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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Tragedy Inspirational Others

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Tragedy Inspirational Others

घोड़ाघाल यात्रा संस्मरण

घोड़ाघाल यात्रा संस्मरण

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विश्व इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने के सपने सजोये था भारत अपने प्रिय एवं युवा प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी जी के इक्कीसवीं सदी के आवाहन के अंतर्नाद से अभिभूत इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने को उद्धत था। आशा विश्वास संभावनाओं संवेदनाओं का महत्वपूर्ण दौर वैश्विक स्तर एवं भारत प्रभा प्रवाह संध्या निशा प्रभावित था।

उन्हीं दिनों मेरी नियुक्ति उत्तर प्रदेश पूर्वांचल के बलिया जनपद में थी मुझे अपने बेटों को सैनिक स्कूल में पढ़ाने का बहुत शौक था। 

बड़ा बेटा कक्षा पांच उत्तीर्ण करने के साथ ही कक्षा छः में प्रवेश हेतु केंद्रीय सैनिक स्कूल की प्रवेश परीक्षा दिया और प्रवेश सूची की मेरिट में सम्मानित स्थान प्राप्त किया।

सैनिक स्कूलों में प्रवेश से पूर्व बहुत कठिन मेडिकल परीक्षा (स्वास्थ्य जांच) होती है जिसका स्तर वहीं होता है जो सेना में कमिशन देते समय होता है।

मैं अपने बेटे को लेकर घोड़ाखाल नैनीताल पहुंचा। घोड़ाखाल में कोई भी ठहरने का तब उचित स्थान जैसे होटल आदि नहीं था। 

अचानक एक व्यक्ति से मुलाकात हुई उन्होंने बात चीत के दौरान बताया कि वह बलिया के ही रहने वाले हैं और सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर पद पर कार्यरत हैं उन्होंने अपना नाम परिचय देते हुए बताया कि मैं राजपूत खानदान परिवार से हूँ और रात अपने घर रुकने का अनुरोध किया। 

हम लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था अतः मैं अपने बेटे के साथ सिंह साहब का अतिथि बना।

बात चीत के दौरान सिंह साहब ने पहाड़ की कार्यशैली एवं जीवन शैली पर बहुत बृहद प्रकाश डाला।

कुल मिलाकर सिंह साहब की बातों का अर्थ था कि पहाड़ पर गैर पहाड़ी को किसी भी तरह का कार्य करने में बहुत परेशानी होती है और मान सम्मान बचाना चुनौती होती है। 

वह परेशान थे उत्तराखंड अलग राज्य बनाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में थी और आंदोलन उग्र शिखर पर किन्तु उनका स्थानांतरण उत्तर प्रदेश में नहीं हो रहा है।

मेडिकल जांच के दौरान चिकित्सकों द्वारा कान मे प्रपुरेशन बताते मेरे बेटे को मेडिकली अनफिट करार दिया गया। 

सिंह साहब जिनके हम अतिथि थे ने सुबह हल्द्वानी जाने वाली बस में बैठा दिया। बस पूरी भरी थी। 

सवारी अपने गंतव्य को चढ़ते उतरते जा रहे थे। 

पहाड़ की खूबसूरती एवं हरियाली देख मेरा बेटा तरह तरह का प्रश्न करता। 

मैं उसे बताता पुत्र के साथ वार्तालाप में मेरे मुंह से अचानक निकल गया कि इतनी शांत सुंदर हरियाली स्थान पर दो ही प्राणी रह सकते हैं एक ऋषि दूसरे अन्य पशु जानवर पक्षी जो मनुष्य की क्रूरता से भयाक्रांत रहते हैं।

आब क्या था? इतना सुनते ही बस में बैठे अधिकतर पहाड़ के वासी एकाएक उग्र होते हुए बस ड्राइवर कंडक्टर से बस एक अति भयानक खतरनाक जगह रुकवाया और मुझे और मेरे बेटे को बस से उतारने के लिए उग्रता की हर सीमा का अतिक्रमण कर डाला। 

मैं और मेरा बेटा उतर भी गए बस चलने लगी मैं अपने बेटे को बहलाने हेतु पहाड़ का मशहूर फल एस्ट्रा बेरी खरीदने का स्वांग कर उसे बहला रहा था कि बस हिलते डुलते ही पुनः अपने स्थान पर खड़ी हो गई। 

तभी अचानक एक व्यक्ति बस से उतरे और मेरे पास आकर बोले आप लोगों ने हल्द्वानी तक का टिकट लिया है क्यों यहां जिस जगह से आप परिचित नहीं हैं उतरेंगे।

मुझे मेरे बेटे के साथ वह बस में सवार हुए हम पिता पुत्र अपनी सीट पर बैठ गए वह महानुभाव अपनी सीट पर।

हल्द्वानी उतरने के पश्चात लोगों ने बताया कि जिन सज्जन ने आप लोगों की जान भयंकर जोखिम से बचाई वह उत्तराखंड के गणमान्य नेता भगत सिंह कोश्यारी जी हैं जिनकी विनम्रता सज्जनता का बहुत आदर सम्मान है उत्तराखंड में।मै बेटे के साथ बलिया लौट आया कुछ दिन बाद मेरे कार्यालय मे सिँह साहब जिनके यहाँ मै और मेरा बेटा जिनके यहाँ घोड़ा खाल प्रवास के दौरान रुके थे के करीबी  सबंधी आया और बताया कि सिंह साहब का स्थानांतरण जौनपुर हो गया है!!

मेरी यह यात्रा जीवन में स्मरण पटल से कभी ओझल नहीं हो सकती। भय भयानक संभावनाएं के जोखिम से लौटे।!


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर  उत्तर प्रदेश!!


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