तालाब का जिन्न
तालाब का जिन्न
ये कहानी है सूरजपुर जिले के एक गाँव पूरन की। जहाँ नूपुर नाम की एक बहुत ही खूबसूरत लड़की रहती थी। 14 वर्ष के होते तक वो ऊँचे कद काठी की वजह से उम्र से अधिक बढ़ी दिखने लगी थी। गौर वर्ण और लंबे काले केश की वजह से वो बहुत खूबसूरत लगती थी। जितना सुंदर सूरत उतनी ही सुंदर सीरत भी थी। मधुर व्यवहार व मधुर वाणी सबका मन मोह लेती थी। यही वजह है कि इतने कम उम्र में उसके लिए रिश्ते आने लगे थे,पर वो अपने चार भाइयों को एकलौती बहन थी। सबकी लाडली अभी पढ़ना चाहती थी पर समस्या ये थी कि आठवी के बाद उसे 3km पैदल चल के जाना पड़ता था। भाई सब बाहर चले गए थे। उसके साथ कि सहेलियों के विवाह हो चुका था। किसी तरह माँ को मना लिया आगे की पढ़ाई के लिए पिता तो पहले से ही उसके पढ़ाई के लिए तैयार थे।
जुलाई से उसने 9वी कक्षा के लिए पूरन से प्रेमनगर जाने लगी जो एक कस्बा था। कालेज भी खुल गया था। जब वो जाती तो एक तालाब पड़ता था। जहाँ पीपल के पेड़ पर अस्थियां लटकते रहती थी। जिसे देख नूपुर भय से कांपने लगी हवा के झोंके से पीपल का पता डोलता तो वो औऱ भी भयभीत हो जाती थी। कोई राहगीर भी भूले से नही दिखते थे वैसे भी 12 बजे से शाम पांच बजे स्कूल का समय रहता इस वक्त लोग घर पर या खेत पर रहते। पीपल पेड़ के सामने श्मशान घाट भी सामने था। उसे भय लगता वो वहाँ से दौड़कर आगे निकल जाती थी। आगे कुछ दूर पर फिर एक तालाब मिलता पर वहाँ जाकर उसे भय नही लगता था। पता नही क्यों नूपुर को आगे के तलाब के पास ऐसा लगता जैसे यहाँ चहल-पहल है। पदचाप भी सुनाई देता पर कभी वो पलटकर नही देखती थी। उसका सिंद्धांत था पलटकर नही देखना।
एक रोज उसके पिता जी ने पूछा "बेटा पढ़ाई कैसी चल रही है कोई परेशानी तो नही।" नूपुर ने कहा "कोई दिककत नही पापा पर रास्ते में श्मशान घाट पड़ता है बस वही डर लगता है।"
"तो जब भी श्मशान घाट से निकलो तो उस जगह को प्रणाम किया करो। कोई चिता जलती दिखे तो भी हाथ जोड़कर उस मृतात्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया करो फिर कोई डर नही। यही जीवन का सच है मेरे बच्चे,औऱ सबकी मंजिल भी यही। एक दिन तो सभी को यहाँ तक पहुँचना ही रहता है। कभी भयभीत नही होना। जो मर चुका उससे कैसा भय??"
