जयपाल सिंह मुंडा
जयपाल सिंह मुंडा


जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को खूंटी के टकरा पाहनटोली में हुआ था।इनके पिता का नाम अमरू पाहन तथा माता का नाम राधामणी था। इनके बचपन का नाम प्रमोद पाहन था।
एक महान आदिवासी नेता, झारखंड आंदोलन को बेहतर नेतृत्व देने वाले नेता और एक महान खिलाड़ी जिसके नेतृत्व में गुलाम भारत ने पहली दफा ओलंपिक हॉकी में गोल्ड मेडल जीता। एक सरल, सहज आदिवासी, जो कांग्रेसियों के छल-कपट को समझ नहीं पाये,ऐसे थे
मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा,मारंग गोमके एक उपाधि है, आदिवासी परंपरा में इसे सबसे बड़ा नेता कहा जाता है।
मिशनरीज की मदद से वह ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए। मैट्रिक के बाद उन्हें बिशप नाइट द्वारा हर्टफोर्डशायर फेलोशिप दी गई। वर्ष 1926 में उन्होंने राजनीति और शिक्षा में स्नातक की शिक्षा पूरी की। 1926 में ही उन्होंने हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया और उन्हें ‘ब्लू हॉकी’ खिलाड़ी का सम्मान प्राप्त हुआ। उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में हो गया था किंतु जब उन्हें भारत के हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया तो छुट्टी मांगने गये कि वे ओलम्पिक से लौटकर प्रशिक्षण पूरा कर लेगें, किन्तु उन्हें छुट्टी नहीं मिली। जयपाल सिंह लिखते हैं “मुझे आईसीएस और हॉकी, इनमें से किसी एक चुनना था। मैंने अपने दिल की आवाज सुनी। हॉकी मेरे खून में था। मैंने फैसला किया– हॉकी।”
वह बिहार के शिक्षा जगत में योगदान देना चाहते थे, उन्होंने तत्कालीन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को इस संबंध में पत्र लिखा. परंतु उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला।1938 के आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया। इसी दौरे के दौरान आदिवासियों की खरा
ब हालत देखकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया।
1912 में जब बंगाल से बिहार को अलग किया गया, तब उसके कुछ वर्षों बाद 1920 में बिहार के पठारी इलाकों के आदिवासियों द्वारा आदिवासी समूहों को मिलाकर ‘‘छोटानागपुर उन्नति समाज’’ का गठन किया गया। बंदी उरांव एवं यूएल लकड़ा के नेतृत्व में आदिवासियों के लिए अलग राज्य की परिकल्पना की गई।
1938 में जयपाल सिंह मुंडा ने संताल परगना के आदिवासियों को जोड़ते हुये आदिवासी महासभा के माध्यम से अलग राज्य की परिकल्पना को 1950 में जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी के रूप में आदिवासियों की अपनी राजनीतिक भागीदारी की शुरुआत हुई।1951 में देश में जब लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ तो बिहार के छोटानागपुर क्षेत्र में झारखंड पार्टी एक सशक्त राजनीतिक पार्टी के रूप विकसित हुई।
1952 के पहले आम चुनाव में छोटानागपुर व संताल परगना को मिलाकर 32 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित की गईं, सभी 32 सीटों पर झारखंड पार्टी का ही कब्जा रहा। वहीं लोक सभा चुनाव में वे सांसद चुने गए और अन्य चार संसदीय सीटों पर उनकी पार्टी विजयी रही। वे 1952 से मृत्युपरांत 1970 तक खूंटी से सांसद रहे। बिहार में कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में झारखंड पार्टी उभरी ।1955 में जयपाल सिंह मुंडा ने राज्य पुर्नगठन आयोग के सामने झारखंड अलग राज्य की मांग रखी। जिसका नतीजा 1957 के आम चुनाव में देखने को मिला। झारखंड पार्टी ने चार सीटें गवां दी तथा 1962 के आम चुनाव में पार्टी 20 सीटों पर सिमट कर रह गई। 20 जून 1963 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिनोदानंद झा के कार्यकाल में झारखंड पार्टी को पार्टी सुप्रीमो जयपाल सिंह मुंडा द्वारा तमाम विधायकों सहित कांग्रेस में विलय कर दिया गया।