मसीहा
मसीहा
अलीपुर नाम का एक गांव शहर से करीब पचास किलोमीटर दूर था। गांव के बीचो बीच एक स्कूल था जिसमें कि पचास बच्चे पढ़ते थे लेकिन स्कूल में आने वाले बच्चों की संख्या कभी भी दस से ज्यादा नहीं हुई। बहुत से अध्यापक आये और चले गए पर न तो उनका ज्यादा पढ़ाने में इंटरेस्ट रहा और न ही बच्चों का या उनके माँ बाप का। बच्चे बस दिन भर गलियों में खेलते रहते, कभी कभार ही स्कूल जाते। माँ बाप दिन भर काम में लगे रहते। खेती उनका मुख्य पेशा था और ज्यादातर वक्त खेतों में ही गुजरता। कुछ बच्चे भी स्कूल आने की बजाये अपने माँ बाप के साथ खेतों में ही काम करते। आपसदारी भी गांव में बहुत अच्छी नहीं थी। लोग छोटी छोटी बातों पर आपस में लड़ते रहते थे। कभी खेतों में पानी छोड़ने पर या कभी खेतों की बाउंडरी को लेकर छोटी छोटी लड़ाइयां होती रहती थीं। गांव की औरतें भी कभी पानी भरने को लेकर या बच्चों की लड़ाई को लेकर आपस में लड़ती रहती थी। लोग ज्यादा समृद्ध भी नहीं थे।
फिर एक दिन राम कुमार नाम का एक अध्यापक उस गांव के स्कूल में आया। पहले ही दिन पचास बच्चों की जगह दस बच्चे देख कर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। अगले कुछ दिन वो सभी बच्चों के घर उनके माता पिता को समझाने भी गया कि पढ़ाई जिंदगी में बहुत जरूरी होती है पर कुछ ज्यादा फ़ायदा नहीं हुआ। गरीबी के कारण पढ़ाई उन लोगों के लिए बहुत ज्यादा अहमियत नहीं रखती थी। राम कुमार एक अच्छा इंसान था और चाहता था की बच्चे पढ़ लिख कर अच्छे इंसान बने पर उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे। अगले दिन से उसने सभी बच्चों को अपनी तरफ से दोपहर में कुछ मिठाई वगैरह देनी शुरू कर दी। जब बच्चों ने दूसरे बच्चों को ये बात बताई तो स्कूल आने वालों की संख्या बढ़ने लगी। उसका पढ़ने का अंदाज भी कुछ अलग था। वो बच्चों को तरह तरह की कहानियां सुनाता और उनसे जो सीख मिलती है वो बताता। वो कभी बच्चों को खेतों में ले जाकर पी टी करवाता और उस शुद्ध माहौल में उन्हें कई तरह की प्रार्थना करवाता। बच्चे भी उसे बहुत पसंद करने लगे थे।
शाम को वो गांव में घूमने चला जाता और सब का हाल चाल पूछता। कोई थोड़ा बहुत बीमार होता तो अपने पास से कोई जड़ी बूटी भी दे देता। धीरे धीरे गांव वाले उसे काफी मानने लगे थे और इज्जत भी देने लगे थे। गांव में कभी कोई लड़ाई झगड़ा होता तो लोग सलाह मशविरे के लिए उसके पास आने लगे। वो बड़े प्यार से दोनों धीरों को समझाता और उनके झगड़े का निबटारा कर देता। उसे आधुनिक खेती का भी थोड़ा बहुत ज्ञान था और ये भी वो लोगों को बताने लगा जिससे की उनकी फसल की उपज भी बढ़ने लगी। कुछ ही देर में गांव में बहुत कुछ बदल गया था। शायद लोग भी ज्यादा समझदार हो गए थे। गांव पहले से काफी समृद्ध हो गया था और बच्चों का भी पढ़ाई में मन लगने लगा था। लोग उसे गांव के लिए भगवन का भेजा हुआ मसीहा मानने लगे थे। वो आपस में भी अब मिल जुलकर रहने लगे थे और लड़ाइयां अब करीब करीब ख़तम हो गयीं थीं।
फिर एक दिन राम कुमार का ट्रांसफर किसी और गांव में हो गया। पूरा गांव उसके घर इकट्ठा हो गया और उसे वहां से न जाने के लिए कहने लगा। कई बच्चे तो रो रहे थे। उन सब को लग रहा था कि उनका मसीहा अगर चला जायेगा तो वो कैसे रहेंगे और राम कुमार सोच रहा था कि यहाँ का काम तो हो गया है, अब इस गाँव को मेरी जरूरत नहीं है, चलो कहीं और चलते हैं जहाँ शायद मेरी जरूरत ज्यादा हो।