Arunima Thakur

Abstract Romance Tragedy

3.8  

Arunima Thakur

Abstract Romance Tragedy

बुद्धू हो ...

बुद्धू हो ...

6 mins
355


आज उसको इतने बरसों बाद अचानक सामने देखकर..... क्या कहूँ... दिल को आज भी मैंने कुछ सोचने की इजाजत दी ही नहीं है। तो वह उसे देखकर खुश तो हुआ पर प्रदर्शित नहीं कर पाया। मैं आगे बढ़ी, कैसा अजीब इत्तफाक है हमारी मुलाकात एयरपोर्ट पर हुई है। हमेशा की तरह हमारे रास्ते अलग है। पर फिर यह टकराए क्यों ? क्यों आज वह मुझे यहां दिख गया ? मैं शायद उसे देख कर अनदेखा भी कर देती, शायद....। पर उसने भी मुझे देख लिया था। वह आगे बढ़ा तो मैं भी आगे बढ़ गई। मैंने पूछा, "और कैसे हो?"


वह बोला, "आज भी बुद्धू हो । यह भी कोई सवाल है पूछने के लिए।"


हाँ सच ही तो है, बुद्धू ही हूँ मैं। एयरपोर्ट पर खड़ा है तो भला चंगा, खाता पीता, संपन्न ही होगा। वह बोला, "और बताओ?"


मैंने कहा, "कुछ है ही नहीं बताने के लिए, तुम बताओ । तुमसे पूछने के लिए बहुत सारी बातें हैं मेरे पास । तुमने निराली से शादी क्यों नहीं की ?"


उसने छूटते ही पूछा, "तुमने सलिल से शादी क्यों नहीं की ?" फिर हँसते हुए बोला,"बुद्धू हो, ना हाल चाल पूछा, ना बीबी बच्चों के बारे में पूछा। पुरानी बातों के बारे में बात करने से क्या फायदा?"


मैं अवाक रह गई । उसकी पूरी बात सुन ही नहीं पायी, "सलिल से शादी और मैं... क्यों ?"


वह बोला, "कहता हूँ ना बुद्धू हो। अरे सलिल तुम्हें कितना चाहता था।"


"तो उसके चाहने से क्या होता है ? मैं तो उसे नहीं चाहती थी ।"


"तो तुम किसे चाहती थी ?"


कितनी आसानी से पूछ लिया आज, बुद्धू मैं नहीं तुम हो, पहले कभी क्यों नहीं पूछा? कितनी सारी बातें दिल में घुमड़ कर रह गईं। दिल ने कहा आज मौका मिला है तो चिल्ला कर उसे बोल दो, 'तुमसे ...मैं तुमसे प्यार करती थी।" पर दिल पर फिर दिमाग हावी हो गया और मैं बोली, "तुम जानते हो मेरे परिवार को। मैं अपने पापा मम्मी का सिर झुका नहीं सकती थी। इसीलिए इन सब पचड़ों में कभी पड़ी ही नहीं । कोई मेरी जाति का होता तो शायद मैं मम्मी पापा से बात भी करती।" हुँह यह दिल भी ना आखिर उसने अपने मन की कर ही ली यह सब बोलकर। क्या जरूरत थी ऐसा बोलने की। मैं अपने दिल दिमाग की लड़ाई को शांत करवा रही थी कि उसकी आवाज़ गूंजीं, "हाँ तो बस इसीलिए मैंने भी। निराली को मैं पसंद था... तुमने कभी जानने की कोशिश की मुझे कौन पसंद है ?"


"मैं क्यों कोशिश करती ?"


मुझे तो आज भी याद है वह दिन । नहीं नहीं शुरू से बताती हूँ जब स्कूल में वह हमारे क्लास में आया था। उस जमाने में भी सह शिक्षा के स्कूल में हम पढ़ते थे। जहां लड़कियां कम थी । हम पाँच लड़कियों का समूह था। हमारी क्लास में दो लड़के सलिल और मनन हमेशा साथ रहते थे। वैसे तो पूरे क्लास से ही दोस्ती थी। पर वह अपने साथ किसी को शामिल नहीं करते थे। हम उन पर हँसते कि यह दोनों बड़े होकर शादी कर लेंगे। पर वह उनके समूह में आसानी से शामिल हो गया। अब उनकी तिकड़ी बन गई थी। अब हम लड़कियाँ आपस में फालतू की बकवास करते वक़्त सोचते अब मनन और सलिल आपस में शादी करेंगे या वह नया लड़का। जो भी हो वह उम्र ही वैसी थी बिना मतलब की बातों को करने और सोचने की।


 वैसे तो हम सब साथ में ही रहते थे। पर उस दिन हमारा खेल का पीरियड था। हम सब अपने अपने दोस्तों, सहेलियों के साथ खेल रहे थे। मुझे प्यास लगी तो मैं पानी पीने के लिए क्लास में जाने लगी। वहीं खाली क्लास में मुझे उनके बात करने की आवाज सुनाई दी। हम वैसे भी उनके पीछे करमचंद बनें घूमते थे तो मैं उनकी बातें सुनने के लिए बाहर ही रुक गयी। तीनों बात कर रहे थे।


मनन की आवाज आयीं, "साले तेरे चक्कर में मेरा 'पायलट' का पेन गया। पता नहीं वह उसे वापस करेगी या नहीं ।"


वह बोला, "अरे तुम्हें पेन की पड़ी है सालों मेरी सेटिंग....।"


मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पायी और अंदर जाते हुए बोली, "तुम लोग किसकी बात कर रहे हो।"


वह सकपका गए, किसी की भी नहीं । पर मुझे तो बड़ी मजा आ गई। मैं तो भाग कर बताने चली गई लड़कियां को। पागल हो जाएंगी सुनकर कि सलिल और मनन की जोड़ी नहीं टूटेगी। वह नया लड़का है ना किसी को पसन्द करता है, किसी लड़की को।"


"तुझे कैसे मालूम ?"


