वो और उसकी यादें...
वो और उसकी यादें...


कॉलेज से जैसे ही बाहर निकली अचानक से जोरदार बूंदों के साथ बारिश शुरू हो गई। यह बारिश भी ना और बारिश से ज्यादा तो मैं... अरे मालूम है तो रेनकोट एक्टिवा की डिक्की में क्या कर रहा है ? फिर खुद ही अपना पक्ष लेते हुए बोली,"तीन दिन भयंकर बारिश के बाद आज सुबह से तो मौसम साफ ही था। तो लगा ही नहीं यूँ अचानक बारिश शुरू हो जाएगी । अगर जरा भी ऐसा अंदेशा हो जाता मौसम को देख कर तो रेनकोट किसी बच्चे को भेजकर मंगवा लेती । बच्चें शब्द के साथ ही उसकी तस्वीर आँखों में तैर गई, आँसुओं के साथ। वास्तव में हुआ यूँ था कि मैंने लेक्चर खत्म किया। स्टाफ रूम में गई, अपना सामान समेटा और बाहर आते भर में तो मौसम बदल गया। अब मैं वही खड़ी थी मानो लग रहा था अभी आकर कहेगा, "मैम लाइए चाबी दीजिए । आपका रेनकोट लेकर आता हूँ।" उसे बारिश में भीगने का बहुत शौक था। उसे पहली बार देखा भी था भीगते हुए ही। पिछले से पिछले साल की बात है। कॉलेज का नया सत्र और मानसून साथ ही आते हैं। उस दिन भी शायद कॉलेज का पहला या दूसरा दिन था, उप्स सॉरी कॉलेज को तो खुले पंद्रह दिन हो गए हों गए थे। ग्यारहवीं के विद्यार्थियों का पहला दिन था । नए-नए जवान हुए बच्चे हीरो बने चले आ रहे थे। ग्यारहवीं में थे, तो उनको स्कूटी, बुलेट चलाने को मिली थी तो वह सब एक अलग ही नक्शे में थे। खैर उनके लिए नया होगा यह सब, मेरे लिए पुराना था। मैं कुछ चार सालों से यहां जीव विज्ञान की प्रोफेसर हूँ।
उस दिन भी ऐसे ही स्टाफ रूम से निकलकर क्लास के लिए जा रही थी कि बाहर गलियारे में आकर कुछ लड़कियों के पूछने पर ग्यारहवीं के विद्यार्थियों को उनका क्लास बताने लगी। सामने नजर पड़ी तो देखा जहां बारिश के शुरू होते ही सारे बच्चे भागते हुए कॉलेज की तरफ आ रहे थे वह दोनों हाथों को फैलाए, आकाश से आती बूंदों को अपने में समेट रहा था। कंधे पर बैकपैक पर कवर चढ़ा था, मतलब किताबों की चिंता थी। अब वह दोनों हाथों को पैंट की जेब में डालें आराम से चलता हुआ रहा था । मेरी नजरें उस पर थी छह फुट से ज्यादा की लंबाई, अच्छी कद काठी, सलीके से कटे बाल। हाँ जैसे आजकल के बच्चे रखते हैं ना वह बीच में घोंसला और किनारे से सफाचट वैसे नहीं थे। मुझे लगा किसी बड़ी क्लास में न्यू एडमिशन (नया प्रवेश) होगा। पास आने पर मैं उसे देख कर बोली, "क्यों भीग रहे हो ? बीमार पड़ जाओगे?"
