अभी मैं हूँ

अभी मैं हूँ

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अभी दस ही बजे हैं और कोलतार की काली-काली सड़कें धुआँ उगलने लगी जैसे चीला बनाने के लिए तवे पर तेल डाल कर तब तक गरम किया जाता है जब तक उस पर से धुआँ नहीं उठने लगता। इक्का-दुक्का दूर-दराज खड़े पेड़ ऐसे मौन खड़े हैं जैसे कोई हठयोगी निश्चल रह कर हठयोग साध रहे हों। कहीं -कहीं लाल-पीले गुलमोहर के फूल सड़क पर बिछे दिख जाते। जिन्हें भूख की मारी बकरियाँ बड़े प्यार से चबा रही थी। काँख में लाठी दबाये चरवाहा इधर-उधर जाती बकरियों को हाँकता ’’छू रे...ऽ.....ऽ.! जिसे देखो वही कहता मिलता-’’ बाप रे कैसी गरमी है ऐसी गरमी हमारी जानकारी में कभी नहीं पड़ी। ज्यादातर बोर बेकार हो गय, नगर निगम के पाइप सूखे पड़े हैं पैसे वाले तो बिसलरी पी रहे हैं गरीब-गुरबा के लिए जोहड़ भी सूखे हैं पानी के लिए मार-काट के समाचार रोज ही छपते हैं।

पानी की याद आते ही उसे जोर की प्यास का एहसास हुआ। मन हुआ एक मिनट रुक कर बोतल से एक घूँट पानी पी ले । लेकिन उसने मन को मारा ’’ अभी-अभी चली हूँ आफिस से और प्यास भी लग गई । पार्टी आगे बढ़ी जा रही है। वे लोग एसी कार में हैं और वह तो अपनी खटारा एक्टिवा से जा रही है। मौसम चाहे जैसा हो जहाँ देखो वहीं भीड़, चाहे अस्पताल हो, कचहरी हो, सिनेमा हाॅल हो या दुकाने, पैर रखने की जगह मिलना मुश्किल , आजकल तो और शादियों का मौसम चल रहा है सुबह से बाजार में भीड़ हो जाती है। बाजा वालों से घिरे नाचते लोग गुजरे नहीं की दूसरा दल प्रगट हो गया। जाम का सामना करने की हिम्मत करके ही घर से निकलो तो ठीक।

उसने गमछे से अपना सिर , मुँह ढाँक रखा था। पैर का जो हिस्सा चप्पल से बाहर था लगता था वह जल जायेगा। उसने देखा कि पार्टी की कार रुकी हुुई थी।वह बिलासपुर मुंगेली रोड पर थी। यह शहर कुछ इस तेजी से अपने पंख फैला रहा है कि आसपास के कस्बे शहर के मोळहले बनते जारहे थे। बिलासपुर से तखतपुर जाते समय तखतपुर से ठीक पहले पड़ने वाले गाँव खपरी में जमीन लेकर -’मातृशक्ति’ नामक कंपनी ने प्लाटिंग करके जमीन बेचने का काम प्रारंभ किया था। अखबार में विज्ञापन देखकर आई थी वह पहले तो राय सर ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा फिर हाथ जोड़ लिए ’’ मुझे नहीं लगता कि आप जमीन की दलाली का काम कर पायेंगी ये तो नई उम्र की लडकियों का काम है।’’

 ’’ सर आप एक बार मुझे मौका देकर तो देखिये। काम-काम होता है , करने वाले की मेहनत और लगन उसे सफल बनाती है , मैं कर लूंगी। ’’ उसने बड़े आत्म विश्वास से कहा था।

’’ जब आवश्यता होगी आप पार्टी को जमीन दिखाने लेकर चली जायेंगी नऽ...’’? राय सर को अब भी भरोसा नहीं था कि यह एक क्विंटल से अघिक वनज वाली प्रौढ़ महिला उसकी कंपनी का कोई भला कर पायेगी।

’’ सर! मैं कमीशन बेस पर भी काम करने के लिए एग्री हूँ।’’ तब उसे काम पर रखा था राय सर ने । अब यह तो उसका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा न कि विगत दो महिने में वह एक भी सौदा नहीं करा पाई। ये भला हो राय सर का जो उसे पेट्रोल का खर्च देते जाते हैं । सौ आदमी को दिखाओं तब कहीं जाकर एक आदमी को जमीन का लोकेशन पसंद आता है। कई बार तो लगता है जैसे बस अब रजिस्ट्री होना भर बाकी है और सब किये-कराये पर पानी फिर जाता है। कभी लोन नहीं मिलता कभी घरवाले कोई नुक्स निकाल देते, कभी दूसरे दलाल सस्ते सोदे का लोभ दिखा कर ग्राहक को तोड़ लेते । क्या दिन क्या रात बस वह सौदा पटाने के फेर में पड़ी हुई है

