Gita Parihar

Drama Action Inspirational

4  

Gita Parihar

Drama Action Inspirational

अमर शहीद वीर गंगा नारायण सिंह

अमर शहीद वीर गंगा नारायण सिंह

5 mins
604



अमर शहीद वीर गंगा नारायण सिंह, भूमिज विद्रोह के महानायक कहे जाते हैं। 1767 ईस्वी से 1833 ईस्वी तक, अविरल 60 से ज्यादा वर्षों तक भूमिजों द्वारा अंग्रेजों के विरूद्ध किए गए विद्रोह को भूमिज विद्रोह कहा गया है। अंग्रेजों ने इसे 'गंगा नारायण का हंगामा' कहा है जबकि इतिहासकारों ने इसे चुआड विद्रोह का नाम दिया है। चुआड का अर्थ वस्तुतः: डाकू या लुटेरा होता है। कई इतिहासकारों ने भूमिज को ही चुआड कहा है। भूमिज बहुत वीर तथा बहादुर होते हैं। भूमिजों ने हमेशा ही अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाई है, तथा संघर्ष किया है।


वराहभूम के राजा विवेक नारायण सिंह की दो रानियाँ थीं। दो रानियों से दो पुत्र थे। 18वीं शताब्दी में राजा विवेक नारायण सिंह की मृत्यु के पश्चात दो पुत्रों ,लक्ष्मण नारायण सिंह एवं रघुनाथ नारायण सिंह के बीच उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष हुआ।


पारम्पारिक भूमिज प्रथा के अनुसार बड़ी रानी के पुत्र, लक्ष्मण नारायण सिंह को ही उत्तराधिकार प्राप्त था ,परन्तु अंग्रेजों ने 'बांटो और राज करो' नीति के अनुसार राजा के छोटे पुत्र रघुनाथ नारायण सिंह जोकि छोटी रानी का पुत्र था को राजा मनोनित कर दिया,तब लम्बा पारिवारिक विवाद शुरू हुआ। स्थानीय भूमिज सरदार लक्ष्मण नारायण सिंंह का समर्थन करते थे। परन्तु रघुनाथ को प्राप्त अंग्रेजों के समर्थन और सैनिक सहायता के सामने वे टिक नहीं सके। लक्षमण सिंह को राज्य बदर किया गया। जीवन निर्वाह के लिए बांधडीह गांव की जागीर दे दी गई। जहाँ उनका काम सिर्फ बांधडीह घाट की देखभाल करना था।


लक्ष्मण सिंह का विवाह ममता देवी से हुआ। ममता देवी बहुत ही विनम्र तथा धर्मपरायण थीं परन्तु अंग्रेजों के अत्याचार की कट्टर विरोधी थीं। लक्ष्मण सिंह के तीन पुत्र हुए, गंगा नारायण सिंह, श्यामकिशोर सिंह और श्याम लाल सिंह। ममता देवी अपने दोनों पुत्रों गंगा नारायण सिंह तथा श्याम लाल सिंह को अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सदैव प्रोत्साहित करती थीं।


जंगल महल में गरीब किसानों पर सन् 1765 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अत्याचार करने शुरू कर दिए, दिल्ली के मुगल सम्राट बादशाह शाह आलम से बंगाल, बिहार, उडीसा की दीवानी हासिल कर ली था तथा राजस्व वसूलने के लिए नये उपाय करने लगे। अंग्रेज सरकार ने भूमिजों की ज़मीन से ज्यादा राजस्व वसूलने के लिए नमक का कर, दारोगा प्रथा, जमीन विक्रय कानून, महाजन तथा सूदखोरों का आगमन, जंगल कानून, ज़मीन की निलामी तथा दहमी प्रथा, राजस्व वसूली उत्तराधिकार संबंधी नियम बना दिए और आदिवासियों और गरीब किसानों का शोषण करने लगे।


निष्कासित लक्षमण सिंह बांधडीह गांव में बस गए थे। वे राज्य प्राप्त करने के लिए कोशिश करते रहे किन्तु अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें मेदिनीपुर जेल भेज दिया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी। गंगा नारायण सिंह, लक्ष्मण सिंह के पुत्र जंगल महल में गरीब किसानों पर शोषण, दमनकारी सम्बन्धी कानून के विरूद्ध अंग्रेजों से बदला लेने के लिए कटिबद्ध हो गए।


