"माँ की आस्था"
"माँ की आस्था"


ये कहानी है बैंगलोर की जहाँ एक अफवाह उड़ा पर 'अगर कुछ घटना हो जाये वो भी एक के बाद एक ' तो लोगो को अंधविश्वास होने लगता है। सच तो ये है कि भगवान है और बुरी आत्माओ का भी अस्तित्व है हम माने या नहीं और जहाँ हमारा आत्मविश्वास कमजोर होता है ये बुरी आत्मा हावी होने लग जाती है। ऐसी ही एक कहानी है कबीर की जो विदेश से लौटा था अपने संस्कृति व संस्कारो को पाश्चात्य के प्रभाव में भूल गया था पर जिसके सर पे माँ का हाथ हो उसकी रक्षा तो स्वयं परमात्मा करते हैं अब देखते है "क्या माँ की आस्था कबीर को बचा पाएगी।"
कबीर कल ही विदेश से लौटा है उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है अब वापस वो इंडिया आया बैंगलोर में उसका पूरा परिवार रहता है। आते ही दरवाजे पर नजर पड़ी तो वो बड़बड़ाते हुए बोला "माँ क्या आप आज भी ,अभी तक इन सब चीजों पर विश्वास करते हो। सब बकवास है ,अंधविश्वास है। आप लोगो की ड़र की वजह से वो बुरा सपना मुझे आज भी आता है। अब ये ' नाले बा ' कल तक मिट जाना चाहिए नहीं तो...."
"क्या वो सपना अब भी तुझे आता है। तब तो तुझे यहां नहींं आना चाहिए था तू विदेश में हीं बस जा। यहां क्यों आया है ? अच्छा अब आ गया तो ठीक है पर यह जो दीवाल में लिखा हुआ है उसे भूल से भी नहींं मिटाना। "
" कबीर तुझे पता है तेरी लापरवाही की वजह से तेरे चाचा की जान गई थी। भूलना मत उस बात को बचपन में तूने दीवाल में लिखा हुआ अपने दोस्तों के कहने पर मिटा दिया था और फिर...." ये कहते हुए उसकी माँ रोने लग जाती है।
" क्या हुआ था माँ लोग तो कहते थे कि चाचा की किसी स्त्री से सम्बन्ध थे और उसी ने चाचा को मरवाया।"
"सब झूठ है बेटा हाँ ये जरूर सच है कि वो किसी और स्त्री से सम्बन्ध भी रखे थे पर तेरे चाचा के जाने के बाद वो भी गम में पागल हो गयी कुछ महीने बाद वो भी मरी हुई मिली। ये सब उस बुरी आत्मा का काम है बस तू ये याद रखना भूल से भी उस दीवाल का लिखा हुआ नहीं मिटाना।" कबीर ' हम्म' कहता है पर विदेश में रहने के बाद तो वो इन अंधविश्वास पर कभी भी विश्वास नहीं करने वाला था। वो सोचता है कि इन लोगो को इन कुविचारों से बाहर लाकर ही रहेगा। चाचा ने विजातीय लड़की को पसंद किया था सब समाज के ठेकेदारों का काम है जिसने चाचा को मरवाया होगा।
रात सबके सोने के बाद कबीर अपनी प्रेमिका नेहा को फोन लगाता है जो विदेश में उसके साथ पढ़ती थी। वो वहीं रहती है पर उसने वादा किया था कि वो हमेशा के लिए इंडिया आ जायेगी। नेहा का नम्बर पे कॉल किया पर मोबाइल पर नेटवर्क नहीं था। वो दरवाजा खोल कर बाहर आता है की शायद कवरेज पकड़ ले। कई बार मोबाइल चालू बंद किया पर नेटवर्किंग समस्या की वजह से कॉल नहीं लगा। वो अंदर आने लगा कि नजर दीवाल पर उसने अपनी जेब से रुमाल निकाला और 'नाले बा' को मिटा दिया। 11 बजे से 12 बजे तक वो दरवाजे पर बैठा रहा देखूँ जरा कौन सी चुड़ैल आती है। कोई नहीं आया वो मोबाइल लेकर अंदर आ गया फिर कई बार कबीर ने कोशिश की नेहा को कॉल करने की और फिर सोफे में ही उसकी नींद लग गयी।
करीब 1 बजे किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। वो तब तक देती रही जब तक कबीर की नींद न खुल गयी।
'नींद से उठते हुए कौन??
उधर से नेहा की आवाज आई
"अरे स्टुपिड पूरे घर को उठाएगा क्या? खोल दरवाजा मैं हूँ।"
नेहा की आवाज सुन कबीर दरवाजा खोलता है। बाहर कोई नहीं रहता।
कबीर कुछ दूर तक जाता है " नेहा ये मजाक का वक्त नहीं है कहाँ हो तुम बाहर आओ।"
"एक हंसी गूंजती है ।"
कबीर को पायल की आवाज आती है वो उस आवाज की ओर चलने लगता है। चलते-चलते वो सुनसान जगह पर पहुँच जाता है। नेहा कहीं भी नहीं दिखती पर कबीर को डर भी नहीं लगता उसे लगता है ये उसका वहम होगा। वो लौटने लगता है कि उसे कुछ याद आता है वो पलटता है " ओह्ह माय गॉड!" ये तो वही जगह है जो मेरे सपने में अक्सर आता है। वो चारो तरफ नजर दौड़ाता है भयानक सुनसान जगह जहाँ घनघोर अंधेरा है। एक बूढ़ा विकराल वृक्ष न जाने किसका है भयानक अट्टाहस कर रहा है। उस वृक्ष के भी डरावनी पिशाचो वाली लाल आंखे है बड़े- बड़े दाँत है उसकी शाखायें भी हाथ कई प्रकार की विचित्र पिशाच के चेहरे जैसे बन गया है ।
वो वृक्ष तरफ बढ़ने लगता है कि एक चुड़ैल जिसके लम्बे सफेद बाल है। बड़े बड़े सड़े हुए दाँत है व आँखों की जगह में कुछ भी नहीं। वो पेड़ से उल्टा लटकती हुई हंसती है और नेहा की आवाज में कहती है। " मुझे पहचाना नहीं ,मैं वही जो तुम्हारे सपने में आती हूँ । बरसो इंतजार करवाया तुमने।" कहते हुए वो भयानक हंसी हंसते हुए हवा में लहराई।
कबीर भय से पसीना से तर बतर हो जाता है। वो घिघियाते हुए पूछता है!
"कौ क.... कौन हो तुम?,क्यों मेरे पीछे पड़ी हो।"
चुड़ैल,पिशाचिनी मार डालो मुझे यही करोगी न मारो.."
वो चुड़ैल कबीर के सामने आती है जमीन से कुछ ऊपर उसके पैर रहते है जो उल्टे रहते है ये देख कबीर बेहोश होने लगता है कि आज तो पूरा कांड हो जाएगा। ये चुड़ैलों के किस्से पर कभी विश्वास नहीं किया पर ये तो सचमुच की होती है। आज तो गया वो गिरते -गिरते खुद को सम्हालता हुआ सोचता है भागने में ही भलाई है वो भागने लगता है पर जिधर भी भागता वो चुड़ैल भयानक हंसी हंसते हुए उसके सामने आ जाती इतना दौड़ने के बावजूद कबीर खुद को उसी पेड़ के पास पाता था।
विदेशी संस्कृति के प्रभाव के कारण न उसे कोई मन्त्र याद थे न देवी -देवता का नाम ही उसे याद आ रहा था। वो सोचने लग जाता है कि काश! बढ़ो पर विश्वास किया रहता तो ये रात न देखनी पड़ती अब तो बस मृत्यु ही सामने खड़ी है। वो कायर की मौत मरने से पहले हिम्मत करता है खुद को बचाने का अभी तो सिर्फ दो बजे है। किसी तरह 4 बज जाए तो माँ अक्सर कहती है सुबह का 4 बजे ब्रम्हमुहूर्त रहता है देवी-देवताओं का वास होता है उस समय ये पिशाची शक्तियां कमजोर पड़ जाती है। तभी उसे कुछ याद आता है और वो जेब टटोलता है कि वो चुड़ैल हवा में लहराती हुई कबीर के एकदम सामने आ जाती है कबीर बढ़ी जोर का आवाज निकालता है पर उसके गर्दन पर कुछ कसावट सी महसूस होती है उसकी आवाज निकलती ही नहीं।
