“जी सर” कभी ड्राइवर तो कभी महिम सर पानी में भीगते हुये कई होटल तक गये लेकिन सभी होटल भरे हुये थे। काफी देर बाद एक होटल में दो कमरे खाली मिले तो वह तीनों होटल के रिसेप्शन तक पहुँचने में पूरी तरह से भीग चुके थे।

होटल वालों ने ही उन लोगों को चेंज करने के लिये कपड़े दिये।फिर गर्म चाय पीकर सबको थोड़ी राहत मिली थी।

यशिता ने होटल से ही अपनी माँ को सारी बात बताई और वीडियो काल करके उन्हे जब अपनी शक्ल दिखा दी तब जाकर उन्हें चैन मिल पाया था।

22 वर्षीय यशिता अपनी माँ की इकलौती संतान थी, वह सुंदर और स्मार्ट थी। पिता बचपन में ही एक ऐक्सीडेंट में गुजर गये थे। माँ एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थीं। एक कमरे में माँ बेटी किसी तरह से जिंदगी गुजार रहीं थीं। जब से यशिता की नौकरी लगी थी। तब से हालात कुछ ठीक हुये लेकिन अब उसकी माँ उसकी शादी के लिये एक एक पैसा जोड़ रही थीं। इस बात को लेकर माँ बेटी में कई बार बहस भी हो जाया करती थी.

रात का खाना खाकर वह गहरी नींद में सो गई थी। सुबह फोन पर न्यूज सुन कर मालूम हुआ कि रात भर की बारिश के कारण जगह जगह जल भराव हो गया है, लोकल ट्रेनें भी कई सारी कैंसिल कर दी गई हैं। स्कूल कॉलेज बंद कर दिये गये हैं। ऑफिस का काम वर्क फ्रॉम होम करने की सलाह दी गई है।

वह रूम से बाहर आई तब तक ड्राइवर उसके रूम की तरफ ही आ रहा था। वह घबराया हुआ था।

“क्या बात है।...” 

“ सर को रात से तेज बुखार है।.. आपके पास कोई दवा हो तो दे दीजिये। “

यशिता ने रूम में जाकर देखा कि महिम सर दो रजाई ओढ़ कर भी काँप से रहे हैं। वह भी परेशान हो उठी थी। उसने रिसेप्शन को फोन करके सारी बात बता कर डॉक्टर बुलाने के लिये कहा, वह आहिस्ता आहिस्ता महिम सर का माथा सहलाने लगी थी। थोड़ी ही देर में डॉक्टर साहब आ गये थे। उन्होंने इंजेक्शन लगाकर कहा, घबराने वाली कोई बात नहीं है भीगने के कारण ठंड लग गई है। बुखार उतरने में एक दो दिन लगेगा।

बारिश थोड़ी कम तो हुई थी लेकिन सर का बुखार कम ही नहीं हो रहा था। अजीब सी स्थिति थी लेकिन जिस व्यक्ति ने आगे आकर उसकी सहायता की, उसे इस तरह वह कैसे छोड़ कर जा सकती है।। वह दिन भर उन्हें कभी दवा खिलाती तो कभी बुखार नापती।.. उसने उन्हें जबर्दस्ती चाय पिलाई बिस्किट भी खिलाया। बुखार कम होता लेकिन दवा का असर कम होते ही फिर 103 डिग्री पहुँच जाता।

रात में फिर से डॉक्टर साहब को बुलाया तो उन्होंने दवा बदल कर दी। वह बोले,” घबराइये नहीं, सुबह तक बुखार नहीं उतरता है तो ब्लड टेस्ट करवा लेंगें। “

वह चिंतित होकर पूरी रात सर के सिरहाने उनका सिर सहलाती रही थी। सुबह जब महिम सर ने आँख खोली और यशिता को अपने सिरहाने बैठे देखा तो महिम बोले, “अरे आप रात भर सोई नहीं क्या ?”

“ मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आप जाकर अपने कमरे में आराम कर लीजिये। “ उसने राहत की साँस ली थी।

“बारिश रुकी या नहीं।?”

