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शिखा श्रीवास्तव

Romance

3.5  

शिखा श्रीवास्तव

Romance

हमारी कहानी, तुम्हारा अफ़साना

हमारी कहानी, तुम्हारा अफ़साना

21 mins
407


जैसे-जैसे रात का अंधेरा गहराता जा रहा था, प्रभास के दिलो-दिमाग पर भी उसकी कालिमा छाती जा रही थी।सिगरेट सुलगाने के लिए उसने डिब्बा उठाया तो देखा बस एक ही सिगरेट बची थी। उसने गुस्से में डिब्बा दीवार पर दे मारा और बड़बड़ाया "अब मेरे जीवन में कभी सुबह नहीं आयेगी। कभी नहीं। इस रात के साथ मैं भी मिट जाऊँगा।"

नशे में डूबे हुए अपने लड़खड़ाते हुए कदमों को किसी तरह घसीटकर वो कमरे में लगी हुई अपनी माँ की तस्वीर के पास गया और उसे उतारकर अपने सीने से लगाते हुए फूट-फूटकर रो पड़ा।

रोते-रोते ही ना जाने कब उसकी आँख लग गयी और उसका अवचेतन मन उसे अतीत की यात्रा पर लेकर निकल गया।

"पापा-पापा देखिये मैंने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पाया।" नन्हा प्रभास अपने हाथ में चमचमाती हुई ट्रॉफी लेकर अपने पापा जिन्हें सब जमींदार बाबू कहा करते थे, उनके सामने खड़ा था।

"शाबाश, जाओ काका को बोलो अलमारी में ट्रॉफी सजा दें।" जमींदार बाबू एक उड़ती हुई नजर प्रभास पर डालकर बोले और फिर से अपने काम में व्यस्त हो गये।

प्रभास को याद आया कैसे उसके सहपाठियों के माता-पिता आज विद्यालय आये थे और उनके हाथों में ट्रॉफी, मेडल देखकर उन्हें प्यार कर रहे थे।प्रभास की माँ इस दुनिया में नहीं थी। सब कहते थे वो भगवान जी के घर रहती हैं और पापा हमेशा अपने काम में ही व्यस्त रहते थे।

बस घर का पुराना नौकर जिसे सब काका कहते थे वही प्रभास का ख्याल रखते थे और उसे प्यार देने की कोशिश करते थे।

अपने पापा की बेरुखी से आहत प्रभास रोता हुआ घर में बने पूजा कक्ष में चला गया और भगवान की प्रतिमा के आगे रोता हुआ बोला "भगवान जी आप मेरी माँ को अपने घर से इस घर में भेज दो ना।"

तभी उसे खोजते हुए काका वहाँ आये और किसी तरह उसे बहलाकर खाना खिलाने ले गए।

खाना खाने के बाद प्रभास अपने बगीचे में चला गया जहाँ उसके साथ पढ़ने वाली लाली जो उसकी एकलौती दोस्त थी, उसका इंतजार कर रही थी।

लाली और प्रभास हमेशा डॉक्टर-मरीज का खेल खेलते थे जिसमें प्रभास डॉक्टर बनता था।

एक दिन खेलते हुए लाली ने अचानक पूछा "प्रभास तू बड़ा होकर मुझसे शादी करेगा?"

लाली की बात पर प्रभास हँसता हुआ बोला "तू तो पढ़ाई में फिसड्डी है फिसड्डी। मैं तो अपने जैसे किसी डॉक्टर से शादी करूँगा।"लाली ने कुछ नहीं कहा। खेल एक बार फिर शुरू हो गया।


प्रभास के दादाजी इस गाँव के जमींदार थे। हालांकि अब जमींदारी खत्म हो चुकी थी लेकिन फिर भी उनके पास काफी संपत्ति, खेत-खलिहान थे, जिसमें उनके एकलौते बेटे प्रभास के पिता ने और इज़ाफा किया। लेकिन जब से प्रभास की माँ की मृत्यु हुई थी उनका मन धीरे-धीरे गाँव से उचटने लगा था।

आख़िरकार उन्होंने शहर जाने का फैसला कर लिया। गाँव की खेती-बाड़ी की जिम्मेदारी अपने विश्वासी मुनीम को देकर उन्होंने शहर में नए व्यापार की नींव डाली और अपनी मेहनत से थोड़े ही वक्त में उसे ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया।