वो अपना गला पकड़ लेता है कि एक तेज पेड़ की डाली आती है और करीब आते हुए एक नरपिशाच का रूप ले लेती है कबीर पर पंजो से वार करता है कि कबीर जमीन पर लेट जाता है वो पेड़ की टहनी नीचे गिर जाती है। इससे पहले की वो कुछ सम्हल पाता वो चुड़ैल फिर डरावनी हंसी हंसती है और कबीर हवा में लहराने लगता है उसका शरीर एक अंधे कुँए के ऊपर तैरने लगता है। जिसमें अजीब आवाजें आ रही थी पानी की जगह उसमे रक्त उफनते दूध की तरह ऊपर आने लगा। कबीर के हृदय में तीव्र पीड़ा होने लगी उसे लगने लगा आज तो पूरा क्रियाकर्म करके मानेगी ये चुड़ैल।
उसे याद आता है कि सुबह ही उसकी मम्मी ने उसके पर्स पर किसी की फ़ोटो डाली थी कि इसे कभी पर्स से बाहर मत करना यही तुम्हारी रक्षा करेंगे। वो लगातार हवा में गोल-गोल घूम रहा था उसका हाथ जेब तक जा ही नहीं पा रहा था। 'ओह्ह गॉड आप जो भी मेरी जेब में हो मेरी रक्षा करो। मेरी माँ की आस्था झूठी नहीं हो सकती मेरी माँ के लिए उनके विश्वास के लिए इस पिशाचिनी से रक्षा करो।
तब तक वो चुड़ैल उसे कुंए के पाट पर पटकती है और उसका गर्दन उस लहू में डुबाती है। उसके भयंकर विकराल रूप देख कबीर के हाथ पांव सुन्न पड़ने लगते है। वो झटके से अलग होता है पर अगले पल कुंए के ऊपर फिर तैरने लगता है अबकी कुआं से अजीब आवाजो के साथ भूतों की टोली नजर आ रही थी किसी की मुंडी नहीं तो कोई बड़े-बड़े दांतों वाला और फिर वो देखता है एक कटा हुआ पंजा उसकी ओर बढ़ रहा है। उसके कपड़े को फाड़ता है व जैसे ही पेण्ट तक हाथ पहुँचता है वो पंजा दूर फेंका जाता है। कबीर को कुँए में घसीटते हुए वो चुड़ैल अपने भयंकर दाँत उसके गर्दन पर गड़ाने को होती है कि कबीर को स्पर्श करते ही वो कबीर के साथ कुँए में गिरती है कबीर के बेहोश होते हुए देखता है !सुनहरे रंग का तेज प्रकाश में कोई लाल वस्त्र ओढ़े हुए अचानक से प्रकट होता है तेज प्रकाश कुआं में फैल जाता है, उस चुड़ैल की चीत्कार की आवाज आती है और फिर कबीर बेहोश हो जाता है।
सुबह के चार बजे रहते हैं फिर पाँच कबीर बेहोश कुँए में पड़ा है। सुबह 6 बजते ही कबीर की नींद खुलती है वो हिल भी नहीं पा रहा "कोई बचाओ !"कहकर चिल्लाता है सुबह टहलने वालो ने आवाज सुना और किसी तरह उसे बाहर निकाला गया। इधर सूखे अंधे कुँए में गिरे कबीर के दोनो हाथ उसकी छाती पर रखे पर्स पर रखा हुआ था न जाने कितने प्रकार के कीड़े मकोड़े उसके शरीर पर चल रहे थे पर वो निश्चिन्त लेटा था । कबीर के होश आते ही उसकी माँ पूछती है क्या हुआ था तो वो कहता है " मॉर्निंग वॉक के लिए निकला था और वो कुँए में गिर गया।" कबीर दो दिन भर्ती रहा हॉस्पिटल में उसने किसी को भी उस घटना के विषय में कुछ भी नहीं बताया पर एक परिवर्तन जरूर आया कि उसके पर्स में रखे हनुमानजी की फ़ोटो अब उसके दिल में भी है।