"अरे मैं अभी सुन कर आ रही हूँ।"


मुझे लगा था लड़कियों को सलिल और मनन की लवस्टोरी में ज्यादा दिलचस्पी होगी । पर वह पूछने लगी, "बताओ ना क्या सुना?"


"वह जो नया लड़का है ना उसने किसी को पेन दिया है। लगता है किसी जूनियर क्लास में दिया होगा।"


तब से निराली का चेहरा शर्म से लाल हो गया। एक सहेली मेरे सिर पर टपली मार कर बोली, "अरे तुझे याद नहीं है। कल की ही तो बात है। निराली को पेन चाहिए था । हमारे पास जो पेन थे वह , वह प्रयोग करके देख चुकी थी। उसे उनसे लिखते जम नहीं रहा था।"


हाँ न तब मैंने बगल में बैठी तिकड़ी से बोला था, "तुम्हारे पास एक्स्ट्रा पेन हो तो देना।" और मैं पढ़ने में व्यस्त हो गयी थी। उसने झट से एक पेन निकाल कर हमारी ओर बढ़ाया था। मैं व्यस्त थी और पेन निराली को चाहिए था तो निराली ने हाथ बढ़ाकर पेन ले लिया था और मुस्कुरा कर आँखों से धन्यवाद भी कह दिया था। बात आई गयी हो गयी थी। पर आज उसका कहना था कि वह जिसको उसने पेन दिया , वह उसकी सेटिंग थी।


अब तो हमें मौका मिल गया था हम निराली को उसके नाम से चिढ़ाते । निराली थी भी बहुत सुंदर तो किसी भी लड़के का उस पर मर मिटना जायज था ।


मैं वर्तमान में आते हुए बोली, "अच्छा बेटा पेन और दिल का आदान-प्रदान तुम कर रहे थे और पूछ मुझसे रहे हो ?


"पेन ...? पेन का क्या ?"


"अरे उस दिन तुम ही तो कह रहे थे सलिल से कि पेन उसका पेन तुमने अपनी सेटिंग को दिया ।"


"दिया नहीं, के लिए माँगा था।"


मैं हैरानी से एक ही बात है।


"नहीं ! तुम बुद्धू की बुद्धू ही रहोगी । पेन माँगा किसने था ?"


किसने...?


बुद्धू तुमने ....


मैं उसे बड़े गौर से देख रही थी । अजीब मजाक था जिंदगी का। मुझे लगता था कि उसे निराली पसंद है। सलिल ने उससे कहा, "वह मुझे प्यार करता है।" ना उसे निराली पसन्द थी न मुझे सलिल।


"तो कभी इस बात का खंडन क्यों नहीं किया, इंकार क्यों नहीं किया कि तुम्हें निराली नहीं पसन्द ।"


"तुमने कभी क्यों नहीं कहा कि तुम्हें सलिल नहीं पसन्द।"


"मुझे क्या मालूम सलिल मुझे पसन्द करता था। मालूम होता, कभी कहा होता उसने सामने से तब न ना बोलती।"


"हाँ तो मुझे भी क्या मालूम निराली के बारे में?


"पर निराली को तो तुम पत्र लिखते थे । चॉकलेट और गिफ्ट देते थे।"


"सब फर्जी था। सलिल और निराली की सेटिंग पहले से थी।"


तो वह झूठ कह रहे थे कि उनकी अरेंज मैरिज है ?


"बुद्धू हो तुम , अब भी पूछ रही हो।"


वह सच कह रहा था। मेरे कानों में निराली के शब्द गूँज रहे थे, "पागल हो शादी करने की बात कहां से आ गई ? वह तो स्कूल का टाइम पास था।" क्या सच में प्यार टाइम पास होता है ? और हम बिना मतलब में दोस्ती के लिए त्याग दिए पड़े थे। काश उस वक्त दोस्ती छोड़कर दिल की बात सुन ली होती। तो दो दोस्तों का टाइमपास दो दिलों के ना मिलने की वजह नहीं बन पाया होता।

फ्लाइट की उद्घोषणा होने लगी थी। अब मुझे निकलना ही था। बरसों पहले उससे बिछड़ते समय उतना दुःख नहीं हुआ था जितना अब हो रहा था। मैंने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, "चलती हूँ।"

उसने कहा,"बुद्धू हो तुम, बोलो मिलती हूँ।"

मैं मुस्कुरा दी पता नहीं मैं बुद्धू थी या बात बात पर मुझे बुद्धू कहने वाला वो। काश उसे पता होता, मिलना ही नसीब में होता तो क्या यूँ हम बिछड़ते


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract