Ajay Singla

Others

4.1  

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स्वाद पंजाब के एक गांव का

स्वाद पंजाब के एक गांव का

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मैं दिल्ली में रहने वाला एक बिजनस मैन हूँ।मेरा एक चार साल का बेटा हैं ध्रुव और छः साल की बेटी निमिषा।मेरा बचपन लुधिअना के एक गांव में बीता है और जब मैं पंद्रह साल का था तब हमारी फैमिली दिल्ली शिफ्ट हो गयी थी।मेरे बच्चे दिल्ली में ही पैदा हुए और इन्होने वो गाँव अभी तक देखा भी नहीं था।बाकी बच्चों की तरह ये दोनों बच्चे भी फ़ास्ट फ़ूड बहुत पसंद करते हैं और जब कभी सलाद या हरी सब्जिओं की बात होती है तो मुँह बनाने लगते हैं।मेरा एक दोस्त है गुरजीत जो की हमारे गांव में ही रहता है।ये गांव लुधियाना से करीब तीस किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है और अभी शहर से जोड़ने वाली सड़क भी कच्ची ही है।गुरजीत के पास काफी जमीन है और वो एक संपन्न किसान है।महीना भर पहले मुझे गुरजीत का फ़ोन आया और उसने मुझे सर्दियों की छुट्टिओं में कुछ दिन के लिए परिवार के साथ गांव आने का न्योता दिया।मुझे भी गांव गए हुए करीब पंद्रह साल हो गए थे।हालाँकि इस बीच गुरजीत से बातें तो होती रहती थीं पर कभी जाना नहीं हुआ था।मेरी बीवी ने भी गांव कभी नहीं देखा था तो मैंने उसे हाँ कर दी |


पंद्रह दिसंबर का दिन था।हम करीब रात के आठ बजे उसके घर पहुँच गए।हमारे वहां पहुँचने के बाद बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी।हम सब को भूख भी बहुत लगी हुई थी।जब बच्चों को गुरजीत की बीवी ने पूछा कि क्या कहोगे तो दोनों एक सुर में बोले कि हम पीजा खाएंगे और कोक पिएंगे | गुरजीत ने उन को बताया कि पीजा तो नहीं आ सकता क्योंकि इतनी तेज बारिश के बाद सड़क बंद हो जाती है।उसने उनका मन रखने के लिए कह दिया कि पीजा कल खा लेंगे और आज जो सरसों का साग और मक्की की रोटी बनी है वो खा लेते हैं।बच्चे थोड़े उदास हो गए पर अब और कोई चारा नहीं था।हम सब खाने की टेबल पर बैठ गए |


हरी हरी साग को देखकर पहले तो बच्चों ने मुँह बनाया पर जब वो खाने लगे तो उन्हें काफी अच्छा लगा।उन्होंने सोचा भी नहीं था की कोई हरी सब्जी भी इतनी स्वादिष्ट हो सकती है।गुरजीत ने दो गिलास ताज़ी लस्सी के उनके पास रख दिए और घर का देसी घी साग में दाल दिया।हम मियां बीवी को तो ये स्वादिष्ट लग ही रहा था, दोनों बच्चों ने भी पेट भर के खाया।ध्रुव और निमिषा से ये सुनकर कि खाना बहुत टेस्टी था मेरा मन खुश हो गया |


अगले दिन सुबह गुरजीत ने मुझे जल्दी उठा दिया और मुझे खेतों की तरफ ले गया।सुबह की वो ताजा हवा में मैं पंद्रह साल बाद सांस ले रहा था।दिल्ली की प्रदूषित हवा में सांस लेने के बार इस शुद्ध हवा में सांस लेना बहुत अच्छा लग रहा था।गुरजीत ने खेत में से कुछ मूलियां और बाकी सब्जीयां निकालीं और हम घर की तरफ चल दिए जहाँ पर गुरजीत की बीवी मधानी से ताजा मक्खन निकाल रही थी।थोड़ी देर बाद हमारे सामने उसी मूली के परांठे और तजा मक्खन पड़ा था।हम सबने तीन तीन परांठे खाये।पेट तो भर गए था पर मन नहीं भरा था।ध्रुव को तो मुझे खाने से रोकना पड़ा।फिर गुरजीत हमें अपने बाग़ में ले गया।वहां हम सब ने तजा फल तोड़ कर खाये।उनका स्वाद उन फलों से बिलकुल भिन्न था जो कोल्ड स्टोरेज में से आते हैं जो कि हम दिल्ली में खाते थे |


घर वापिस आते हुए हमें एक गन्ने का खेत दिखाई दिया जहाँ पर एक किसान गन्ने काट रहा था।निमिषा के कहने पर गुरजीत ने उससे दो गन्ने ले लिए और वहीँ पर उसकी पोरी काट कर सब को चूसने के लिए दे दीं।बच्चे पोरिओं को चूसना नहीं जानते थे तो मैंने उन्हें चूस कर दिखाया।मुझे अपना बचपन याद आ गया था।मेरी बीवी और बच्चे भी स्वाद ले ले कर गन्ने खा रहे थे।गन्ने के खेत के पास ही उन गन्नों में से रस निकालकर एक किसान गुड़ बना रहा था।गुरजीत ने गरम गरम गुड़ का एक एक ढेला सभी को दिया।उस गुड़ का स्वाद किसी भी मिठाई से ज्यादा अच्छा था।अगले दिन हमें दिल्ली वापिस जाना था।ध्रुव और निमिषा मुझसे पूछ रहे थे कि क्या हम एक दिन और यहाँ रुक सकते हैं और मैं ये सोच रहा था कि क्या ये बच्चे अब जंक फ़ूड छोड़ हेल्दी खाना खाने लगेंगे और ये भी कि ऐसा ताजा, स्वादिष्ट और हेल्दी खाना क्या मुझे दिल्ली में मिल पायेगा | 


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