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Shalinee Pankaj

Abstract

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धरा व अम्बर

धरा व अम्बर

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ये कहानी है राजस्थान के जैसलमेर की जहां एक गांव था। उस गांव का नाम कुलधरा था। यह गांव बहुत ही समृद्ध था खेती-बाड़ी से लेकर सब सुख सुविधा थी पर पानी की कमी थी जिसकी वजह से समय-समय पर थोड़ी परेशानी होती थी। वो भी ज्येष्ठ ,वैशाख के महीने में।

यहां के बाशिंदे ज्यादातर ब्राह्मण थे। धर्म-कर्म सब होते थे समय-समय पर यज्ञ होते थे, वेद पाठ होते थे बहुत ही समृद्ध गांव था। यहां महिषासुर मर्दिनी की पूजा होती थी और यहां महिलाओं का भी बहुत मान था। पुरुष प्रधान समाज होने के नाते भी यह महिलाओं का एक उच्च स्थान था और बेटियों को तो साक्षात् देवी की तरह पूजा जाता था। यहां के सरपंच बहुत ही प्रतिभाशाली बहुत दयालु और अच्छे स्वभाव के इंसान थे। उनकी कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से वह परेशान रहते थे। बहुत पूजा पाठ करते हैं, उपवास रखते हैं तब जाकर उनके विवाह के 14 वर्ष पश्चात एक कन्या जन्म लेती है।

बेसन जैसे गौरे रंग कि वह कन्या ,चौड़ा ललाट और बहुत ही दिव्य लगती थी। जब उसका नामकरण संस्कार था तो सरपंच जी ने सब से पूछा कि कोई उपयुक्त नाम बताया जाए इस कन्या का नाम क्योंकि नाम का कहीं न कहीं जीवन पर प्रभाव तो पड़ता ही है। उस वक्त कुलधरा गांव में एक सन्यासी जी आए हुए थे वह भी नामकरण संस्कार में आए थे। उस स्वामी जी ने जब उस कन्या को देखा तो उनके मुख से अन्यास "धरा "निकला।

धरा के आने से गांव में खूब पानी होने लगा। तालाब, कुंआ लबालब गरमी में भी भरे रहते। खेती ,किसानी और समृद्ध होने लगी थी। लोग अब धरा को महिषासुरर्दिनी का ही रूप समझने लगे थे। धरा बचपन से ही गांव के ही एक ब्राम्हन युवक से प्रेम करती थी जो मन्दिर का पुजारी का बेटा भी था,बाहर से शिक्षा लेकर आया था। इधर धरा अब १८ वर्ष की हो चुकी थी। गांव के मुताबिक विवाह योग्य हो चुकी थी। आस- पास के गांव से कई रिश्ते भी आ चुके थे,पर गांव के लोग चाहते थे कि धरा विवाह के बाद भी यहीं रहे, ये गांव से कहीं न जाए क्योंकि वो तो लोगों के लिए देवी ही थी। लोगों की आस्था धरा के लिए मूर्तिपूजा से ज्यादा हो चुकी थी,उन्हें लगता कि धरा के रूप देवी ने अवतार लिया है। सब ने पुजारी जी के बेटे अम्बर से धरा का विवाह तय कर सगाई करवा दी। धरा व अम्बर दोनों खुश थे

गांव में एक बाहर का एक धनिक आदमी आया जो धरा को देख उससे विवाह की इच्छा रखा। जब पता चला कि उसकी सगाई हो गई तो अत्यन्त क्रोधित हुआ। उसने धरा को अपने हवाले करने को कहा अन्यथा भयानक परिणाम भुगतने को तैयार होने को। उसने एक दिन की मोहलत दी।

सब गांव वाले रातभर में गांव को छोड़ने को राजी हो गए पर धरा नहीं चाहती थी कि लोग बेघर हो। वो मन्दिर में जाकर प्रार्थना करती है उसकी वक्त वो दुष्ट वहां आ जाता है धरा के सामने वो अम्बर को मार देता है। ये देख धरा भी प्राण त्याग देती है,और श्राप देती है कि कुलधरा के गांव में कभी कोई पापी जीवित नहीं रहेगा।

धरा ने शरीर त्यागा पर उसकी आत्मा उस दुष्ट को व उसके साथियों को बहुत बुरी मौत देती है। धरा के जाते ही गांव श्रीहीन हो जाता है। गांव के लोग उस स्थान को छोड़ वहां से चले जाते है पर कहते है। धरा व अम्बर आज भी वहां है उनकी रूह वहां भटकती रहती है।



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