वह अंदर आया, हाथों से गीले बालों को झटकते हुए और दूसरे हाथ से जेब से रुमाल निकाल कर मुँह पोंछते हुए बोला, "नो बेबी इम्युनिटी बहुत स्ट्रांग है। देखो करोना के बाद भी सही सलामत हूँ।"
मैं चिढ़ कर गुस्से से बोली,"हे न्यू एडमिशन ! बेबी किसको बोला ? मैं प्रोफेसर हूँ।"
वह वैसे ही मुँह पोंछते हुए रुमाल से मुँह ढक कर मेरी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया, उप्स फिर जोर से घूम कर मुँह ढके हुए ही "सॉरी मैम" कहकर ऊपर की ओर भाग गया। मुझे हँसी आ गई, बेवकूफ इंसान ! जैसे उसका चेहरा छुपा लेने से मैं उसको पहचान नहीं पाऊंगी। मैं उसे बोल भी नहीं पाई कि ऊपर तो ग्यारहवीं की क्लासेज है। ऊपर मत जाओ।
कुछ घंटों बाद मैं ग्यारहवीं की क्लास में गई। अपना परिचय दिया, बच्चों का परिचय लेना शुरू किया। लगा दूसरी पंक्ति में कोई छुपने की कोशिश कर रहा है, देखा तो वही था। मैंने उसको उठने का इशारा करते हुए कहा, "हाँ तुम ! सुनो, यह ग्यारहवीं की कक्षा है।"
वह खड़े होकर बोला,"यस मैम ।"
"तो तुम यहां क्या कर रहे हो?"
"क्योंकि मैं भी ग्यारहवीं में हूँ।" उसके इतना बोलते ही सब हंस पड़े । वो थोड़ा आश्चर्य थोड़ी दुविधा में लग रहा था। अब मैंने चेहरे को गौर से देखा। ओह्ह, पहले जिसे मैं क्लीन शेव्ड समझ रही थी, वह तो उसकी मासूमियत की निशानी थी। उसकी तो अभी होठों पर मूछों की रेखा बननी शुरू हुई थी। जबकि इसी क्लास में बहुत सारे बच्चों को अच्छी खासी दाढ़ी मूँछ आ गई थी। "ओह्ह सॉरी, बैठ जाओ।"
"कोई बात नहीं, मैम"
"अच्छी खासी लंबाई होने के बावजूद भी वह हमेशा आगे की पहली या दूसरी बेंच पर बैठता । मैं टोकती तो कहता, "मुझे चश्मा है, दूर से नहीं दिखता है। वैसे भी मैं किनारे पर बैठा हूँ। इन सब को आदत है।"
पर मुझे आदत नहीं थी। वह मुझे एकटक देखता रहता। बड़ा अजीब लगता था पर कुछ भी पूछो तो पहला हाथ उसका ही ऊपर उठता। सारे जवाब सही देता । डाँटने का मौका ही नहीं देता। पर उसकी आँखों के भाव मुझे असहज करते। वह मेर
े आगे पीछे घूमता , ढूँढ़ ढूँढ कर सवाल लाकर पूछता। कभी मेरी तारीफ करता, मैम आज तो आप बहुत अच्छी लग रही हो, या मैम यह रंग आप पर बहुत खिल रहा है। पर उस बच्चे जैसे मासूम चेहरे को देखकर मैं डाँट भी नहीं पाती। क्योंकि उसका आचरण कहीं से भी अमर्यादित नहीं था। फिर एक दिन कुछ लड़कियों को कहते सुना, 'साला भाव ही नहीं देता है। वह बायो वाली टीचर के आगे पीछे घूमता रहता है।' मुझे लगा यह बात ज्यादा आगे बढ़े और बतंगड़ बने उससे पहले ही मुझे उसे समझाना चाहिए। वह बच्चा है उसकी तो उमर है हार्मोनल बदलाव की, पर मुझे तो उसे सही राह दिखानी चाहिए। तो एक दिन जब वह सवाल पूछने आया, स्टाफ रूम में कोई नहीं था। मैंने बोला, "बेटा अभी ऐसा करने के लिए तुम बहुत छोटे हो। मैं टीचर हूँ तुम्हारी ..."
मेरी बातों को काटते हुए वह बोला, "मिस आप क्रश हो मेरा। अगले साल तो मैं चला ही जाऊंगा। बस दो साल ही तो हूँ यहां पर। कुछ सालों बाद मैं अपने बच्चों को लेकर आऊंगा आपसे मिलवाऊँगा 'यह देखो यह मेरा तीसरा क्रश। आप अपने बच्चों को कहोगी एक पागल लड़का था। आपको इतने बच्चों में किसी का नाम याद नहीं रहेगा और मेरा नाम आप कभी भूल नहीं पाओगे। मुझे याद करते ही आपके चेहरे पर मुस्कान आ जायेगी।"
"तीसरा क्रश.... मतलब ?"
