Saroj Verma

Romance

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Saroj Verma

Romance

मिट्टी के खिलौने

मिट्टी के खिलौने

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ठाकुर मोरमुकुट सिंह की बड़ी सी हवेली के सामने उनके पुरखों का भव्य मंदिर,जिसमें पूजा करने उनकी पाँच साल की बेटी विन्ध्यवासिनी हर रोज जाती है और वहाँ के माली बुधुआ का बेटा भुलवा हर रोज उसके लिए हवेली की बगिया से ताजे फूल लेकर आता है,लेकिन आज विन्ध्यवासिनी मंदिर की सीढ़ियों में बैठी भुलवा का इन्तज़ार कर रही है और भुलवा अभी तक फूल लेकर ना पहुँचा था,तभी विन्ध्यवासिनी ने देखा कि भुलवा फूलों की टोकरी लेकर आ रहा है,वो उसे देखकर मन ही मन खुश हो गई लेकिन खुशी की जगह उससे गुस्सा जाहिर करते हुए बोलीं.....

क्यों रे!भुलवा!मैं कब से पूजा के फूलों के लिए मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी इन्तजार कर रही हूँ और तू अब आ रहा है,

छोटी ठकुराइन!मैं कुछ बना रहा था तुम्हारे लिए उसी में देर हो गई,भुलवा बोला।।

ऐसा क्या बना रहा था तू?विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।

तुम कल कह रही थी ना कि तुम्हारी सहेली मुनिया कजरी के मेले से मिट्टी के खिलौने लाई है तो मैनें तुम्हारे लिए भी मिट्टी का चूल्हा,मिट्टी का चकला बेलन,मिट्टी की कढ़ाई,मिट्टी की बटलोई और बहुत कुछ बनाया है,सुबह सुबह नहरके किनारे से मिट्टी लाकर मैनें यही काम किया,दिनभर में बरतन सूख जाऐगें और शाम को मैं कुम्हार को दे आऊँगा तो वो पका देगा,फिर कल मैं तुम्हारे लिए वो बरतन लेता आऊँगा,भुलवा एक साँस में सब कह गया,

सच!तू ने मेरे लिए मिट्टी के बरतन बनाएं,विन्ध्यवासिनी ने खुश होकर पूछा....

हाँ!छोटी ठकुराइन,भुलवा बोला।।

ला फूलो की टोकरी दें,मैं पूजा करने भीतर जाती हूँ फिर विन्ध्यवासिनी ने खुश होकर वो टोकरी ले ली और पूजा करने मंदिर की ओर चल दी.....

और दूसरे दिन भुलवा ने सारे खिलौने लाकर विन्ध्यवासिनी को दे दिए,विन्ध्यवासिनी मिट्टी के खिलौने पाकर बहुत खुश हुई,उसके पास पीतल के भी खिलौने थे लेकिन भुलवा के दिए हुए मिट्टी के खिलौने उसके लिए अनमोल थे और उस दिन के बाद हर रोज का यही सिलसिला हो गया,जब भी खेलते खेलते विन्ध्यवासिनी के मिट्टी के खिलौने टूट जाते तो भुलवा उसके लिए उसी तरह के दूसरे खिलौने बनाकर ले आता और हर रोज बगिया से विन्ध्यवासिनी के लिए डलिया में फूल ना भी भूलता,बस ऐसे ही दोनों खेलते कूदते बड़े हो रहे थे,ऐसे ही समय गुजरा और दोनों जवानी की दहलीज़ पर पहुँच गए,विन्ध्यवासिनी अब सोलह की हो चली थी और भुलवा अठारहवीं में पहुँच चुका था,दोनों के बीच अभी मालकिन और नौकर का ही रिश्ता था,दोस्ती शब्द का अर्थ शायद दोनों को ही नहीं पता था.....

फिर एक रोज भुलवा को पता चला कि विन्ध्यवासिनी का ब्याह तय हो गया है और वो जल्द ही ससुराल जाने वाली है,इस बात से विन्ध्यवासिनी को भी बहुत कष्ट पहुँचा था,उसे लगा था कि अब उसका मिट्टी के खिलौनों से खेलना बंद हो जाएगा,अब उसे अपनी ससुराल सम्भालनी पड़ेगी और यही बात सोचते सोचते उसने अपने पति के साथ सात फेरे लिए,विन्ध्यवासिनी की विदाई के वक्त भुलवा ने विन्ध्यवासिनी को मिट्टी की बनी दुल्हन और मिट्टी का बना दूल्हा देते हुए कहा....

छोटी ठकुराइन!ये दुल्हन तुम हो और ये सलोना सा तुम्हारा दूल्हा,मुझे भूल मत जाना,इतने कहते ही भुलवा फफक फफककर रो पड़ा,भुलवा की बात सुनकर विन्ध्यवासिनी भी अपने आँसू रोक ना सकी और आँखों में आँसू लिए प्यारी दुल्हनिया अपने पिता ठाकुर मोरमुकुट की हवेली से विदा हो गई.....