 गंगा नारायण सिंह के आह्वान पर उस इलाके के सभी लोग उनके नेतृत्व में एकजुट हो गए। उन्होंने अंग्रेजों की हर नीति के बारे में जंगल महल की हर जाति को समझाया और लड़ने के लिए संगठित किया। परिणाम स्वरूप सन् 1768 ईस्वी में असंतोष बढ़ा।1832 ईस्वी में गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में प्रबल संघर्ष हुआ। इस संघर्ष को अंग्रेजों ने 'गंगा नारायण का हंगामा' कहकर पुकारा।

 

अंग्रेजों के शासन और शोषण नीति के खिलाफ लड़ने वाले गंगा नारायण सिंह प्रथम वीर थे जिन्होंने सर्वप्रथम सरदार गोरिल्ला वाहिनी का गठन किया। जिसे हर जाति का समर्थन प्राप्त था।गंगा नारायण सिंह ने वराहभूम के दिवान तथा अंग्रेज दलाल माधव सिंह को वनडीह में 2 अप्रैल, 1832 ईस्वी को आक्रमण कर मार दिया। उसके बाद सरदार वाहिनी के साथ वराहबाजार मुफ्फसिल का कचहरी, नमक का दारोगा कार्यालय तथा थाने को आगे के हवाले कर दिया।


बांकुडा का कलेक्टर रसेल, गंगा नारायण सिंह को गिरफ्तार करने पहुँचा, परन्तु सरदार वाहिनी सेना ने उसे चारों ओर से घेर लिया और सारी अंग्रेजी सेना मारी गयी,रसेल किसी तरह जान बचाकर भाग निकला। गंगा नारायण सिंह का यह आंदोलन तूफान का रूप ले चुका था, जिसने बंगाल के विभिन्न स्थानों में अंग्रेज रेजीमेंट को रौंद डाला।उनके आंदोलन का प्रभाव बंगाल के विभिन्न स्थानों में बहुत जोरों से चला। पूरा जंगल महल अंग्रेजों के काबू से बाहर हो गया। 

आखिरकार अंग्रेजों ने बैरकपुर छावनी से लेफ्टिनेंट कर्नल कपूर के नेतृत्व में सेना भेजी जो बुरी तरह परास्त हुई। इसके बाद बर्धमान के आयुक्त बैटन और छोटानागपुर के कमिशनर हन्ट को भी भेजा गया किन्तु वे भी असफल रहे।


अगस्त 1832 से लेकर फरवरी 1833 तक पूरा जंगल महल सुंदरगढ तक अशांत बना रहा। अंग्रेजों ने गंगा नारायण सिंह का दमन करने की लिए हर तरह से कोशिश की परन्तु गंगा नारायण सिंह की चतुरता और युद्ध कौशल के सामने टिक न सके। वर्धद्मान, छोटानागपुर तथा उड़ीसा (रायपुर) के आयुक्त गंगा नारायण सिंह से परास्त होकर अपनी जान बचाकर भाग निकले।यह संघर्ष इतना प्रभावशाली था कि अंग्रेजों को बाध्य होकर जमीन विक्रय कानून, उत्तराधिकारी कानून, लाह पर एक्साईज ड्यूटी, नमक का कानून, जंगल कानून वापस लेने के लिए पड़े।


उस समय खरसावाँ का ठाकुर चेतन सिंह अंग्रेजों से साठ-गाँठ कर अपना शासन चला रहा था। गंगा नारायण सिंह ने पोडाहाट तथा सिंहभूम चाईबासा जाकर वहाँ के कोल (हो) जनजातियों को ठाकुर चेतन सिंह तथा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए संगठित किया। 6 फरवरी, 1833 को गंगा नारायण सिंह कोल (हो) जनजातियों को लेकर खरसावाँ के ठाकुर चेतन सिंह के हिन्दशहर थाने पर हमला किया।जीवन की अंतिम सांस तक वे अंग्रेजों एवं हुकुमतों के खिलाफ संघर्ष करते रहे, दुर्भाग्यवश वे उसी दिन वीरगति प्राप्त हुए। इस प्रकार 7 फरवरी, 1833 ईस्वी को एक शक्तिशाली योद्धा अंग्रेजों के विरूद्ध लोहा लेने वाला चुआड विद्रोह, भूमिज विद्रोह का नायक गंगा नारायण सिंह अपना अमिट छाप छोड़ कर दुनिया से विदा हुआ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama