प्यार की दो बातें -भाग १
प्यार की दो बातें -भाग १
अंकित एक बहुत ही सीधा सादा लड़का था। अभी वह सोलह साल का हुआ था। जवानी और कॉलेज में बस कदम ही रखा था। नए नए दोस्तों से मिलने और कॉलेज में नए नए चेहरों को देखना दोनों ही उसे सकून देते थे। अंकित थोड़ा शर्मीला किसम का लड़का था और दूसरों से बहुत कम ही बात करता था पर अंदर ही अंदर सपने बुनता रहता था और दिन में भी सपने देखने का शौक़ीन था। जब कभी भी फ्री होता बस अपने आप से बातें करने लग जाता।
एक दिन वो कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठा अपनी क्लास शुरू होने का इंतजार कर रहा था कि एक लड़की भागी भागी वहां आई। वो भी कॉलेज में नयी आयी लग रही थी। आँखों में घबराहट, पतली कमर, मुख जैसे कमल खिला हो और उस पर पसीना मानो ओस की बूंदे। अंकित को पहली नजर में ही वो भा गयी। वो अंकित के पास आकर मेडिकल फर्स्ट ईयर की क्लास का रास्ता पूछने लगी। अंकित उसे देख कर स्तब्ध सा हो गया था और कुछ बोल नहीं पाया। वो बस उसे देखता रह गया। लड़की थोड़ी देर रुकी पर जवाब न पाकर मुस्कुराती हुई चली गयी। थोड़ी देर बाद कॉलेज शुरू होने की घंटी बजी और अंकित अपने क्लासरूम में चला गया।
अंकित बैठा तो क्लासरूम में था पर अपने मन के अंदर वो उसी लड़की को निहार रहा था। दिन में सपने देखने का शौक तो था ही उसे, बस उस लड़की के सपने में खो गया। सपने में जब उस लड़की ने उससे क्लासरूम के बारे में पूछा तो उसने सब बतला दिया और फिर उसने उस लड़की से पूछा कि क्या आप इस कॉलेज में नयी आईं हैं। जब लड़की ने हाँ में सिर हिलाया तो उसने कहा कि मैं भी मेडिकल फर्स्ट ईयर में पढता हूँ और उसे अपने साथ ही क्लासरूम में ले गया। रास्ते में बहुत सी बातें भी करता रहा और दोनों दोस्तों की तरह मुस्कुराते रहे। उसे पहली नजर में ही प्यार हो गया था।
इतने में उसके दोस्त रघु ने उसका हाथ दबाया तो वो असल जिंदगी में लौट आया। रघु ने जब पूछा कि वो किन ख्यालों में गुम है तो वो कुछ नहीं बोला। वो जल्दी से अपने उसी सपनों की दुनिया में लौटना चाहता था और उस लड़की से बहुत सी प्यार भरी बातें करना चाहता था। तभी उसकी नजर कुछ दूरी पर बैठी एक लड़की पर पड़ी। ये वही लड़की थी। पहले तो उसे लगा की ये सपना ही है पर फिर जब उसे यकीन हो गया की ये लड़की उसी की क्लास में है तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। वो पूरी क्लास में बस उसे निहारता रहा। हालाँकि रघु उसका बहुत पक्का दोस्त था पर अभी वो उससे भी अपने मन के भाव छुपाना चाहता था और उससे कुछ नहीं बताया।
वो हर रोज क्लास में ऐसी सीट पर बैठता जिससे कि उस लड़की का दीदार बे रोकटोक हो सके और उसका चेहरा साफ़ साफ़ दिखता रहे। उसका दोस्त रघु उससे पूछता कि तुम रोज रोज अपनी सीट क्यों बदलते रहते हो पर वो कोई न कोई बात बना देता। कुछ दिनों बाद जब रघु को उसपर शक हो गया और उसने जोर देकर पूछा तो उसने रघु को अपने मन की बात बता दी पर उसे किसी और से न कहने के लिए कह दिया।
एक दिन वो जब घर जाने की लिए कॉलेज के गेट पर खड़ा था तो वो लड़की भी वहां आई। दोनों की नजरें भी आपस में मिलीं। अंकित उसे बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद वो आत्मविश्वास जो उसे अपने सपनों में होता था असल जिंदगी में नहीं था। लड़की ने उसे देखा और मुस्कुरा कर चली गयी और अंकित उसके मुस
्कुराते हुए मुख की झलक आँखों में भरकर घर चला आया।
आज का दिन उसके लिए बहुत ख़ास था। उस लड़की के मुस्कुराने से उसे लग रहा था जैसे उसका पहला प्यार उसे मिल गया हो। वो इस दिन और कुछ नहीं करना चाहता था बस उस लड़की की याद और प्यार में ही खोकर बिताना चाहता था। खाना खाकर वो सो गया और उसी लड़की के सपने देखता रहा। शाम को वो उठा और छत पर टहलने चला गया। वहां भी वो उस लड़की के बारे में ही सोच रहा था कि उसकी नजर सामने वाले मकान की छत पर पड़ी। वहां पर एक लड़की खड़ी थी जो कि दूसरी तरफ देख रही थी। ये मकान कई महीने से खली पड़ा था और इसमें एक दिन पहले ही कोई नया किरायेदार आया था। अंकित ने उस परिवार को अभी देखा नहीं था। जब वह लड़की पलटी तो अंकित को तो मानो कोई खजाना मिल गया था। ये वही लड़की थी और इस बार भी अंकित बस उसे देखता ही रह गया। उस लड़की ने भी अंकित को देखा और फिर से एक बार मुस्कुराकर नीचे चली गयी। अंकित छत पर खड़े खड़े ही सपनों में खो गया और उस लड़की से सपने में ही नाम पूछने लगा। उसने उसे अपना नाम भी बताया और दोनों ने बहुत सी बातें कीं। तभी नीचे से अंकित को माँ की आवाज सुनाई दी और उसका सपना टूट गया।
अंकित की दिनचर्या उस लड़की को देखने से शुरू होती थी। फिर कॉलेज में वो उसे जी भर के देखता। शाम को छत पर उसके दर्शन करता और रात को सपने भी उसी के देखता। अगले दिन फिर यही क्रम शुरू हो जाता। वो बहुत कोशिश करता कि उस लड़की से बात करे और अपने प्यार का इज़हार करे पर शायद वो अलग ही मिट्टी का बना हुआ था बस उससे सपनों में जितनी चाहे बातें करा लो पर असल जिंदगी में पता नहीं उसे क्या हो जाता था और उस लड़की को तो देखते ही उस का दिल जोर जोर से धड़कने लग जाता था और उसकी घिग्गी बंध जाती थी। हाँ एक बात जरूर थी, वो लड़की भी उसे कभी कभी तिरछी नजर से देखती रहती थी और शायद वो भी अंकित से प्यार करने लगी थी। करीब एक महीना ऐसे ही बीत गया पर अंकित उसका नाम तक नहीं जान पाया था, बात करना तो बहुत दूर की बात थी।
एक दिन वो अपने कमरे में बैठा हुआ था कि बाहर किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई। अमित अपने सपनों में ही मशगूल था और उसको घंटी सुनाई ही नहीं दी। जब घंटी तीन चार बार बज चुकी तो उसे थोड़ा होश आया और उसने जाकर दरवाजा खोला। उसके सपनों की परी उसके सामने खड़ी थी। वो अपने छोटे भाई के साथ आई थी जिसका की उस दिन जन्मदिन था। वो अंकित और उसके माता पिता को जन्मदिन की पार्टी का निमंत्रण देने आई थी जो उन्होंने अपने घर पर ही रखी थी। अंकित उसे देखता ही रह गया। इतने में उसकी माँ आ गयी और उन दोनों को घर के अंदर ले गयी। उसकी मम्मी ने उस लड़की से नाम पूछा तो उसने नेहा बताया। अंकित को भी ऐसे अपने प्यार का नाम मालूम हो गया। अंकित की मम्मी ने नेहा से कहा कि अंकित के पापा और वो तो पार्टी में नहीं आ पायेंगें क्योंकि उन्हें कहीं जाना है पर अंकित आ जायेगा। अंकित के मन में लड्डू फूट रहे थे। एक तो उसको आज अपने पहले प्यार का नाम पता चला था और दूसरा आज ही उसके घर जाने का मौका भी था। पर उसे थोड़ी घबराहट भी हो रही थी कि जब वो नेहा के घर जायेगा तो क्या उससे कोई बात कर पायेगा या नहीं।