जहाँ एक तरफ उनका व्यापार फलता-फूलता जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ उनका एकलौता बेटा प्रभास उनके प्रेम और स्नेह के अभाव में मुरझाता जा रहा था।प्रभास शुरू से ही पढ़ने में बहुत अच्छा था। अब अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए उसने स्वयं को और ज्यादा किताबों में डूबा लिया था। एक तरफ ट्रॉफियों और मेडलों से उसका कमरा भरता जा रहा था तो दूसरी तरफ उसका मासूम मन खाली होता जा रहा था।कभी-कभी उसे लाली की बहुत याद आती थी। शहर जाने से पहले जब वो उससे मिलने गया तब लाली देर तक उसका हाथ पकड़े रोती रही थी, और बस एक ही बात कह रही थी "बड़े होकर यहाँ जरूर आना। मैं राह देखूँगी।"उसकी बातें, उसकी शरारतें कुछ देर के लिए प्रभास की उदासी दूर कर देती थी।


वक्त गुजरने के साथ लाली की यादें धुंधली होती गयी और प्रभास की कोमल भावनाएं भी मिटती चली गयी।अब मासूम से मुस्कुराते रहने वाले प्रभास की जगह था एक रूखा-सूखा, हर वक्त गुस्से में खोया हुआ एक लड़का जो स्वयं अपने लिए भी अजनबी हो चला था।लेकिन एक चीज आज भी पहले जैसी थी पढ़ाई में प्रभास की लगन।उसका सपना था बारहवीं के बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करके डॉक्टर बनने का। उसने सुना था उसकी माँ गाँव में सही वक्त पर डॉक्टर ना मिल पाने के अभाव में ही उसे छोड़कर चली गयी थी।

बारहवीं पूरी करने के बाद जब प्रभास ने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा देने की अपनी इच्छा जमींदार बाबू के आगे रखी तो स्पष्ट शब्दों में इंकार करते हुए वो बोले "तुम सिर्फ बिज़नेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करोगे प्रभास। आखिर ये इतना बड़ा व्यापार मैंने किसके लिए खड़ा किया है? इसे तुम्हें ही संभालना है।"

हमेशा की तरह बिना प्रभास की बात सुने अपना फैसला बताकर जमींदार बाबू जा चुके थे।

पीछे रह गया था अपने टूटे हुए सपनों के टुकड़े समेटता अकेला प्रभास।वो जानता था जमींदार बाबू के आगे ज़िद करने का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है, और ना ही उसके अंदर घर छोड़कर कहीं जाने का साहस था।


मन मारकर उसने जमींदार बाबू की पसंद के विषयों के साथ स्नातक में दाखिला ले लिया। लेकिन चाहकर भी अब उसका मन पढ़ाई में नहीं लग पाता था। अब तक जिस प्रभास की गिनती कक्षा के होनहार छात्रों में होती थी, अब वो महज साधारण विद्यार्थी बनकर रह गया था।

प्रथम सेमेस्टर का परिणाम आने पर जमींदार बाबू ने गुस्से में कहा "मैं जानता हूँ प्रभास, तुम जानबूझकर पढ़ाई से जी चुरा रहे हो ताकि मैं अपना फैसला बदल दूँ। लेकिन ऐसा नहीं होगा। इसलिए बेहतर होगा तुम पहले की तरह पढ़ाई में मन लगाओ"प्रभास ने पहली बार हिम्मत करके कहा "मुझे ये विषय समझ नहीं आते। जितना हो सकेगा उतना ही कर पाऊँगा।"

जमींदार बाबू गुस्से में वहाँ से चले गये।अगली परीक्षाओं में प्रभास के परिणाम में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन पहले वाला प्रभास लौट नहीं सका।


स्नातक के बाद प्रभास ने किसी तरह मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री भी ले ली, लेकिन उसके लिए ये डिग्री सिर्फ नाम की ही थी जिसमें उसकी कोई रुचि नहीं थी।

जमींदार बाबू ने अब प्रभास को अपने साथ दफ्तर ले जाना शुरू कर दिया था ताकि वो काम सीख सके, लेकिन प्रभास काम में ध्यान देने की जगह अपने केबिन में बैठे-बैठे बस सिगरेट के छल्ले बनाता रहता था।

इसी तरह दो वर्ष गुज़र चुके थे।आख़िरकार प्रभास के रवैये से तंग आकर ज़मींदार बाबू बोले "मैं सब समझ रहा हूँ प्रभास तुम ये सब मुझे परेशान करने के लिए कर रहे हो। अगर तुम्हारी यही मर्ज़ी है तो ठीक है तुम हमारे गाँव वाले घर पर चले जाओ। यहाँ के काम में तो तुम्हारा मन लगता नहीं है, वहीं जाकर खेती-बाड़ी में मन लगाओ। और जब अपनी गलती का अहसास हो जाये तब अपनी विरासत संभालने आ जाना।"

ज़मींदार बाबू की इस बात में इतनी कड़वाहट थी कि आज प्रभास अपने आँसू नहीं रोक सका था। अपनी माँ की तस्वीर सीने से लगाये बेसुध सा सोया हुआ था।सुबह की किरणों के साथ प्रभास वर्तमान में लौटा। चाय के साथ ही काका उसके लिये गाँव जाने वाली ट्रेन की टिकट लेकर आये थे।

काका बोले "बेटा, मैंने जमींदार बाबू से बहुत कहा कि मुझे भी तुम्हारे साथ जाने दें पर उन्होंने मना कर दिया। अपना ख्याल रखना बेटा। काका की बात का मान रखकर खाना वक्त पर खाना और ज्यादा नशा नहीं करना।"काका से दूर करने के जमींदार बाबू के फैसले से प्रभास का गुस्सा चरम पर पहुँच गया था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। ट्रेन का वक्त दोपहर का था, जो रात तक उसे उसके गाँव पहुँचा देने वाली थी।

ट्रेन में बैठकर प्रभास गाँव में बीते हुए दिनों को याद करने लगा। इन यादों में बहुत वक्त के बाद लाली की हल्की सी छवि उभरी।

"जाते ही मिलूँगा उससे। अब तो कितनी बड़ी हो गयी होगी। शायद शादी भी हो चुकी होगी।" प्रभास स्वयं से ही बातें कर रहा था।जब वो गाँव पहुँचा तब रात के आठ बज चुके थे। गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ था।

"ओह्ह यहाँ तो सब लोग आठ बजे ही घर के अंदर चले जाते हैं। ऐसे में किसी के घर जाना उचित नहीं होगा।" सोचता हुआ प्रभास अपनी हवेली में चला गया।हवेली में नौकरों ने उसके रहने का सारा प्रबंध कर दिया था।बरसों बाद अपने पुराने कमरे में आकर प्रभास को अपनापन सा महसूस हो रहा था।आज सोने के लिए उसे विशेष जतन नहीं करना पड़ा। शीघ्र ही वो नींद के झोंको में डूब गया।

सुबह जब प्रभास की आँख खुली तब उसका मन बहुत हल्का महसूस हो रहा था।

उसने घड़ी पर नज़र डाली तो दस बज रहे थे।

"ओह्ह आज तो देर तक सोता रह गया। अब जल्दी से चलकर उस पगली की खबर लेनी चाहिए। पता नहीं मुझे पहचानेगी भी या नहीं।" प्रभास लाली के बारे में सोचता जा रहा था। 

जल्दी से तैयार होकर उसने मुनीम जी लाली के घर का पता कंफर्म किया और उस तरफ चल पड़ा।

वहाँ पहुँचकर उसकी मुलाकात लाली के माता-पिता से हुई। उन्हें अपना परिचय देकर जब प्रभास ने लाली के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा वो अस्पताल गयी है।

इससे पहले की वो आगे कुछ कहते प्रभास अस्पताल की दिशा पूछकर वहाँ के लिए निकल गया।

"हे भगवान, वो बीमार है क्या? अस्पताल क्यों गयी है इतनी सुबह? और उसके माता-पिता कैसे हैं जो उसे अकेले भेज दिया?" अनेकों विचार उसके मन में घुमड़ रहे थे।अस्पताल पहुँचने पर जब वहाँ उसे कोई नहीं दिखा तो वो लाली को खोजता हुआ डॉक्टर के कक्ष में पहुँच गया, जहाँ एक महिला डॉक्टर बैठी हुई थी।

प्रभास को देखकर डॉक्टर बोली "लाइये पर्ची दीजिये और बताइये क्या तकलीफ है आपको?"

"जी, वो मुझे लाली से मिलना है। उसके घर से पता चला है वो अस्पताल आयी है पर यहाँ तो कोई नज़र ही नहीं आ रहा। आप बता सकती हैं उसे क्या बीमारी है और वो कहाँ हैं?" प्रभास बोला।

डॉक्टर ने प्रभास को बैठने का इशारा करते हुए कहा "लाली बीमार नहीं है, वो यहाँ काम करती है।"

"काम? यहाँ? लगता है साफ-सफाई करती होगी। इससे ज्यादा वो अस्पताल में क्या करेगी?" प्रभास सोचता हुआ स्वयं से बोला।हालांकि प्रभास की आवाज़ धीमी थी फिर भी डॉक्टर के कानों तक पहुँच गयी।

उसने पूछा "आपने अपना परिचय नहीं दिया? आप कौन हैं और लाली को कैसे जानते हैं?"

"ये तो मैं उसे ही बताऊँगा। आप उसे बुला दीजिये।" प्रभास ने जवाब देते हुए कहा।

डॉक्टर ध्यान से प्रभास को देखते हुए बोली "वो इस वक्त आपसे नहीं मिल पायेगी।"

"ठीक है, उससे कहियेगा उसने सालों पहले जिसका इंतज़ार करने की बात कही थी वो आया था।" प्रभास ने उठते हुए कहा।

डॉक्टर को सहसा कुछ याद आया। वो कुछ कहने ही वाली थी कि तभी एक नर्स वहाँ पहुँची और डॉक्टर को संबोधित करते हुए बोली "डॉक्टर अल्का, आज ज्यादा मरीज नहीं थे। जो आये उन्हें डॉक्टर नवीन और डॉक्टर प्रीति ने देख लिया है। इसलिए सब सोच रहे थे शहर जाकर अस्पताल की जरूरी चीजों की खरीददारी कर ली जाये। आप चलेंगी क्या?"