समय ऐसे ही बीत रहा था विन्ध्यवासिनी अपने पति के संग खुशी के पलों को साँझा कर रही थी,वो अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थी और तभी उसकी खुशियों में ग्रहण लग गया,एक दिन उसके पति को एक जहरीले सर्प ने डस लिया और मौत उसे अपने साथ ले गई,पति के जाने के बाद अब विन्ध्यवासिनी अपने ससुराल वालों को काँटे की भाँति चुभने लगी,थक हारकर ठाकुर मोरमुकुट सिंह उसे अपनी हवेली में दोबारा ले आएं,अब विन्ध्यवासिनी पहले की भाँति अपना ध्यान पूजापाठ में लगाने लगी और भुलवा भी पहले की भाँती उसे बगिया से ताजे फूल लाकर देने लगा,दोनों पहले की भाँति फिर से हँसने लगें.....

समय बीतता जा रहा था,इसी बीच भुलवा का ब्याह भी तय हो गया लेकिन भुलवा इस बात से बिल्कुल भी खुश नहीं था क्योंकि उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था,एक दिन ऐसे ही बातों ही बातों में विन्ध्यवासिनी ने भुलवा से पूछ लिया....

क्यों रे?तेरी होने वाली दुल्हन को तूने देखा है,

ना!मैनें तो ना देखा अब तक,भुलवा बोला।।

क्यों ना देखा अब तक?विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।

ना दुल्हन देखने का मन है और ना ब्याह करने का मन है,भुलवा बोला।।

लेकिन क्यों?विन्ध्यवासिनी ने पूछा।।

उसका जवाब मैं तुम्हें दो दिन के बाद दूँगा छोटी ठकुराइन और इतना कहकर भुलवा चला गया,भुलवा की इस हरकत से विन्ध्यवासिनी मन में बोली....

पगला है बिल्कुल,ना जाने क्या सोचता रहता है?

और फिर दो दिन बाद भुलवा ने विन्ध्यवासिनी से कहा.....

मैं तुम्हारे सवाल का जवाब लाया हूँ छोटी ठकुराइन!

तो जल्दी से जवाब दे,विन्ध्यवासिनी बोली।।

फिर भुलवा ने फूलों की डलिया में से एक मिट्टी की गुड़िया निकाली और बोला ये तुम हो,फिर दूसरा मिट्टी का गुड्डा निकालते हुए बोला....

ये मैं हूँ छोटी ठकुराइन!अगर ये दोनों मिल जाएं तो,

ये क्या बकता है तू?मैं विधवा हूँ और मेरे लिए ये सोचना ही पाप भी,तूने ये सोच भी कैसे लिया?मैं तुझे अच्छा समझती थी लेकिन तेरे मन मे ऐसा पाप समाया हुआ है, अगर मुझे ये सब पता होता तो मैं तुझसे बात करना तो दूर तेरी शकल भी ना देखती,दूर हो जा मेरी नजरों से और आज के बाद अपनी मनहूस शकल लेकर कभी भी मेरे सामने मत आना....

 और फिर उस दिन के बाद भुलवा कभी भी विन्ध्यवासिनी के सामने नहीं आया,अब उसका बाप बुधवा उसके लिए फूल लेकर आता,विन्ध्यवासिनी ने भी बुधवा से भुलवा की कोई खबर नहीं पूछी.....

ऐसे ही दो तीन रोज तक बुधवा भी फूल देने हवेली नहीं आया तो विन्ध्यवासिनी ने एक नौकर से बुधवा के बारें में पूछ आने को कहा......

 कुछ ही देर में वो नौकर हवेली वापस लौटा और उसके हाथों में मिट्टी के खिलौनों की बहुत बड़ी डलिया थी,जिसमें तरह तरह के खिलौने थे,उस नौकर ने वो डलिया विन्ध्यवासिनी को देते हुए कहा.....

छोटी ठकुराइन!ये खिलौनें आपके लिए भुलवा ने बनाएं,ये ले लीजिए,ये कृष्ण की मूर्ति भी खासतौर पर उसने आपके लिए बनाई है......

मुझे नहीं चाहिए उसके बनाएं मिट्टी के खिलौने,विन्ध्यवासिनी चीखी।।

मरने वाले की यही अन्तिम इच्छा थी,पता नहीं बहुत दिनों से उसकी तबियत खराब थी,उसने खाना पीना भी छोड़ रखा था,ना जाने अपने किस पाप का प्रायश्चित करने में लगा था,बस दिन रात मिट्टी के खिलौने बनाता रहता था,वैद्य जी से इलाज भी करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ,बस दिन रात रोता रहता और अपनी माँ से कहता .....

माँ!मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है,मैं जीना नहीं चाहता।।

ये सब उसकी माँ ने मुझे बताया और परसों सुबह सुबह उसने प्राण त्याग दिए,इसलिए उसका बाप बुधुवा भी दो दिनों से फूल देने नहीं आया,इतना कहकर वो नौकर मिट्टी के बरतनों की डलिया रखकर चला गया,

और इधर विन्ध्यवासिनी ने मिट्टी से बने उस कृष्ण की मूर्ति को अपनों हाथों में उठाकर माथे से लगा लिया फिर बड़ी सी डलिया में रखें ढ़ेर सारे मिट्टी के खिलौनों को स्पर्श करके फूट फूटकर रो पड़ी.....


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