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Gita Parihar

Inspirational

2.9  

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कार्तिक उरांव

कार्तिक उरांव

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कार्तिक उरांव का जन्म भारत के झारखंड राज्य के गुमला जिले के करौंदा लिट्टटोली नामक गाँव में एक कुरुख समुदाय में हुआ था।उनके पिता का नाम जायरा उरांव और माता का नाम बिरसी उरांव था। कार्तिक उरांव का नाम कार्तिक इसलिए रखा गया क्योंकि वह हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक के महीने में पैदा हुए थे।वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।


कार्तिक उरांव अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। गुमला से मैट्रिक करने के बाद वे ठक्कर बाप्पा के आश्रम में चले गए।उन्हीं की प्रेरणा से कार्तिक उरांव ने अभियांत्रिकी की कई डिग्रियां प्राप्त कीं। वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहां उन्होंने नौ वर्ष बिताए।विश्व के सबसे बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट का प्रारूप उन्होने ही बनाया, जो आज हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट के नाम से जाना जाता है। इंग्लैंड में उनकी भेंट जवाहर लाल नेहरू से हुई और उनके आग्रह पर कार्तिक उरांव भारत वापस आए।बाबा कार्तिक उरांव तीन बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। 

 

एचईसी में डिप्टी चीफ इंजीनियर के पद पर वे कार्य करने लगे। किंतु 1962 में कांग्रेस के आग्रह पर, उन्होंने तत्कालीन बिहार के लोहरदगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन स्वतंत्र पार्टी के डेविड मुंजनी से मात्र 17000 वोटों से हार गए। 1967 में फिर से उन्होने कांग्रेस की टिकट पर लोहरदगा से चुनाव लड़ा और वे सांसद बने।अपनी मृत्यु (1981) तक वे लोहरदगा का प्रतिनिधित्व लोकसभा में करते रहे। 8 दिसंबर 1981 को संसद भवन में ही दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। तब वे केंद्रीय उड्डयन और संचार मंत्री थे।


वनवासियों के ईसाई धर्मांतरण से वे क्षुब्ध थे। इसलिए 1967 में संसद में वह अनुसूचित जाति/जनजाति आदेश संशोधन विधेयक 1967 लाए। इस विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति ने बहुत छानबीन की और 17 नवंबर 1969 को अपनी सिफारिशें दीं। उनमें प्रमुख सिफारिश थी, कि धर्म परिवर्तन करने के पश्चात उस व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत मिलने वाली सुविधाओं से वंचित होना पड़ेगा। संयुक्त समिति की सिफारिश के बावजूद, एक वर्ष तक इस विधेयक पर संसद में बहस ही नहीं हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर ईसाई मिशन का जबरदस्त दबाव था कि इस विधेयक का विरोध करें। ईसाई मिशन के प्रभाव वाले 50 संसद सदस्यों ने इंदिरा गांधी को पत्र दिया कि इस विधेयक को खारिज करे।


कांग्रेस में रहते हुए इस मुहिम के विरोध में अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाकर कार्तिक उरांव ने 10 नवंबर को 322 लोकसभा सदस्य और 26 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षरों का एक पत्र इंदिरा गांधी को दिया, जिसमें यह जोर देकर कहा गया था की वे विधेयक की सिफारिशों का स्वीकार करें, क्योंकि यह तीन करोड़ वनवासियों के जीवन - मरण का प्रश्न हैं। किंतु ईसाई मिशनरियों का एक प्रभावी अभियान पर्दे के पीछे से चल रहा था। इस विधेयक के कारण देश-विदेश के ईसाई मिशनरियों में भारी खलबली मची थी।


16 नवंबर 1970 को इस विधेयक पर लोकसभा में बहस शुरू हुई। इसी दिन नागालैंड और मेघालय के ईसाई मुख्यमंत्री दबाव बनाने के लिए दिल्ली पहुंचे। मंत्रिमंडल में दो ईसाई राज्यमंत्री थ