"नहीं, मुझे कुछ जरूरी काम है। आप लोग जाकर आ जाइये।" डॉक्टर ने जवाब दिया।

नर्स के मुँह से डॉक्टर का नाम सुनकर प्रभास कुछ याद करने लगा।

तभी गाँव के सरपंच जी एक सज्जन के साथ वहाँ आये और बोले "अरे लाली बिटिया, इनसे मिलो। ये तुम्हारे अस्पताल में दवाखाना खोलने के लिए तैयार हैं। तुम इनसे बात करके सब समझ लो।"

सरपंच जी के मुँह से डॉक्टर अल्का के लिए 'लाली' का संबोधन सुनकर प्रभास हैरान रह गया।

उसे याद आया कि अंदर आते हुए उसने कमरे के बाहर डॉक्टर अल्का का नाम पढ़ा था, लेकिन चूंकि वो कभी लाली को इस नाम से नहीं बुलाता था इसलिए अब तक इस पर उसका ध्यान ही नहीं गया।

डॉक्टर अल्का ने भी प्रभास को पहचान लिया था लेकिन कुछ कहने के पहले ही सरपंच जी आ गये और वो अपने काम में लग गयी।लाली और सरपंच जी के साथ आये व्यक्ति की बातों को सुनकर प्रभास को पता चला कि लाली ने एक महीने पहले ही ये अस्पताल शुरू किया था, और अभी यहाँ बहुत काम बचा हुआ था, जिसमें एक महत्वपूर्ण काम दवाखाना खोलना भी था।

प्रभास एक कोने में खड़ा चुपचाप उनकी बातें खत्म होने का इंतज़ार कर रहा था।जब वो सज्जन वहाँ से चले गये तब लाली को प्रभास का ध्यान आया।


उसने उसे खड़े देखा तो फिर से बैठने का इशारा किया और बोली "डॉक्टर प्रभास, सिर्फ लाली को ही नहीं इस अस्पताल को भी तुम्हारा इंतज़ार था, ताकि तुम आकर इसे अर्थात अपने सपने को संभाल लो। मुझसे अकेले सब कुछ नहीं होगा।"लाली की बात सुनकर प्रभास के अंदर दबा हुआ गुस्सा फिर से बाहर आने के लिए बेचैन हो उठा। इसलिए वो बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया।

उसे जाता हुआ देखकर लाली भी उसके पीछे-पीछे निकल गयी और बड़ी मुश्किल से उसे आवाज़ देकर रोका।

प्रभास का हाथ पकड़कर लगभग उसे खींचते हुए लाली बोली "आओ चलो मेरे साथ।"प्रभास बिना कुछ कहे उसके साथ चल पड़ा।लाली उसे लेकर गाँव के तालाब के पास पहुँची, जहाँ दोनों बचपन में अपना ज्यादातर वक्त बिताते थे।

वहाँ पहुँचकर अपनी जगह पर बैठते हुए प्रभास बोला "तुम्हें ये जगह अब भी याद है?"

"सब याद है मुझे। लेकिन ये वाला प्रभास याद नहीं मुझे जो आज इतने वर्षों के बाद मुझे देखकर भी मुस्कुरा नहीं रहा। इस प्रभास की आँखों में तो मुझे गुस्सा और दर्द नज़र आ रहा है।" लाली ने प्रभास की तरफ देखते हुए कहा।

प्रभास धीमी आवाज़ में बोला "तुम्हें जो प्रभास याद है वो तो कब का मर चुका। मरे हुए लोग कभी वापस नहीं आते लाली।"कहते-कहते प्रभास बिलखकर रो पड़ा।लाली ने उसे रोने दिया। बस उसके हाथों को अपने हाथों में थामे रखा।जी भरकर रो लेने के बाद प्रभास का मन कुछ हल्का हो गया था।

उसने स्वयं को संयत किया और बोला "तुम भी क्या सोच रही होगी कि ये कैसा लड़का है...।"

प्रभास आगे कुछ कहता कि लाली ने उसके होंठो पर हाथ रखये हुए कहा "मैं कुछ नहीं सोच रही हूँ। हम दोस्त है प्रभास। अब भी एक-दूसरे से अपने दिल का दर्द बाँट सकते हैं।"

"अच्छा छोड़ो, ये सब बातें बाद में। पहले ये बताओ कि कक्षा की सबसे फिसड्डी लड़की डॉक्टर कैसे बन गयी? और मैं तो सोच रहा था कि अब तक तुम्हारी शादी भी हो चुकी होगी।" बचपन की तरह लाली की चोटी खींचते हुए प्रभास बोला।

लाली ने बिना नज़रें चुराये प्रभास की आँखों में देखते हुए कहा "किसी ने कहा था मुझसे की वो सिर्फ डॉक्टर से शादी करेगा। तो ये शर्त तो पूरी करनी ही थी। उसके आने से पहले मैं शादी कैसे कर लेती?"

लाली की बात सुनकर सहसा प्रभास उठ खड़ा हुआ और बोला "अच्छा अभी मैं चलता हूँ। बाद में मिलते हैं।"लाली उसे जाता हुआ देखती रह गयी। प्रभास की हालत उसे बेचैन कर रही थी।

अस्पताल के काम खत्म करने के बाद वो सीधे प्रभास की हवेली पहुँची।

प्रभास अपने कमरे में लेटा-लेटा सिगरेट पी रहा था।लाली ने उसके हाथ से सिगरेट छीनते हुए कहा "ये कब से शुरू कर दिया?"और उसे बुझाकर एक तरफ फेंक दिया।

ना जाने क्यों दोबारा सिगरेट उठाने की प्रभास की हिम्मत नहीं हुई।उसने लाली के सवालों को टालने की बहुत कोशिश की लेकिन उसकी एक ना चली। हारकर प्रभास ने लाली को अपने अब तक के जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया।

कितना कुछ सहा था प्रभास ने, ये सोचकर लाली की भी आँखें छलक उठी। उसे समझ ही नहीं आया कि वो क्या बोले।इसलिये प्रभास का ध्यान दूसरी तरफ करने के लिए उसने अपने बैग से कुछ निकाला और उसे देते हुए बोली "देखो मैं क्या लायी हूँ।"

"अरे वाह, कच्चे आम?" प्रभास का चेहरा बच्चे की तरह खिल उठा।

इतनी देर में पहली बार लाली ने उसके चेहरे पर मुस्कुराहट देखी थी।वो कुछ और कहती कि उसे खोजती हुई अस्पताल की नर्स वहाँ पहुँच गयी।

"कल मिलते हैं।" कहकर लाली चली गयी।रात भर वो बस प्रभास के बारे में सोच रही थी।

"नहीं मैं अपने दोस्त को ऐसे टूटने और मिटने नहीं दूँगी। मुझे कुछ करना ही होगा क्योंकि वो स्वयं अपने लिए कुछ करने से रहा।" स्वयं से बातें करते हुए लाली बोल रही थी।

उसके स्वर में दृढ़ निश्चय था।

अगली सुबह प्रभास की आँख लाली की आवाज़ से खुली जो उसके कमरे के बाहर खड़ी थी।

दरवाजा खोलते हुए प्रभास बोला "क्या हुआ? इतनी सुबह यहाँ कैसे?"

"ओह्ह बाबा रे, कैसे गधे बेचकर सोते हो। आधे घंटे से आवाज़ दे रही हूँ तुम्हें।" लाली अंदर आते हुए बोली।

आदतन सिगरेट का डिब्बा उठाते हुए प्रभास ने कहा "मेरी नींद को नज़र मत लगा। यहाँ आने के बाद से ही तो थोड़ा सो पा रहा हूँ।"

लाली ने एक बार फिर उसके हाथ से सिगरेट ले ली, साथ ही मेज पर रखा हुआ डिब्बा भी अपने बैग में डाल लिया।सिगरेट की तेज तलब होने के बावजूद आज भी प्रभास कुछ नहीं बोल पाया।

"सुनो तुम जल्दी से फ्रेश होकर तैयार हो जाओ और नाश्ता कर लो। फिर हमें हमारे अस्पताल जाना है। बहुत काम पड़े हुए हैं करने के लिए।" लाली ने नाश्ते का डिब्बा मेज पर रखते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर प्रभास बोला "हमारा अस्पताल? और भला मैं वहाँ जाकर क्या करूँगा? शायद तुम भूल रही हो मैं तुम्हारी तरह डॉक्टर नहीं हूँ।"

लाली सहजता से बोली "मैं कुछ नहीं भूली हूँ। और वो अस्पताल हमारा ही है, हमारा ही था हमेशा से, बचपन से, जबसे तुम्हारी आँखों ने उसका सपना देखा था।अब चलो जल्दी करो।"

प्रभास जानता था बातों में वो लाली से नहीं जीत पायेगा इसलिए चुपचाप तैयार होने चल पड़ा।

लाली उसे लेकर जब अस्पताल पहुँची तब अस्पताल के बाकी लोग भी आ चुके थे, जिनमें डॉक्टर प्रीति, डॉक्टर नवीन, सिस्टर आशा, सिस्टर नेहा, कंपाउंडर जीवन, और सफाईकर्मी मीना तथा राजू शामिल थे।

