Gita Parihar

Drama Action Inspirational

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कोमाराम भीम

कोमाराम भीम

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कोमाराम भीम का जन्म ब्रिटिश भारत के हैदराबाद राज्य में आसिफाबाद के पास सांकेपल्ली में गोंड आदिवासी परिवार में हुआ था ।उनके जन्म को लेकर भ्रान्तियां हैं। कुछ लोग उनका जन्म 22 अक्टूबर 1901 को हुआ मानते हैं, वहीं कुछ लोग इसे 1900 मानते हैं। भीम चंदा और बल्लालपुर के पारंपरिक राज्यों के आदिवासी आबादी वाले जंगलों में पले -बढ़े और कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की। वे जीवन भर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहे क्योंकि गोंडी लोग जमींदारों, पुलिस और जबरन वसूली का शिकार होते थे।


1900 के दशक के दौरान, गोंडी क्षेत्र में खनन गतिविधियां बढ़ गईं जिससे गोंडियों की जमीनें जब्त होने लगीं। गोंडी पोडु खेती की गतिविधियों पर कर लगाया गया। नतीजतन गोंडियों ने अपने पारंपरिक गांवों से पलायन शुरू कर दिया, प्रतिशोध और विरोध के चलते भीम के पिता की वन अधिकारियों ने हत्या कर दी।


 पिता की मृत्यु के बाद, भीम परिवार सहित सांकेपल्ली से करीमनगर के पास सारदापुर चले गए। अक्टूबर 1920 में एक टकराव में, भीम ने निजामत के एक वरिष्ठ अधिकारी, सिद्दीकी को मार डाला, जो फसलों की जब्ती को लागू करने के लिए भेजा था। कैद से बचने के लिए, भीम चंदा शहर भाग गये। एक स्थानीय प्रकाशक विटोबा ने उन्हें शरण दी। विटोबा एक ब्रिटिश विरोधी निज़ामेट पत्रिका के लिए क्षेत्रीय रेलवे में एक प्रिंटिंग प्रेस और वितरण नेटवर्क संचालित करते थ। विटोबा के साथ के दौरान भीम ने अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू बोलना और पढ़ना सीखा।


शीघ्र ही विटोबा को गिरफ्तार कर लिया गया। अब भीम मंचिरयाल रेलवे स्टेशन पर एक परिचित के पास पहुंचे। उन्होंने साढ़े चार साल तक बागानों में काम किया। ऐसा करते हुए वह श्रमिक संघ की गतिविधियों में शामिल हो गये। अंततः उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया किन्तु भीम चार दिनों में ही जेल से भाग गए और निजाम में बल्हारशाह लौट आये ।


भीम ने रामजी गोंड के बारे में सुन रखा था, इसलिए उन्होंने निजाम में लौटने पर आदिवासियों के अधिकारों के लिए अपना संघर्ष शुरू करने का फैसला किया।भीम परिवार के साथ काकनघाट चले गए और लच्छू पटेल के लिए काम करने लगे जो देवदम नामक गाँव के मुखिया थे। असम में अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए, उन्होंने आसिफाबाद एस्टेट के खिलाफ एक भूमि मुकदमे में पटेल की मदद की, जिसने उन्हें आस-पास के गांवों में उनका नाम हुआ, बदले में उन्हें पटेल द्वारा शादी करने की अनुमति दी गई।


भीम ने सोम बाई नाम की एक महिला से शादी की। वे भाबेझारी में बस गए और खेती करने लगे।एक बार फिर र वे वन अधिकारियों के शोषण का शिकार हुए। उन्होंने निज़ाम को आदिवासियों की शिकायतें पेश करने की कोशिश की, लेकिन निजाम से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।


तब भीम ने सशस्त्र क्रांति में शामिल होने का फैसला किया। उन्होंने प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गुप्त संघों का गठन किया और जोडेघाट में आदिवासी आबादी को लामबंद करना शुरू कर दिया, अंततः बारह पारंपरिक जिलों के आदिवासी नेताओं की एक परिषद बुलाई गई। परिषद ने अपनी भूमि की रक्षा के लिए गुरिल्ला सेना बनाने का फैसला किया।


भीम ने यह भी प्रस्ताव दिया कि वे खुद को एक स्वतंत्र गोंड राज्य घोषित करें। परिषद के बाद गोंडी क्षेत्र में विद्रोह हुआ जो 1928 में शुरू हुआ। सेना ने बाबेझारी और जोडेघाट में जमींदारों पर हमला करने के लिए लामबंद किया। जवाब में, निज़ाम ने भीम को गोंड विद्रोहियों के नेता के रूप में मान्यता दी और गोंडों को भूमि अनुदान का आश्वासन देते हुए, उसके साथ बातचीत करने के लिए कलेक्टर को आसिफाबाद भेजा।


भीम ने सीधे अपने अधीन 300 आदमियों को कमान दी। उन्होंने जोदेघाट छोड़ दिया। भीम के ठिकाने की मुखबिरी कुर्डू पटेल ने की, इस तरह आसिफाबाद के तालुकदार अब्दुल सत्तार के नेतृत्व में सशस्त्र पुलिसकर्मियों के साथ मुठभेड़ में वे मारे गये।उनकी मृत्यु की तारीख विवादित है, यह आधिकारिक तौर पर अक्टूबर 1940 में हुई मानी जाती है लेकिन गोंडी लोग इसे 8 अप्रैल 1940 को मनाते हैं। 


कोमाराम भीम को उनकी मृत्यु के बाद गोंड विद्रोह का नायक माना जाता है। वर्षों से आदिवासी और तेलुगु लोक गीतों में उनकी प्रशंसा की जाती है। भीम को एनिमिस्टिक गोंड आदिवासी समुदाय के बीच भीमल पेन की पूजा के माध्यम से प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी पुण्यतिथि हर साल अश्वयुजा पौर्णमी पर मनाई जाती है , जहां उनकी मृत्यु के स्थान और विद्रोह के दौरान उनके संचालन के केंद्र जोदेघाट में कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। 



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