’’ हत् रे! इन शादी वालों के चलते तो और मरना हो रहा है। आगे सड़क पर लगे जाम को देख कर वह बेवशी में बुदबुदाई । बाजे के आगे एक मोटी सी महिला लोट-लोट कर नागीन डांस कर रही थी । उसकी चंचलता वास्तव में देखने लायक थी गाना बज रहा था---- मैं नागीन तू सपेरा ऽ...मैं नागीन तू सपेरा ऽ... सपेरा ऽ...


 किसी ने शरारत की सड़क पर एक बाल्टी पानी डाल दिया। नाचने वाली तो अपनी धुन में थी सारा साज-बाज लसर गया। तब कहीं जाकर उसका नाचना रुका और वह जुलूस खरामा-खरामा आगे बढ़ा।वह चीटीं की चाल से आगे बढ़ने पर मजबूर थी कि किसी ने भीड़ में पुकारा ’’ अरे दया तू यहाँ कहाँ किसी पाॅलिटिकल मीटिंग में जा रही है क्या?’’ मिलन थी उसकी सहेली जब वह सत्तारूढ़ पार्टी को विजयी बनाने के लिए बवंडर की तरह एक-एक मोहल्ले में घूम-घूम कर अपने प्रत्याशी को वोट देने के लिए प्रेरित कर रही थी उस समय यह भी साथ में लगी रहती थी। उसे उम्मीद थी कि उसके पति को अथवा उसे कोई न कोई ढंग की नौकरी मिल जायेगी और यह भटकन समाप्त हो जायेगी। किंतु जीतने के बाद प्रत्याशी मंत्री बन गये और आश्वासनों के सिवा कुछ न मिला उसे । उसने सुना था किसी के मुख से ’’ दौड़े तो इतने लोग है अगर सब कुछ हम अपने लोगों में ही बाँट देंगे तो जनता को क्या देंगे मेरे हाथ कोई जादू की छड़ी तो आ दहीं गई है, उसब को नौकरी ही चाहिए जब तक मेरा काम किये खर्चा पूरा किया या नहीं लेन- देन बराबर हुआ कि नहीं । उसे लगा जैसे उसका निशाना चूक गया । इन तीलों में तेल नहीं हैं । चाहे जितना पेरो।

’’ क्या बात है आजकल दिखाई नहीं देती?’’ भीड़ को काटती वह उसके पास आ गई थी, और अपना एक हाथ गाड़ी के हेंडिल पर रख दिया।

अजीब धर्मसंकट आ पड़ा पार्टी कब तक उसका इंतजार करेगी?

’’ सुन ऽ न ऽ बहन! मैं इस समय बहुत जल्दी में हुँ तेरे जीजा की तबियत ठीक नहीं है अस्पताल में अकेले पड़े हैं मुझे माफ कर देना मैं बहुत जल्दी मिलती हूँ तुझसे ।’’ उसने दाँत निपोर कर उससे निवेदन किया और गाड़ी तेज कर भाग चली। ’’ बाप रे ! बची भगवान् नही तो मिलन पूरी बखिया उधेड़े बिना छोड़ने वाली कहाँ थी?उसने ऐसे सुकून अनुभव किया जैसे पेड़ से गिरते-गिरते कोई पतली सी कमजोर सी शाख उसके हाथ आ गई हो।

जनलेवा गर्मी में उसने पार्टी को प्लाॅट दिखलाया। ’’ सर! तीस बाई पचास का काॅर्नर वाला प्लाॅट चैराहे पर पड़ेगा पूर्वमुखी बना ले या उत्तर मुखी यह नक्शा देख लीजिए! संमाने में पार्क ओर उसी में मंदिर , हमारी कंपनी बनाकर देगी। एकदम सस्ते में सर! मात्र दस रूपये वर्गफुट । चाहे ं तो कमर्शियल यूज भी कर सकते हैं चार दुकाने सामने पीछे रिहाइसी। सभी सड़के साठ फुट की रहेंगी बाउन्ड्री वाॅल पन्द्रह फुट ऊँची गेट इतना बड़ा कि दो गाड़ियाँ एक साथ आ जा सकें । लोन की सुविधा तीन प्रतिशत ब्याज दर पर । वह अधेड़ उम्र का प्रभावशाली व्यक्ति था। सिर के बाल एकदम काले अंगुलियों में कीमती अंगुठियाँ ,लक-दक सूट वह आँखें सिकोड़े सब कुछ सुन रहा था ।