लाली ने सबसे प्रभास का परिचय करवाते हुए कहा "ये हैं मिस्टर प्रभास। आज से इस अस्पताल का मैनेजमेंट यही देखेंगे। तो आप सबने अस्पताल को सुचारू रूप से चलाने के लिए जो योजनाएं बनायी हैं, उसके बारे में इनसे विचार-विमर्श कर लीजिये। मेरे साथ के कमरे में ही फिलहाल मैंने इनका केबिन बना दिया है।"

सबने तालियों के साथ प्रभास का स्वागत किया और अपने-अपने पेपर्स लेने अपने केबिन में चले गये।

उनके जाने के बाद प्रभास ने गुस्से में लाली से कहा "लाली ये क्या मज़ाक है? मैं तुमसे कुछ बोल नहीं रहा हूँ इसका अर्थ ये नहीं है कि तुम मनमानी करती जाओ।"

प्रभास का हाथ पकड़कर उसे उसके केबिन की तरफ ले जाती हुई लाली बोली "पहले मेरी बात सुन लो अगर तब भी गुस्सा शांत ना हो तो चले जाना।"प्रभास चुपचाप सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया।

तब लाली ने फिर कहा "याद है तुम्हें बचपन की वो बात जब तुमने कहा था कि तुम किसी डॉक्टर से शादी करोगे। हालांकि वो सब हमारा बचपना था, लेकिन फिर भी जिस दिन तुम गाँव छोड़कर गये ना जाने क्यों मैंने उसी दिन तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये मैं डॉक्टर ही बनूँगी और मैंने स्वयं को पढ़ाई में झोंक दिया।

तुम बड़े होकर गाँव में अस्पताल शुरू करना चाहते थे। इसलिये जैसे ही मेरी डिग्री पूरी हुई अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर मैंने इस अस्पताल की नींव रखी। कहीं ना कहीं मेरे अंतर्मन को भरोसा था कि तुम जरूर आओगे। और तब मैं तुम्हें उपहार में ये अस्पताल देना चाहती थी।

लेकिन प्रभास सच तो ये है कि हमने अस्पताल की नींव तो रख दी है, लेकिन आज महीना बीतने के बाद भी हम इसे ढ़ंग से व्यवस्थित नहीं कर पाये हैं। जैसे ही पता चला कि तुमने मैनेजमेंट की पढ़ाई की है ऐसा लगा जैसे इस अस्पताल की भी समस्या दूर हो गयी और तुम्हारी भी। और तुम दोनों समस्या मुक्त मतलब मैं भी चिंतामुक्त।"

"तुमने ये कैसे सोच लिया कि जैसे-तैसे मैनेजमेंट की डिग्री पूरा करने वाला ये फिसड्डी इंसान तुम्हारे काम आ सकेगा? और ये भी की ये काम मेरी समस्याएँ, मेरी तकलीफें खत्म कर देगा?" प्रभास ने लाली की तरफ देखते हुए पूछा।

लाली ने बिना किसी हिचक के कहा "पहली बात की कागज पर छपे हुए कुछ नम्बर मेरे दोस्त की प्रतिभा की पहचान नहीं हो सकते। मेरा दोस्त कितना काबिल है उसके लिए मुझे किसी प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं है।

और दूसरी बात ये की ईश्वर हमें हमारे सपनों को पूरा करने का एक ना एक अवसर जरूर देते हैं। तो क्या हुआ कि तुम डॉक्टर नहीं बन पाये, लेकिन इस अस्पताल का प्रबंधन संभालकर, इसे गाँववालों के लिए और सुविधाजनक बनाकर भी तुम अपना सपना पूरा कर सकते हो, अपनी माँ को श्रद्धांजलि दे सकते हो।

क्या अब भी तुम्हें नहीं लगता की मैंने जो सोचा सही सोचा?"

"लेकिन अब मुझे स्वयं पर भरोसा नहीं रहा। मुझे नहीं लगता मैं तुम्हारी उम्मीदों पर खरा उतर पाऊँगा।" प्रभास के स्वर में उदासी थी।

लाली ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा "मेरे भरोसे पर भरोसा करो और उठो। अपना दायित्व संभालो। तुम कर लोगे मैं जानती हूँ।"

लाली की इस बात का प्रभास पर सकारात्मक असर हुआ। सभी लोगों के साथ मिलकर वो अस्पताल के काम में जुट गया। जो लगन और मेहनत प्रभास की पहचान थी, वो एक बार फिर से लौटने लगी थी।

प्रभास और सभी लोगों के सहयोग से अस्पताल को सरकारी मान्यता मिलने के साथ-साथ एक ही छत के नीचे प्रत्येक विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता के साथ ही तमाम तरह के जाँच, कुछ बड़े ऑपरेशन, दवाखाने में हर तरह की दवा की उपलब्धता और सरकार की तरफ से जरूरतमंद लोगों को मिलने वाली चिकित्सकीय सहायता भी अस्पताल में सहज-सुलभ हो चुकी थी।

