Shubhra Varshney

Inspirational

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Shubhra Varshney

Inspirational

परफैक्ट

परफैक्ट

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खिड़की पर खड़ी तूलिका बहुत देर से देख रही थी कि समुद्र की लहरें समुद्र से ही लड़ कर आगे जाकर वापस उसने ही मिल रही थी, मानो सीमा में बंधीं वह लहरें सागर से निकलने को आतुर थी पर वापस सागर में ही मिल जाना उनकी नियति थी।

उसी प्रकार तूलिका के मन के भाव उसके मस्तिष्क से लड़कर बाहर नहीं आ पा रहे थे वही पछाड़े खा रहे थे।

इस तरह लहरों को निहारने के उसके जुनून ने ही उसको 'सी फेसिंग' 'अपार्टमेंट' लेने को प्रतिबद्ध कर दिया था। अपनी धनराशि का बड़ा हिस्सा उसने इस को पूरा करने में लगा दिया और आज वही लहरे जैसे उसे मुंह चिढ़ा रही थी।

जिंदगी में सब कुछ कितना 'परफैक्ट' चल रहा था जब तक उसने डॉ दिव्या के 'क्लीनिक' पर 'विजिट' नहीं की थी।

वहां से लौटने के बाद उसका मस्तिष्क अपने ही बुने विचारों से मुक्त नहीं हो पा रहा था।

'प्लान्ड प्रेगनेंसी' के बाद 'रेगुलर चेकअप' के दौरान

जब डॉक्टर दिव्या ने कहा कि बच्चे की 'ग्रोथ' जानने के लिए 'सोनोग्राफी' करानी होगी ।तब वह व्योम के साथ सोनोग्राफी की रिपोर्ट लेकर कल डॉ दिव्या के क्लीनिक पहुंची थी।

डॉ दिव्या ने जो कहा वह कल से आज तक उसके कानों में गूंज रहा था।

" तूलिका 'योर बेबी' इस शोइंग सम सिम्टम्स ऑफ डाउन सिंड्रोम', मैं 'श्योर' तो नहीं पर 'ग्रोथ' बहुत 'पुअर' है बच्चे का 'फ्यूचर' 'डाउटफुल' है।" दिव्या के स्वर में चिंता साफ झलक रही थी।

"डाउन सिंड्रोम यू मीन एब्नार्मल बेबी", दिव्या की बात काटती हुई व्योम ने तुरंत कहा।

दिव्या ने कहा, "पूरी तरह से 'एब्नार्मल' नहीं पर बच्चा शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो सकता है ग्रोथ बहुत स्लो रहेगी या शायद ग्रोथ हो नहीं।"

"सॉल्यूशन' क्या है?" व्योम ने अधीर हुए पूछा।

"यू मे एबार्ट दिस बेबी, आप बच्चे से मुक्ति पा सकते हैं कानून भी इसकी इजाजत देता है।" डॉ दिव्या ने स्पष्ट शब्दों में कहा।

तूलिका निशब्द दोनों की बातें सुन रही थी।

बिना कुछ कहे वह व्योम साथ क्लीनिक से लौटने लगी।

घर लौटते हुए जहां व्योम बहुत परेशान था वही तूलिका सागर सरीखी शांत हो गई थी। पर उसके मन में विचारों का झंझावत गहरा रहा था।

क्या गलत हो गया , सब कुछ कितना 'परफैक्ट प्लान' किया था जिंदगी में उसने।

बचपन से लेकर आज तक मनचाहा पाने को ना संघर्ष से पीछे हटी थी ना मेहनत से।

दादाजी के दिए नाम को उसने सार्थक सिद्ध कर दिया था , अपनी मेहनत से जीवन की पुस्तक को तरह-तरह के रंगों से सजाती चली आ रही थी वह।

बचपन से जो सदैव आगे रहने की इच्छा थी वह 'परफैक्ट' बनने के जुनून में कब बदल गई उसे पता ही नहीं चला।

पहले स्कूल 'टॉप' किया फिर 'आई.आई.टी' 'क्लियर' और फिर 'टॉप क्लास' 'एमएनसी' में 'कैंपस सिलेक्शन'।

आगे बढ़ती गई, जब लगा शादी की उम्र ना निकल जाए तो मां पापा के चुने व्योम से रिश्ते को उसने बेझिझक मोहर लगा दी।

अब उसके प्रगति पथ का व्योम भी साथी था। समुद्र की लहरें उसे सदा लुभाती थी, ऑफिस से लौटती वह व्योम के साथ लहरों को छूकर अक्सर आती।

और इसी के चलते उससे अपना आशियाना चुनने में बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ी। लहरें अब उसकी नजरों की कैद में थी, दिन भर की थकान अपने 'अपार्टमेंट' की बालकनी से लहरों के साथ 'कॉफी'

से उतर जाती थी।

व्योम उसे अक्सर छेड़ता 'कॉफी विद लहरे' हिट है तुम्हारा।

सब कुछ चल रहा था 'परफैक्ट' बहुत 'परफैक्ट, ' जब तक एक दिन ऑफिस से लौटते हुए कार से बाहर दिखते एक छोटे बच्चे ने उसे अपनी और आकर्षित नहीं किया।

बालक की निश्छल चेष्टाऐं तूलिका को बहुत लुभा रही थी और उसके मन में कोमल भावनाएं जन्म लेने लगीं।

शुरुआती असफलता के बाद उसने अपनी 'गाइनेकोलॉजिस्ट' मित्र दिव्या से संपर्क किया।

जल्द ही यहां भी उसे सफलता मिल गई और इसी के चलते वह दिव्या के क्लीनिक गई थी।

कार की ब्रेक के साथ दिव्या के विचारों पर भी ब्रेक लग गया था और वह वर्तमान में लौट आई थी।

अब बालकनी में बैठी तूलिका लहरों को निर्विकार भाव से देख रही थी।

व्योम ने उसे कॉफी का मग देते हुए कहा ,"वी कांट अफोर्ड दिस चाइल्ड। ऐसा हमने नहीं सोचा था।

'डोंट वरी' मैं 'अबॉर्शन' के लिए दिव्या से 'अपॉइंटमेंट' ले लेता हूं।

तूलिका ने शांत स्वर में कहा,"बट आई विल कैरी, मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी।"

व्योम ने क्रोधित होते हुए पूछा,"मैनेज कैसे करोगी?"

"वैसे ही जैसे मैंने सब सोचकर ही प्लान किया था",

कहने के साथ तूलिका शांत हो गई।

दिव्या भी उसके निर्णय से अचंभित थी पर उसका दृढ़ निश्चय देखकर उसकी सहायता को तैयार हो गई।

पथ कठिन था तो लक्ष्य तक पहुंचने का संघर्ष और भी कठिन।

दिव्या की 'सुपरविज़न' में उसकी 'प्रेगनेंसी' 'ग्रो' कर रही थी।

दिन गुजरते गए व्योम की इच्छा के विरुद्ध लिए निर्णय से तूलिका दृढ़ तो थी पर आंतरिक रूप से भययुक्त भी थी।

डॉक्टर दिव्या ने भी 'ट्रीटमेंट' में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। तूलिका की दृढ़ इच्छाशक्ति ने उसके 'लॉजिक' को जो परास्त कर दिया था।

अब तूलिका की मां भी उसके साथ रहने आ गई थी,

भय उन्हें भी था पर वह सदैव की तरह अपनी बेटी की रजामंदी में ही रजामंद थी।

ऑफिस से भी उसे 'लीव' मिल गई थी। वह स्वयं को शारीरिक व मानसिक रूप से चुनौती के लिए तैयार कर चुकी थी।

नियत समय पर उसने एक बेटे को जन्म दिया। बेहद कमजोर पर शारीरिक रूप से पूर्ण बच्चे को देखकर तूलिका को थोड़ा संतोष हुआ पर परीक्षा अभी बाकी थी।

बेटे को तूलिका ने आरव नाम दिया था। आरव बढ़ने लगा पर उसका विकास सामान्य से थोड़ा पीछे था। तूलिका ने उसकी देखभाल के लिए अपने छुट्टियां और बढ़ा दी थी।

आरव अपने विकास की नियत समय से पीछे था और अक्सर अपनी कम प्रतिरोधक क्षमता के कारण बीमार पड़ जाता। अपनी उम्र के बच्चों की तरह वह 'रिस्पांस' भी 'शो' नहीं करता था इसी के चलते व्योम हमेशा चिड़चिड़ाता रहता था।

व्योम के व्यवहार को देखकर तूलिका ज्यादा विरोध नहीं करती थी क्योंकि वह जानती थी यह निर्णय उसका स्वयं का है, तो इस स्थिति से भी उसे स्वयं ही निकलना है।

तूलिका की बहुत अच्छी देखभाल से आरव अब धीरे-धीरे बड़ा तो रहा था पर दो वर्ष का होने तक भी अभी उसमें बोलने की शक्ति नहीं उदित हुई थी।

'पीडियाट्रिशियन' का कहना था कि कोई विशेष कमी नहीं है यह धीरे-धीरे बोलने लगेगा।

मां अब तूलिका के साथ ही रहती थी, तूलिका ने अपना 'ऑफिस' फिर से जॉइन कर लिया था। पर अब वह नियत समय पर घर लौट आती थी।

घर लौट कर आरव को वह लेकर बैठ जाती और उसे धीरे धीरे सब समझाती। वह उससे लगातार बोलती थी पर बदले में आरव उसे केवल टुकुर टुकुर देखता था।

कभी-कभी तो लगता कि उसका विश्वास डगमगा जाएगा पर वह दोबारा नई ऊर्जा के साथ आरव को सिखाने में लग जाती।

एक दिन व्यस्तता के चलते वह बहुत थक गई थी और 'ऑफिस' से आकर आरव को सोता हुआ देखकर अपनी 'कॉफी' बनाकर 'बालकनी' में आकर बैठ गयी।

आंखें मूंदकर वह अपनी अब तक के जीवन का विश्लेषण कर रही थी कि क्या वाकई उसकी 'लाइफ' 'परफैक्ट' थी।

तभी उसे अपने हाथों पर नन्हें आरव के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ। आरव के 'ममा' कहने के साथ ही उसने अपनी आंखें खोल दी।

उसने झट आरव को गोद उठा लिया। आरव फिर बोला 'ममा'।

आंखों में आंसू लिए वह अब आरव के साथ बालकनी में नाच रही थी।

लहरें अब बहुत से उठने लगी थी जैसे कह रही हो, "हां सब कुछ परफैक्ट ही तो है।"


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