’’मैं समझ गया मैडम! एक दिन मिसेज़ को भी लाकर दिखा देता हूँ बस डन समझिये। वैसे यहाँ बसाहट होने में अभी वक्त तो लगेगा ही। ’’ वह गंभीर सवर में बोला और अपनी गाड़ी की ओर लौट पड़ा। उसके साथ का युवक खा़मोशी से सब कुछ समझ रहा था। उनकी कार घूल उड़ाती आँखों से ओझल हो गई

 उसने एक लंबी निःश्वास छोड़ी ऐसा कह कर तो सभी जाते हैं आ जाये समझूँं ।

बाकी दिन पार्टी के इंतजार में ही बीता।

उसने मिलन से झूठ नहीे कहा था वह जो दुर्भाग्य से उसका पति है जिसने दारू के लिए अपने सारे खेत बेच डाले । वैसे तो दया भी खेतों को बेंच कर शहर में जमना चाहती थी। वह शहर की लड़की गााँव में खेती करने से रही । फिर दकियानूस परिवार जहाँ की सत्ता एक दादी कही जाने वाली सौवर्ष पुरानी औरत के हाथ में ताले में रखी खाने-पीने की वस्तुएं अक्सर सड़ जाती थीं तब औरतों में बाँटी जाती थीं उसने कुछ दिन देखा फिर एक दिन दादी का ताला तोड़ कर उसमें रखी मिठाइयाँ खा डाली , घर में हरा-हाकार मच गया। जैसे ही सोमेश ने मारने केलिए हाथ उठाया उसने पकड़ कर झटक दिया। उसने दीवार पर हाथ टेक लिया नही तो गिर ही पड़ता। सास को मारने वाले ससुर को उसने अच्छा सबक सिखाया। उनका खाना दाना बंद करके। घर वालों ने उसके खेत अलग किये ओर दोनो ने ऐ दूसरे से छुट्टी पाई । घर खरीदना है खेत बेचो सोमेश , धोखा हुआ बयाना लेकर भाग गया। घर का सोदा करने वाला क्योंकि उसने एक ही घर का सौदा कई लोगों से किया था। अब बचे पैेसे से घर तो मिलने से रहा। चलो कहीं घूम आते हैं कोडइ्र कनेाल , वहाँ से ऊटी है ही कितनी दूर ? बार-बार आना कहाँ हो सकेगा। बचे रूपये से बुछ दिन दिन’राात डूबना उतराना शराब में , फिर चलो बेंच देते हैं । बी.सी खेलाते हैं बनारस वाले भइया, जोड़ों महिलाओं को , जो पचास प्रतिशत छोड़ दे। बी.सी उठा ले । हर बार बनारसी भइया ही जीतने वाले से ऊँचे ब्याज दर पर बी.सी के पैसे ले लेते । दुगना पाने के लोभ में औरतें छोड़ती जाती। पाँच लाख की देनदारी में छोड़ कर गायब हुए थें बनारसी भइया। तब तो सोमेश ने उसे बचाने केलिए स्वयं ही खेत बेचे थे। दषल से उसे बहत उम्मीदें थीं किंतु वह भी माँ’बाप से अलग नहीं निकला। आखिरी पाँच ण्कड़ बेच कर इस बार शर बनवा लेते हैं आधे में रहेंगे आधा किराये पर देकर बैठ-बैठे आराम से खायेंगें । झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी। जमीन दुगने दाम पर मिली जल्दी न खरीदती तो वह भी दारू में ही चला जाता। बनवाने में सारी हसरतें पूरी कर ली उन दोनों ने कर्जा इतना हो गया कि घर बेचना पड़ गया। जो कलह मचा घर मे ंकि जीना मुहाल हो गया दयाल न जाने कहाँ भाग गया घर छोड़ कर ं सोमेंश पड़ा है सरकारी अस्पताल में लिवर, किडनी कुछ भी तो नहीं बचा है।, रेाना धोना किया था उसने । सब से कटी सबसे कलंकित । उसने स्वयं नौकरी का फैसला किया । सामान रहेगा तो सोमेश बना ख लेगा वह जानती थी । पीने के अलावा सारे गुण थे उसमें ।

 वह रात भर अस्पताल में जागी । तबियत बहुत बिगड़ गई थी सोमेश की । सुबह दस बजे आॅफिस पहुँची तो राय सर ने उसे एकाएक बधाइयों से ढाँक दिया।

 ’’ बधाई दया मैडम आप के चार सौदे डन हो गये’’

 भरे दिल से सुनती रही । सब कुछ गया तो क्या हुआ ’अभी मैं तो हूँ’।



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