आस-पास के गाँवों से भी लोग चिकित्सा के लिए इस अस्पताल में पहुँचने लगे थे।

एक फुर्सत की शाम तालाब के किनारे बैठे हुए प्रभास ने लाली से कहा "तुमने ठीक ही कहा था ईश्वर हमें हमारे सपने को पूरा करने का एक अवसर जरूर देते हैं। मैं तो अपनी पहचान भूल चुका था, स्वयं को भूल चुका था, लेकिन तुमने मुझे याद रखा, मेरे सपने को याद रखा और मुझे भी फिर से याद दिलाकर एक बार फिर स्वयं से मिलवा दिया।

मर चुके प्रभास को डॉक्टरी में निपुण अपने हाथों से तुमने फिर से ज़िन्दगी दे दी डॉक्टर अल्का।"

लाली बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली "ये डॉक्टर अल्का कौन है? सौतन है क्या मेरी? मैं तो तुम्हारी लाली हूँ।"

उसकी बात पर हँसते हुए प्रभास ने कहा "अच्छा तो ये भी तुमने स्वयं ही तय कर लिया की मैं तुमसे ही शादी करूँगा?"

"औऱ क्या। बस एक तुम्हारी खातिर दिन-रात किताबों में आँखें फोड़ी हैं मैंने। अब अगर तुमने किसी और के बारे में सोचा भी तो..."। लाली ने कहा।

"तो क्या?" प्रभास ने चुहल की।

"तो मैं रो-रोकर अपनी जान दे दूँगी।" लाली बोली।

प्रभास ने सहसा उसके होंठो पर एक चपत लगायी और कहा "चुप। मरे तुम्हारे दुश्मन।"

कुछ देर तक दोनों खामोश रहे। फिर सहसा कुछ सोचकर प्रभास बोला "अच्छा, अब जब तुमने स्वयं को मुझ पर थोप ही दिया है तो मैं बेचारा मजबूर इंसान कर भी क्या सकता हूँ? कम से कम मेरी सिगरेट की डिब्बी तो मुझे लौटा दो। वो तो अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर लूँ।"

"बिल्कुल नहीं। मैं तुम्हें कभी सिगरेट छूने भी नहीं दूँगी। अब बस मेरी मर्ज़ी चलेगी। समझे।" लाली ने अधिकारपूर्वक कहा।

प्रभास मुस्कुराते हुए बोला "मेरा पागल दिल तो उसी दिन से तुम्हारा गुलाम बन गया था जब तुमने मेरे कमरे में मेरे हाथ से सिगरेट छीनी थी और अगले दिन डिब्बा भी उठाकर ले गयी थी।

बाज़ार में नज़र पड़ने पर भी आज तक दोबारा खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा सका।"

"ओह्ह हो रौबदार जमींदार बाबू के वारिस तो भीगी बिल्ली निकले। शशश... ये राज किसी से कहना नहीं।" लाली खिलखिलाकर हँस पड़ी।

अचानक से ज़मींदार बाबू का ज़िक्र सुनकर प्रभास उदास हो उठा।

लाली ने उसकी तरफ देखते हुए कहा "प्रभास अपनी दोस्त की एक बात मान लो। जमींदार बाबू और अपने बीच की कड़वाहट मिटा दो। आखिर वो पिता हैं तुम्हारे। उन्हें तुम्हारी जरूरत है।"

"और जब मुझे उनकी जरूरत थी तब वो कहाँ थे?" प्रभास के स्वर में फिर से आक्रोश था।

"जो बीत गया उसे बदला नहीं जा सकता प्रभास। लेकिन जो आज है और जो आने वाला है उसे सँवारा जा सकता है प्रेम से, अपनेपन से। एक कदम उनकी तरफ बढ़ाकर देखो मेरी खातिर, अपनी अगली पीढ़ी की खातिर। मैं नहीं चाहती की अतीत की तरह तुम आगे आने वाले दिनों को भी किसी अफ़सोस के साथ जियो।" लाली ने कहा।

उसकी बात मानकर प्रभास ने अपना फोन निकाला और जमींदार बाबू को फोन लगाया।

आज लगभग एक वर्ष के बाद जमींदार बाबू ने अपने बेटे की आवाज़ सुनी थी।

हमेशा कठोरता के आवरण में घिरे हुए जमींदार बाबू प्रभास की आवाज़ सुनकर स्वयं को रोक नहीं सके और फोन पर ही फूट-फूटकर रो पड़े।

