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Shubhra Varshney

Inspirational

3  

Shubhra Varshney

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सपना सच हो गया

सपना सच हो गया

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ट्रिन ट्रिन ..... फोन के अलार्म की कर्कश धुन ने रीमा को जगा दिया.... उसने देखा 5:00 बज गए थे सुबह के।

अलार्म बंद कर तकिया फिर मुंह पर रख लिया.... एक नींद और लेना चाहती थी अभी।

स्नूज़ मोड़ पर लगा रखा था तो अलार्म एक बार फिर तीस सेकंड बाद बज गया.... वह बंद करने ही वाली थी कि आवाज़ सुनकर बराबर में सोया मिंटू भी जग गया।

" मम्मा पानी पीना है", आँखें मलते हुए मिंटू कसमसाया था।

रीमा ने लाइट जला कर देखा कहीं उसने बिस्तर तो गीला नहीं कर दिया था।

कुछ दिनों से बुखार के बाद आई कमजोरी से चार वर्षीय मिंटू अक्सर बिस्तर गीला करने लगा था।

आज बिस्तर सूखा था... वह मिंटू को पानी लेने चली गई... गलती से कमरे की लाइट जली रह गई।

बाहर निकल ही रही थी कि 9 वर्षीय पूर्वी चिल्लाई," मम्मा यार लाइट तो बंद कर जाओ"

बच्चों का शोर सुनकर अमित उठ बैठे थे.... घड़ी देखकर झल्ला उठे," यार तुमसे एक बार में अलार्म से नहीं उठा जाता है तो अलार्म लगाती ही क्यों हो.... जब तक सब सोते से उठ ना जाए तुम्हें चैन नहीं पड़ता.... सोच रहा था कि अभी एक घंटा और सोऊंगा ...आज ऑफिस में प्रेजेंटेशन है ...सिर भारी कर दिया सुबह सुबह"

रीमा ने घबराकर लाइट बंद की।

मिंटू को पानी पिला कर दोबारा सुलाया.... "हालांकि अभी आधे घंटे बाद ही उठाना पड़ेगा स्कूल बस 7:00 आ जाती है लेकिन वह अभी उठाएगी तो दोनों बच्चे शोर कर देंगे" सोचती हुई रीमा दुपट्टा कमर में बांधती हुई किचन में पहुंच गई थी।

चाय का पानी चढ़ाना था.... बाबूजी जग गए होंगे।

बाबू जी को चाय देने के बाद तुरंत सब्जी काट उसने छोंक दी।

"6:00 बजने को आए थे यह मालती अभी तक क्यों नहीं आई", सब्जी चलाती वह सोच ही रही थी कि तभी माइक्रोवेव पर रखा उसका फोन घनघना उठा।

फोन पर मालती का नंबर उभरा।

" कहां रह गई तू अभी तक क्यों नहीं आई?" रीमा आगे कुछ कहती उससे पहले मालती ने कराहते हुए कहा," दीदी इस कमीने ने रात मुझे फिर बहुत मारा है.... अंग अंग टूट रहा है... आंखे जल रही हैं"

"आंखे यूं जल रही है कि तू रात भर रोई होगी", दोनों बच्चों की वाटर बोतल वाटर प्यूरीफायर से भरते भरते रीमा बोली।

"हां दीदी क्या करूँ कल ही तुमने पगार दी थी और सारी की सारी ले गया"

"ऐसा कर मालती ....मेरे हाथ तो खाली नहीं इस समय... तुझ से ज्यादा देर बात नहीं कर पाऊंगी ...तू अभी थोड़ी देर में आ जाना दवाई दे दूंगी दर्द सही हो जाएगा" वह जानती थी कि मालती से ज्यादा देर बात और करी तो वह लेट हो जाएगी ।

मालती को थोड़ी देर बाद आने को कह कर वह वापस काम पर लग गई।

अब उसे झाड़ू भी लगानी थी अमित बिना पूजा करें ऑफ़िस नहीं जाता।


झाड़ू लगाते लगाते वह दोनों बच्चों को उठा आई... शुक्र है घर में दो बाथरूम हैं... दोनों को अलग-अलग बाथरूम में छोड़कर वह आटा गूंथ गई।

मिंटू के आवाज़ देने पर कि ,"मम्मी मैंने ब्रश कर लिया है" रीमा झटपट उसे नहला आई.... अभी मिंटू के छोटे होने से उसे डर लगा रहता था कि वह बाथरुम में अपने आप नहाते पर खुद को चोट ना मार ले।