" हाँ पापा आप सही कह रहे हो।"
अगले दिन नूपुर फिर स्कूल के लिए निकली तो श्मशान घाट पर चिता धु-धु कर जल रही थी वो रुकी औऱ प्रणाम की। वो सोचने लगी 'पापा ने सच ही कहा आज मुझे कोई डर नही लग रहा है। '
कुछ आधा किलोमीटर आगे बढ़ी तो फिर दूसरा तलाब मिला उसके बाद उसके साथ फिर कोई पदचाप की आवाज आने लगी। न जाने क्यों आज इस तालाब के पास उसे थोड़ा भय हुआ। क्योंकि ये एक सुनसान रास्ता था। गाँव को सड़क से जोड़ने वाली कच्ची राह। जहाँ मुश्किल से भी कोई राहगीर नही दिखते थे पर पढ़ने के लिए कुछ कष्ट तो उठाना पड़ेगा आखिर पीछे वाले तालाब की तरह यह भी वहम ही लगा। अपना मन मजबूत कर वो आगे बढ़ गयी।
9वी से 10 वी पहुँच गयी। 16 वर्ष में नूपुर औऱ भी खूबसूरत दिखने लगी थी। जब भी वो स्कूल जाती अपने आस-पास किसी को महसूस करती थी। 10 वी का अंतिम पेपर दिला वो उस दिन घर लौट रही थी कि तलाब के पास से उसकी नजर अचानक अपनी परछाई पर पड़ी तो चौंक गयी उसकी परछाई के साथ एक और काली परछाई थी। वो दौड़कर घर भाग जाती है। उसे डर की वजह से बुखार आ जाता है। स्वस्थ होने पर वो ननिहाल जाती है तो भूल जाती है काली परछाईं के बारे में फिर उसे लगता है ये वहम ही होगा।
ननिहाल में हमउम्र सखियों के साथ पड़ोस के विवाह भी देखती है जहाँ एक युवक आया था 22वर्ष का संस्कार बहुत खूबसूरत था, नूपुर उसे अपना दिल दे बैठती है। दोनों ने पत्रव्यवहार करने का वादा किया साथ ही नूपुर के 12 वी पास करते ही विवाह करने की कसमें भी खा ली।
छुट्टियां खत्म हो गयी थी 11वी में कला विषय लेकर आगे का पढ़ाई करने वो पुनः प्रेमनगर के स्कूल जाने लगी।
जुलाई निकला वो स्कूल गयी नही बारिश की वजह से कीचड़ हो जाता है। सितंबर लगा तो नियमित स्कूल जाना शुरू की। आज जब तालाब के पास पहुँची तो पुनः
एक काली परछाई दिखी नूपुर ने नजरअंदाज किया वो देखना ही नही चाहती थी ताकि उसे डर न लगे। वापस जब आई तो स्कूल के पास से तालाब तक फिर काली परछाईं साथ आई तालाब तक। हफ्ते गुजर गए अब तो उसकी हिम्मत जाती रही दिसम्बर की ठंड वो स्कूल से लौट रही थी 5बजे धूप जा चुकी थी उसे आश्चर्य हुआ कि
इसके बावजूद वो काली परछाई उसके साथ है उसने गौर किया तो वो किसी पुरुष की परछाई थी। वो भय से कांपने लगी,पलटकर इधर-उधर देखने लगी पर कोई नही था। "कौन-कौन है ये किसकी परछाई है सामने आओ कौन हो तुम।"
तभी एक सुंदर सा युवक उसके सामने आया। एक तीव्र इत्र की गंध वातावरण में फैल गयी। " डरो नही प्रिये मैं हुँ।"
"कौन??"
"कौन हो तुम"
"मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। बस यही जानो,आगे अगर कुछ भी पूछना है तो मुझे स्वीकार....मेरी शर्त है एक मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।"
उस युवक के एकाएक सामने आने से नूपुर को लगा होगा कोई मनचला वो कहती है हाँ कह देती हुँ फिर पिता जी से शिकायत कर सबक सिखा दूँगी। ये सोचते हुए वो कहती है अच्छा तुम्हारी शर्त मंजूर है बोलो अब "कौन हो तुम ?,अपना परिचय दो क्यों मेरा पीछा करते हो? ,कहाँ के हो?"