इधर प्रभास की आँखों में भी आँसू थे।

कुछ देर के बाद स्वयं को संयत करते हुए जमींदार बाबू बोले "बेटे, मुनीम जी से तुम्हारी तरक्की की सारी बातें पता चलती रहती हैं। तुम चिंता मत करो अब मैं तुम पर अपने फैसले नहीं थोपूंगा और ना ही तुम्हें शहर आने के लिए कहूँगा। बल्कि मैं ही तुम्हारे पास आ रहा हूँ हमेशा-हमेशा के लिए और तुम्हारे काका को भी ला रहा हूँ। यहाँ का सारा व्यापार मैंने लगभग समेट लिया है। बस थोड़ा सा और काम बचा है उसे खत्म करते ही मैं गाँव पहुँच जाऊँगा।

तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद धीरे-धीरे मैं ये समझ पाया कि खुश रहने के लिए अथाह संपत्ति की नहीं, अपनों की जरूरत होती है, उनकी और उनकी इच्छाओं की कद्र करने की जरूरत होती है।

बेटे, जो मेरी वजह से तुमसे छीन गया वो मैं तुम्हें नहीं लौटा सकता, बस माफ़ी ही माँग सकता हूँ।"

"एक चीज आप अभी भी लौटा सकते हैं। मेरे हिस्से का खोया हुआ पापा का प्यार-दुलार। जल्दी आ जाइये पापा। मैं आपका इंतज़ार कर रहा हूँ।" प्रभास के स्वर में बचपन वाला उल्लास छलक उठा।

काका भी प्रभास से बात करते हुए भावुक हो गये थे। जब से प्रभास यहाँ आया था उसने गुस्से में उनसे भी बात नहीं की थी कि वो उसके साथ क्यों नहीं आये। आखिर वो भी जमींदार बाबू की ही पक्ष में रहे।

प्रभास के फोन रखने के बाद लाली ने अपने बैग से एक लिफ़ाफ़ा निकालकर उसके हाथ में रखा।

"अब ये क्या है? ये मत कहना कि तुमने अभी से हमारे हनीमून की टिकट भी करवा ली क्योंकि अगली पीढ़ी की भी योजना बनाने लगी हो तुम तो।" प्रभास ने लाली को छेड़ते हुए कहा।

"पहले खोलकर तो देखो। मैं अभी गंभीर हूँ।" लाली गंभीरता दिखाने की कोशिश करती हुई बोली।

"ओह्ह हो, मैडम गंभीर भी होती हैं। आज पता चला मुझे तो।" कहते हुए जब प्रभास ने लिफ़ाफ़ा खोला तो उसमें यूजीसी-नेट की प्रवेश-परीक्षा का फॉर्म था।

उसे देखकर प्रभास ने हैरानी से पूछा "ये क्यों लायी हो?"

"वो क्या है ना कि मैं तो बस डॉक्टर से ही शादी करूँगी, ना सही एमबीबीएस वाला, पीएचडी वाला भी चलेगा।" लाली ने हँसकर कहा।

"चलो ठीक है तुम्हारी ये मनमानी भी मान ली। लेकिन अब ये मत कह देना की पीएचडी लाकर मेरे हाथ में रखोगे तब ही फेरे लूँगी। क्योंकि अब ये प्रभास अपनी खुशियों के लिए और इंतज़ार नहीं कर सकता।" लाली को अपनी तरफ खींचते हुए प्रभास बोला।लाली बिना कुछ कहे बस उसकी बाँहों में सिमट गयी।

अगले महीने ज़मींदार बाबू भी गाँव आ गये। आते ही उन्होंने लाली के घर जाकर उसका और प्रभास का ब्याह तय कर दिया।ब्याह की शहनाइयों ने पिता-पुत्र के रिश्ते में बस गयी खामोशी को प्यार के बोलों से पाट दिया।

वक्त पंख लगाकर उड़ता चला गया।आज अस्पताल की तीसरी वर्षगांठ थी।इस अवसर पर लाली ने अस्पताल के लिए नया साइनबोर्ड बनवाया था जिस पर अस्पताल प्रबंधक के रूप में 'डॉक्टर प्रभास' का नाम जगमगा रहा था।नए बोर्ड को देखकर जमींदार बाबू की आँखों में भी खुशी के आँसू थे।

लाली का हाथ थामे अस्पताल में प्रवेश करते हुए प्रभास के मन में अब ना कोई रिक्तता बची थी, ना टूटे हुए सपनों का दर्द।उसकी लाली ने अपनी समझदारी से ना सिर्फ उसे सही दिशा दिखायी थी, बल्कि अपने स्नेह और अपनेपन से उसके अधूरेपन को भी पूरा कर दिया था।मंच पर मुख्य अतिथियों के साथ मौजूद डॉक्टर अल्का और डॉक्टर प्रभास की जोड़ी मित्रता और प्रेम की नई परिभाषा गढ़ने में सफल होकर एक अलग ही आभा से प्रकाशमान हो रही थी।


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