े। उन्होंने भी दबाव की रणनीति बनाई। इसी के चलते 17 नवंबर को सरकार ने एक संशोधन प्रस्तुत किया की संयुक्त समिति की सिफारिशें विधेयक से हटा ली जाएं। 24 नवंबर 1970 को कार्तिक उरांव को इस विधेयक पर बहस करनी थी।


इस दिन सुबह कांग्रेस ने एक व्हीप अपने सांसदों के नाम जारी किया, जिसमें इस विधेयक में शामिल संयुक्त समिति की सिफारिशों का विरोध करने को कहा गया था। कार्तिक उरांव, संसदीय संयुक्त समिति की सिफारिशों पर 55 मिनट बोले। वातावरण ऐसा बन गया, की कांग्रेस के सदस्य भी व्हीप के विरोध में, संयुक्त समिति की सिफारिशों के समर्थन में वोट देने की मानसिकता में आ गए।


अगर यह विधेयक पारित हो जाता, तो वह एक ऐतिहासिक घटना होती..!स्थिति को भांपकर इंदिरा गांधी ने इस विधेयक पर बहस रुकवा दी और कहा की सत्र के अंतिम दिन, इस पर बहस होगी। किंतु ऐसा होना न था। 27 दिसंबर को लोकसभा भंग हुई और कांग्रेस द्वारा वनवासियों के धर्मांतरण को मौन सहमति मिल गई!


कार्तिक उरांव हिंदुत्व के घनघोर समर्थक थे।यह विधेयक पारित नहीं होने पर उन्होंने 'बीस वर्ष की काली रात' नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण का कच्चा चिट्ठा खोल दिया है।अंग्रेजी हुकूमत के 150 वर्षों में ईसाई मिशनरियों से इतना धर्म परिवर्तन नहीं हुआ, जितना आजादी मिलने पर हुआ।


कार्तिक उरांव धर्मांतरण संबंधी इन सभी बातों को लेकर काफी मुखर रहते थे। वनवासी कल्याण आश्रम के बाला साहब देशपांडे से उनका जीवंत संपर्क था और यही कांग्रेस को खटकता था। किंतु झारखंड के उस वनवासी क्षेत्र में, कार्तिक उरांव से अच्छा, वनवासियों पर पकड़ बनाए रखने वाला दूसरा नेता कांग्रेस के पास नहीं था। कार्तिक उरांव ने विभिन्न कार्यक्रमों में वनवासियों से कहा था कि ईसा से हजारों वर्ष पहले आदिवासियों के समुदाय में निषादराज गुह, माता शबरी, कण्णप्पा आदि हो चुके हैं, इसलिए हम सदैव हिंदू थे और हिंदू रहेंगे।


आदिवासी हिंदू ही हैं, यह तार्किक रूप से सिद्ध करने के लिए उन्होने भारत के कोने -कोने से वनवासियों के पाहन, गांव बूढ़ा, टाना भगतों आदि धर्मध्वजधारियों को आमंत्रित किया और कहा, आप अपने समुदायों में जन्म तथा विवाह जैसे अवसरों पर गाए जाने वाले मंगल गीत बताइए। फिर वहां सैकड़ों मंगल गीत गाए गए और सबों में यही वर्णन मिला कि जसोदा मैया श्रीकृष्ण को पालना झूला रही हैं, सीता मैया रामजी को पुष्प वाटिका में निहार रही हैं, माता कौशल्या रामजी को दूध पिला रही हैं... आदि। यह ऐसा जबरदस्त प्रयोग था, जिसकी काट किसी के पास नहीं थी।


जीवन के अंतिम वर्षों में कार्तिक उरांव ने साफ कहा था, हम एकादशी को अन्न नहीं खाते, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, विजया दशमी, राम नवमी, रक्षाबंधन, देवोत्थान पर्व, होली, दीपावली.... हम सब धूमधाम से मनाते हैं। ओ राम... ओ राम... कहते-कहते हम उरांव नाम से जाने गए। हम हिंदू पैदा हुए, और हिंदू ही मरेंगे।


वह संपूर्ण समाज के मार्गदर्शक थे।उन्हें उनकी कर्त्तव्य निष्ठा की बदौलत पंखराज की उपाधि से नवाजा गया। साथ ही उन्हें प्यार से काला हीरा का नाम दिया गया था।


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