अनजाने में नूपुर ने उस युवक को निमंत्रण दे दिया साथ चलने को।
" वो कहता है मैं यही तालाब में डूब के मरा था सलीम नाम है मेरा। तुमसे मुहब्बत करता हूँ। जब से तुम इस राह से जा रही हो तबसे तुम्हारे साथ स्कूल तक गया फिर वापस यहाँ तक आता हूँ। जब तुम नही आती तो तड़प जाता हूँ नूपुर मैं तुम्हारे साथ रहूँगा या तुम्हे साथ ले जा लूंगा मैं कोई इंसान नही जिन्न हुँ।" कहते हुए वो हवा में लहराने लगा।
नूपुर बेहोश होकर गिर गयी। अगले दिन उसे होश आता है। दो वर्ष बीत जाता है वो जिन्न नूपुर के कभी आस-पास तो कभी उसके शरीर में प्रवेश कर जाता था।
अब नूपुर के जीवन में बहुत कुछ बदलाव आ गया था। वो खूब विचित्र व अद्भुत इत्र लगाती पहनावे व श्रृंगार करती। वो जिन्न वैसे उसे तंग नही करता था। नूपुर तो जैसे होश में ही नही रहती थी। घर में नूपुर का बदला स्वाभाव तो महसूस हुआ पर किसी ने नही सोचा था कि जिन्न का साया होगा।
इधर संस्कार दो वर्ष से नूपुर का पत्र नही आने से वो उसके लिए बेचैन हो गया। वो अपने पिता को रिश्ते के लिए भेजते है। संस्कार भी मिलने जाना चाहता था तब उसकी माँ ने मना कर दिया कि अभी नही अब जब तय हो जाएगा तभी मिलना। संस्कार मान जाता है।
इधर रिश्ता तय होता है तो वो जिन्न नूपुर से कहता है कि "तुम धोखा दे ही हो मुझे मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। तुम किसी और कि नही हो सकती। वो नूपुर के शरीर में प्रवेश कर जाता है। पूरे घर में कोहराम मच जाता है।
वो कभी हवा में लहराती तो कभी छत की मुंडेर पर चलती। कभी पुरुष की आवाज में अट्टहास करती।।
घर के लोग बैगा को दिखाते है तो पता चलता है की एक जिन्न का साया है "किसी तांत्रिक को दिखाओ।"
नूपुर के पिता जी को समझ नही आता कि क्या करे तभी संस्कार मिलने आता है उसे कोई कुछ नही बताता। वह नूपुर से मिलने जाता है तो उसकी चढ़ी हुई लाल आँखे तीव्र इत्र की गंध से संस्कार को बैचेनी होने लगती है। वो कहता है नूपुर "ये क्या है इतना इत्र कब से लगाने लगी और तबियत ठीक नही है क्या ?"कहते हुए वो नूपुर के कंधे पर हाथ रखता है कि एक तीव्र झटका संस्कार को लगता है वो दीवाल से टकराता है सर फुट जाता है। उसके बाद नूपुर बाल बिखरे हुए शरीर पर सर पटकने लगती है। वो जिन्न नूपुर के शरीर से बोलता है। धोखेबाज तू सिर्फ मेरी है और किसी की नही ,मैंने तुझे कभी कोई तकलीफ नही दी पर अब मैं तुझे साथ ले जाऊँगा। कहते हुए नूपुर का शरीर हवा में तैरने लगता है।
संस्कार नीचे आता है और उसकी हालत देख नूपुर के पिता जी क्षमा मांगते है। उन्हें यकीन हो जाता है कि अब नूपुर से कोई विवाह नही करेगा वो रोते हुए बैठ जाते है।
संस्कार भी कहाँ हार मानने वाला था वो किसी अच्छे तांत्रिक को ढूंढने निकल जाता है कि तभी नूपुर का शरीर भी हवा में लहराता है वो बेहोश थी। कमरे में शॉर्ट सर्किट होता है और भयानक आग लग जाती है संस्कार कुछ ही कदम चल पाया था और नूपुर की आत्मा जिस्म छोड़ देती है।
ये विचित्र शक्तियों से मुकाबला इंसान के बस का नही होता। कोई नही जानता की नूपुर की अचानक मृत्यु कैसे हुई।
कुछ दिन बाद एक लड़की माया स्कूल जाने के लिए निकलती है तालाब के पास एक काली परछाई जिन्न का उसका।