प्यार की दो बातें - भाग २
प्यार की दो बातें - भाग २
अंकित के माता पिता तो उस रात कहीं बाहर गए थे पर उसे ये समझ में नहीं आ रहा था कि वो पार्टी में क्या पहन कर जाये। वो आज नेहा के सामने अच्छा दिखना चाहता था। उसने अपने कई शर्ट पैंट ट्राई किये और आखिर में जो उसे सब से अच्छा लगा वो पहन लिया। वो बार बार शीशे में देखता कि वो कैसा लग रहा है। अपने बालों का स्टाइल भी उसने दो तीन बार बदला। आखिर में वो गिफ्ट लेकर नेहा के घर पहुँच गया। जब उसने दरवाजे पर घंटी बजाई तो उसका दिल बड़ी जोर से धड़क रहा था। वो चाह तो रहा था कि नेहा ही दरवाजा खोले पर उसे डर भी लग रहा था कि कहीं नेहा को देखकर वो घबराकर में कोई बचकानी हरकत न कर दे। संजोग से नेहा ने ही दरवाजा खोला। वो कुछ नहीं बोला, बस उसे देखता रह गया। नेहा ने भी उसकी तरफ देखा और शरमाकर अंदर चली गयी। वहां बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी। बस पड़ोस के कुछ बच्चे ही थे। अंकित ने नेहा के भाई आनंद को गिफ्ट दिया और वहीँ एक कुर्सी पर बैठ गया।
सारे बच्चे मस्ती में गाना वगैरह गा रहे थे और स्नैक्स खाने में मशगूल थे पर अंकित का सारा ध्यान नेहा पर केंद्रित था। वो किचन की तरफ जाती तो अंकित की नजर उस तरफ चली जाती और जब वो स्नैक्स लेकर आती तो अंकित की नजर उसका पीछा करती। जब नेहा उसकी नजरों से इधर उधर हो जाती तो वो बहुत उतावला हो जाता और उसकी नजर नेहा को ढूंढ़ने लगती। वो मन ही मन उससे बहुत सी बातें कर रहा था पर उसके सामने कुछ भी न बोल पाया। नेहा उसके सामने एक कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स की एक प्लेट रख गयी। उस समय दोनों की आँखें तो मिलीं पर वे दोनों बोले कुछ नहीं। वो दोनों ही शायद मुँह से नहीं आँखों से ही बातें करना चाहते थे। घर आकर भी अंकित का मन नेहा में ही लगा रहा और उस रात ढंग से सो भी न सका। एक दो सपना भी जो आया तो बस नेहा को देखता और सपना टूट जाता।
नेहा का भाई आनंद उसे रास्ते में अक्सर मिलता रहता था और उससे आनंद की दोस्ती भी हो गयी थी। एक दिन आनंद शाम को अंकित के पास आया और बोला कि मैं फिल्म के तीन टिकट लाया हूँ। मैं और नेहा तो जा ही रहे हैं, क्या तुम भी हमारे साथ जाना चाहोगे। अंकित की तो जैसे मुँह मांगी मुराद पूरी हो गयी हो , उसने हाँ में सिर हिला दिया। अब तो उसके दिल की बैचेनी और भी बढ़ गयी और वो सोचने लगा कि अगर नेहा मेरे साथ वाली सीट पर बैठी होगी तो वो अपने दिल को कैसे संभालेगा और उसे ये भी डर लगा कहीं वो कोई उलटी सीधी हरकत न कर दे जिससे कि नेहा बुरा मान जाये और वो अपने प्यार को पाने से पहले ही न खो दे। वो ये भी सोच रहा था कि तीन घंटे नेहा उसके साथ बैठी होगी और इन तीन घंटों में उसे जब भी मौका मिलेगा वो अपने दिल की बात नेहा से कह देगा। उसने शीशे के सामने बोलने की प्रैक्टिस भी कर ली थी। पिक्चर हाल में जाने की लिए तीनों ने एक ऑटो किया। नेहा ऑटो में उसके साथ सटकर बैठी थी। इससे पहले उससे इतना करीब उसका प्यार कभी नहीं था। अंकित पूरे रास्ते नेहा को ही निहारता रहा। नेहा भी कभी कभार तिरछी नजर से उसकी तरफ देखती और फिर नजरें झुका लेती। दोनों के दिल शायद मिल गए थे बस जुबान से इकरार करना बाकी था। घबराहट का आलम ये था कि दिल बाहर को आने लगा था। इतने में सिनेमा हाल भी आ गया और दोनों अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। यहाँ भी वो अगल बगल में ही बैठे थे।