“रात से काफी हल्की हो गई है लगभग रुक सी गई है।”

“सर अभी तो आपका बुखार उतरा ही है.”

“नहीं, मैं ठीक हूँ।”

“ड्राइवर गाड़ी निकालो “

“ यशिता जी को उनके घर छोड़ कर फिर घर चलना। “

“सर, आप चले जाइये मैं ऑटो कर लूँगीं। “

वह गहरी नजर से उसकी ओर देखते हुये बोले, “अब तो य़शिता तुम्हारा घर देखना ही पड़ेगा “

“नहीं सर, मैं तो एक गली में रहती हूँ। “

“तो क्या हुआ?”

 महिम 26- 27 साल का आकर्षक युवक था। लंबा ऊँचा कद, रंग गेंहुआ लेकिन चेहरे पर गंभीरता का आवरण रहता था। शरीर से हृष्ट पुष्ट था। 

महिम घर आये और माँ का पैर छूकर बोले, ” माँ जी, आज जल्दी में हूँ लेकिन आपके हाथ का खाना खाने जल्दी ही आऊँगा।”

वह अपने एक कमरे के मकान में सर को देख कर परेशान हो उठी थी। वह बाहर तक उन्हें छोड़ने के लिये आई थी। दोनों की आँखों में कृतज्ञता के आँसू झिलमिला रहे थे।

ऑफिस में दोनों मिलते, साथ में कॉफी पीते। कई बार वह अपना टिफिन सकुचाते हुये खोलती तो महिम बड़े स्वाद से खाते। दोनों की दोस्ती की चर्चा ऑफिस वालों की जुबान पर होने लगी थी।

“कल मैं तुम्हारे घर आ रहा हूँ, मेरी मम्मी और भैया भी आयेंगें।”

माँ बेटी दोनों घबराई हुईं तैयारियों में जुट गईं थीं। यशिता तो महिम की आँखों में अपने प्रति प्यार को देख रही थी लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति के चलते वह महिम जैसे साथी की कल्पना करने की भी हिम्मत भी नहीं कर सकती थी। वह सोचती कहाँ वह लोग और कहाँ सर।..आपस में कोई मेल ही नहीं है।

लेकिन वह अपनी बात के पक्के निकले और महिम सर की माँ और बड़े भाई भाभी सब लोग आ खड़े हुये थे

महिम सर की माँ सरला जी ने आते ही यशिता की माँ पूर्णिमा जी को गले से लगा लिया और बोली, ” आज मैं आपकी बेटी यशिता का हाथ अपने बेटे महिम के लिये माँग रही हूँ। “

पूर्णिमा जी को आभास तो था लेकिन आज सपना साकार हो रहा है, तो सहसा विश्वास करना मुश्किल हो रहा था।

“ दीदी माफी चाहूँगी।...यह संबंध भला कैसे ठीक रहेगा। “

“मैं तो आप लोगों का स्वागत् करने में भी सक्षम नहीं हूँ। “

“आप सारी चिंता मुझ पर छोड़ दीजिये।” यशिता और महिम एक दूसरे को मुस्कुराते हुये आँखों आँखों में ही इशारा कर रहे थे।

तभी महिम की भाभी नीरजा ने इस प्यारे से पल को अपने फोन में कैद कर लिया।

देवर जी अब तो लाइसेंस मिल गया है कहते हुये मेज से लड्डू उठा कर पहले यशिता फिर महिम को खिला दिया।

पूरा परिवार खुशी से झूम उठा था। 

तभी कॉलबेल की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी थी। वह तेजी से उठी और जाकर दरवाजा खोलते ही महिम की बाहों से झूल गई थी।अनायास ही वह खुशी से गाने लगी।...

मेरी जिंदगी में आप आये हो

इक ऐसी बारिश के लम्हों में

मेरे हाथ में हो सदा तेरा हाथ

भीगते रहें हम सारी रात

होंठ रहे खामोश

बस आँखों आँखों से हो तेरी मेरी बात

क्या बात है।..

वाह मेरी यशी।... ये बारिश की बूंदें.... कहते हुये दोनों एक दूसरे की बाहों में खो गये थे।


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