"ओ हो ...वेरी पजेसिव...." बोलकर वह शरारत से मुस्कुरा दिया ।
मैंने उसके सिर पर चपत मारी, "ओह्ह शटअप।"
"फर्स्ट क्रश मम्मा, दूसरा क्रश दीदी । वैसे मैम किसी का क्रश होना इतनी बुरी बात भी नहीं होती । बस आपसे बात करना, आपको देखना, आपके साथ रहना अच्छा लगता है। वैसे मैम .. मैं न आपको वैलेंटाइन डे के दिन प्रपोज करूँगा", कहकर शरारत से मुस्कुरा कर वह चला गया।
मैं सिर पकड़ कर बैठ गई । यह लड़का भी ना, पागल है। वैसे कुछ गलत तो नहीं कह रहा था । लोगों ने प्यार शब्द को, भावना को दूषित कर दिया है। अगर प्यार इतना ही गलत होता तो गोपियों का स्नेह कान्हा के लिए पवित्र नहीं माना जाता ना ।
मैंने अक्सर उसे बारिश में भीगते हुए देखा । मैंने पूछा भी तुम्हें बारिश में भीगना इतना अच्छा क्यों लगता है ?
तो वह बोला, "पता नहीं मैम। मुझे तो यह लगता है जैसे यह बारिश नहीं मेरे पापा की ब्लेसिंग (आशीर्वाद) है। इसमे मैं उनका एहसास महसूस करने की कोशिश करता हूँ।"
मेरा दिल भर आया, दया आयी, पर यह बच्चा दया का पात्र नहीं था । इतना शरारती था कि लगभग रोज ही मुझे याद दिलाता कि इस वेलेंटाइन डे पर वह मुझे प्रपोज करने वाला है । साथ ही कहता, "आप सर (मेरे पति) के लिए फूल मत लीजिएगा । मैं दूंगा ना आपको, वही फूल उनको दे दीजिएगा। पर हाँ एक फूल मेरे लिए जरूर लाइएगा।"
पर जिस तरह से मैं डर रही थी । मुझे किसी भी तरह की कोई बात सुनने को नहीं मिली। वैसे भी वह सभी टीचरों का चहेता था। अनुशासनप्रिय, अपने दोस्तों को साथ लेकर चलने वाला। तो शायद उसने अपने दोस्तों को भी समझा दिया होगा। लोगों को कन्वींस करने की अद्भुत शक्ति थी उसके पास ।
सच में वह बहुत प्यारा था। इतना प्यारा कि भगवान को भी उस पर प्यार आ गया और बिना किसी कारण के भगवान ने अपने पास बुला लिया, वैलेंटाइन डे के ठीक एक दिन पहले। वैलेंटाइन डे के दिन ही उसकी विदाई थी। वह तो मेरे लिए फूल नहीं ला पाया था पर मैं गई थी उसके लिए फूल लेकर। अचानक से वैसे ही बेमौसम की बारिश होने लगी थी, हल्की-हल्की। मुझे लग रहा था यह जो लेटा है अभी उठ कर बाँहे खोल कर खड़ा हो जाएगा। शायद मुझे चिढ़ाये भी मैम देखिये मैंने कहा था ना आप फूल लाएंगी मेरे लिए । पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बारिश की कोशिशों के बाद भी वह नहीं उठा । शायद अब उसे पापा का एहसास महसूस करने के लिए बारिश की जरूरत नहीं थी । वह उनके पास ही था ।
पर वह अभी भी मुझे सामने दिख रहा है। अक्सर दिख जाता है बारिश में दोनों हाथों को फैलाकर भीगता हुआ। मुझे मालूम है यह झूठ है। पर आँखे वही देखती है जो यह दिल देखाना चाहता है । मुझे उसकी कही बात याद आ रही है। उसको याद करके मेरे चेहरे पर मुस्कान हो कि ना हो आँखों में आँसू जरूर आ रहे हैं। मैं चलती चली जा रही हूँ बारिश में भीगती हुई । वह कहता था ना यह बारिश की बूंदे हमारे अपनों की ब्लशिंग होती है । मैं इन बूंदों में उसके अहसास, उसके स्नेह को महसूस करने की कोशिश कर रही हूँ। मैं भीग रही हूँ, इस बारिश में, उसके स्नेह में या उसकी यादों में।