अंकित पिक्चर देखने तो आया नहीं था बस जो देखने आया था उसे ही देखता रहा। नेहा का भी मन पिक्चर देखने में ज्यादा नहीं लग रहा था। वो भी काफी आधीर दिख रही थी और थोड़ी थोड़ी देर बाद अंकित को अपनी और देखते देख रही थी। अचानक दोनों का हाथ एक दुसरे से छू गया। दोनों अंदर तक सिहर उठे पर किसी ने भी अपना हाथ नहीं हटाया। अंकित ने नेहा का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया। नेहा ने भी उसे छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की। दोनों के मन तो पहले से ही मिल गए थे अब तन भी मिल गए। पिक्चर में भी एक रोमांटिक गाना चल रहा था और दोनों उसमें खो गए। बिना कुछ कहे उनके प्यार का इजहार और इकरार दोनों हो गए थे।
मूवी ख़त्म होते ही तीनो घर की और चल पड़े। आनंद उनसे पिक्चर के बारे में डिसकस कर रहा था पर उन दोनों ने पिक्चर तो देखी ही नहीं थी| वो बस आनंद की हाँ में हाँ मिलाते रहे। आज अंकित बहुत खुश था। उसे मनचाहा साथी मिल गया था। आज वो बड़े चैन की नींद सोया। नेहा के बारे में सोचने पर उसे जो घबराहट हुआ करती थी वो भी आज नहीं हुई थी।
अगले कुछ दिन वो जब कभी भी एक दुसरे को देखते तो बस मुस्कुरा देते थे। गली में जाते हुए, कॉलेज में या छत पर बस आंखों से एक दुसरे से बातें कर लिया करते थे। अभी भी बैठ कर बातें करने का समय शायद आया नहीं था। प्यार दिनों दिन परवान चढ़ रहा था, बढ़ता जा रहा था। मोहल्ले के लोगों को भी शायद इसकी भनक लग गयी थी। एक दिन अंकित ने अपने पापा और मम्मी को आपस में लड़ते देखा। वो पूरी तरह से तो नहीं सुन पाया पर कुछ कुछ जो उसने सुना उससे उसे लगा कि बात उसके बारे में ही हो रही है। हालांकि वो इस बात से कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाया पर किसी अनहोनी की आशंका से डर गया। उसे लगा शायद उसके पापा को उसके और नेहा के बारे में पता चल चुका है और वो नेहा को खो देगा।
उस दिन नेहा छत पर नहीं आई। उसने सोचा कि वो वैसे ही घबरा रहा है अगले दिन कॉलेज में उससे मिल लेगा। अगले दिन जब नेहा कॉलेज भी नहीं आई तो वो बहुत घबरा गया। उसे ये अंदेशा हो गया था कि शायद उसकी और नेहा की बात नेहा के घर वालों को भी पता चल गयी है। जब वो कॉलेज से वापिस आया तो नेहा के पापा और उसके पापा आपस में किसी बात पर बहस कर रहे थे। अंकित को देखकर वे दोनों चुप हो गए और अपने अपने घर चले गए। अब तो अंकित को यकीन हो गया कि बात बहुत बढ़ गयी है और उसे नेहा को खोने का डर सताने लगा। जब वो घर पहुंचा तो माँ ने उसे गले से लगा लिया। माँ की आँखों में आंसू थे। माँ ने उसे बताया की तुम्हे कल ही अपनी बुआ के पास इंग्लैंड जाना है और तुम्हारे पापा ने टिकट वगैरह सब करवा दी है और अगली पढाई तुम्हे वहीँ करनी है। अंकित ने माँ से इसका कारण भी नहीं पूछा क्योंकि वो अब सब जान गया था। शाम को वो छत पर इस आस में गया की नेहा को आखरी बार देख सके और इशारों इशारों में ही सही उससे कोई बात कर सके पर नेहा आज भी छत पर नहीं आई थी। अंकित को ये भी पता था कि अगर वो अपने पापा से नेहा और अपने बारे में कोई बात करता है तो वो नहीं मानेंगे। उसकी आँखों में आंसू छलक आये और वो अपने कमरे में चला गया। वहां जाकर वो फूट फूटकर रोया।
थोड़ी देर में उसकी माँ भी उसके कमरे में आई और दोनों एक दुसरे से लिपटकर रोने लगे। उस रात अंकित एक पल के लिए भी नहीं सोया और यही सोचता रहा कि नेहा पर क्या बीत रही होगी।