मिंटू को यूनिफॉर्म पहना वह पूर्वी को चिल्लाती हुई बोली," जल्दी से तैयार हो... बस निकल जाएगी नहीं तो"

इतनी देर में अमित उठ गए थे.... बैड टी की आदत होने पर वह सब काम छोड़ कर उन्हें तुरंत बैड टी देकर आई।

जानती थी अगर कहेगी कि, अभी थोड़ी देर में लाती हूं" तो इतना लंबा लेक्चर सुनने को मिलेगा कि उसका पूरा दिन खराब हो जाएगा।

तीनों के टिफिन लगाकर उसने जल्दी से पोहा चढ़ाया।

नाश्ता करा कर तीनों को भेजकर उसने जैसे चैन की सांस ली.... फिर उसे याद आया कि अभी बाबू जी को एक चाय ही दी थी बस।

वह उनकी सुबह की ब्लड प्रेशर की दवाई और पोहा लेकर पहुंची।

"सॉरी बाबू जी थोड़ी देर हो गई", वह धीरे से बोली।

"अरे बेटी अभी देर कहां हुई है ...अभी तो 7:00 ही बजे हैं.... तू परेशान मत हो.... क्या मुझे दिखता नहीं है कि तुम मशीन की तरह काम करती रहती हो"

अपने पिता तुल्य ससुर को मन ही मन धन्यवाद देती वह अब गंदे कपड़े समेट कर मशीन में डालती कमरे सही कर रही थी।

सिंक में पड़े गंदे बर्तनों का ढेर देख में उन्हें मांजने ही वाली थी कि तभी मालती आती दिखाई दी।

मालती अपना रोना लेकर बैठती उससे पहले ही उसने अपने और मालती के लिए चाय बना कर उसे एक पेन किलर देते हुए कहा," देख मालती हिम्मत से काम ले.... जब वह तुझे मारता है तो तुझे विरोध करना चाहिए... यू रोज-रोज रोने से कुछ नहीं होगा... यह दवाई का थोड़ी देर बैठ कर बर्तन धो"

मालती को काम पर छोड़कर अब वह कपड़े धोने में लग गई थी.... यह क्या अमित की फेवरेट शर्ट पर लगा यह दाग तो जा ही नहीं रहा था... वह परेशान हो उठी.... अमित की डांट सहन करने की क्षमता म

ें धीरे-धीरे खोती जा रही थी।

तभी उसे अपनी वह बात याद आई तो उसने अभी मालती से कही थी... वह मन ही मन सोचने लगी उसकी खुद की अंदर हिम्मत कब जागृत होगी।

नहाकर जब उसने अपने आप को शीशे में निहारा तो जैसे वह खुद को पहचान ही नहीं पा रही थी...कहां गयी वह  अति सुंदर जिंदादिल रीमा जिसकी एक झलक पाने को कॉलेज का हर लड़का मरा जाता था... वह जिस से भी बात कर लेती थी वह समझता था कि मानो उसकी लॉटरी खुल गई होती थी।

हमेशा एक एक ड्रेस सेलेक्ट करके पहनने वाली वह आज स्वयं को एक बदरंग सलवार सूट में शीशे में देख हताश हो उठी थी.... हमेशा सुंदर नेल आर्ट से सजे रहने वाले उसके नाखून आज सूखकर पपडाए हुए थे।

दोपहर का खाना बनाना याद आते ही वह सब बातों को एक झटके से अपने दिमाग से निकाल कर वापस काम पर लग गई।

शाम को फिर वही रूटीन... बच्चे आए.... उन्हें खाना खिला सुलाकर कपड़े प्रेस करने बैठ गई .... इन सबसे निबटी तो देखा शाम हो आई थी... बच्चों को जगाया यह उनके नीचे पार्क में जाने का समय होता था।

बाबूजी को व्हील चेयर पर लेकर वह उन्हें पार्क के चक्कर कटवाती थी।

1 घंटे बाद वापस सबको घर में लाकर उसने बच्चों को दूध और अपनी और बाबूजी के लिए चाय बनाई... मालती आ गई थी और शाम के खाने में उसका हाथ बंटवा रही थी।


होमवर्क करके बच्चे खाना खाकर सो गए।

बाबूजी को भी उसने समय से खाना खिला दिया।

रात के 10:00 बज रहे थे लेकिन अमित का अता-पता नहीं था।

 वह खाने की टेबल पर बैठी उसका इंतजार कर रही थी... भूख से खुद उसका हाल बुरा था लेकिन वह जानती थी अगर खा लेगी तो अमित नाराज़ हो जाएगा।

अमित 11:00 बजे आया नशे में धुत।

"अरे तुमने खाना नहीं खाया ..ऑफिस में पार्टी थी... वहां खा कर आया हूं" कहकर वह सोने चला गया।

बेमन से रीमा ने एक रोटी खाई.... खाकर वह वहीं बाहर लॉबी में सोफे पर बैठ गई... अमित से उसने प्रेम विवाह किया था.... उसके समकक्ष पढ़ाई की हुई वह योग्यता में उससे कहीं आगे थी.... बच्चों के लिए उसे अपने कैरियर से विराम लेना पड़ा था और अमित कैरियर की सीढ़ी चढ़ता चला गया था।

सब पुरानी बातें सोचती हुई वह वहीं सोफे पर सो गई.... सपने में वह न जाने कहां विचरण करने लगी।

कभी रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागती... और कभी खुद ही तितली बनी आसमान में उड़ रही होती।

तभी सीन बदला...अब वह रंग बिरंगी मोतियों के ढेर में कूदती हुई भाग रही थी.... और पहुंच गई थी अपने उसी मंच पर जहां पर उसे बेस्ट स्टूडेंट ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला था।

वह देख रही थी कि वह अपनी पसंदीदा पिंक टॉप और ब्लू स्कर्ट में फूलों के बगीचे में बैठी थी.... अमित ने आकर उसके बालों में फूल लगाकर कहा ," रीमा तुम तो ब्यूटी क्वीन हो"

" रीमा रीमा" यह क्या अमित चिल्लाए जा रहा था।

वह घबरा कर उठी देखा सुबह के 6:00 बज रहे थे... वह सपना देख रही थी... भोर का सपना।

"कैसे सोफे पर लुढ़के पड़ी हो... रूम में तुम्हारा फोन रोज की तरह अलार्म बजा रहा है... होश ही नहीं है... कितनी बार कहा है वजन कंट्रोल में रखो अपना...मोटी होती जा रही हो तो आलसी भी होती जा रही हो" अमित चीखने लगा था।

शोर सुनकर बाबूजी बाहर निकल आए थे... अपना बेंत टेककर धीरे धीरे।

वह भी रीमा पर चिल्लाने लगे... बाबूजी को भी चिल्लाते देख देखकर रीमा रोने को हो आई थी।

अमित बाबू जी को सुन रहा था।

"आलसी तो हो ही जा रही है घर में पड़ी-पड़ी ...आज ही अपनी फाइल निकाल और वापस ऑफ़िस ज्वाइन कर"

" पर बाबूजी घर का ख्याल कौन रखेगा" बाबूजी को ऐसा कहता देखकर अमित पछता रहा था वह समझ गया था बाबूजी तंज कस रहे थे।

"ऐसा भी कौन सा ख्याल रखती है यह.... बस सुबह से लेकर शाम तक हम लोगों की सांस ही तो बनी हुई है" अब रीमा ने सहारा देकर बाबूजी को बिठा दिया था।

सुबह नाश्ते की टेबल पर तय हो गया था कि रीमा अब से ऑफिस जॉइन करेगी.... बच्चों ने भी बाबा का समर्थन किया। अब रीमा ने अपने अंदर आत्मशक्ति जागृत करके आँफिस दोबारा ज्वाइन करने का फैसला कर लिया था। 

बाबूजी जी का कहना था कि अब बच्चे बड़े हो चले थे और वह आधे दिन बच्चों का ध्यान रख सकते थे।

तय हो गया था कि सुबह सब ऑफ़िस जाती हुई थी रीमा का हाथ बटवाएंगे... बाबूजी के मकान में रह रहे अमित की उनके विरोध करने की शक्ति नहीं थी।

सबको एक तरफ देख अमित में अब कुछ कहने की भी हिम्मत नहीं बची थी।

ऑफ़िस को जाने के लिए तैयार होते हुए शीशे में देख अपने सूखे होठों पर लिपस्टिक लगाती नया सलवार सूट पहनकर रीमा मुस्कुरा ही रही थी कि पीछे से मिंटू ने उसके गले में बाहें डाल दी," मेरी मम्मी ब्यूटी क्वीन"

अब रीमा और भी मुस्कुरा रही थी भोर का सपना सच जो हो गया था।



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