पंखुड़ुियाँ
पंखुड़ुियाँ
’’ दीदी ! मैं सोचती हँं। हमें भगवान् ने ऐसा क्यों बनाया कि हमारी आबरू का मोती दूसरे के पाप से बेआब हो जाता है ? मेरी क्या गलती थी दीदी ? सोलह साल की उम्र में, मैं एक गरीब बाप की बेटी, अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं उठाने की नियत से स्कूल से आने के बाद दो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी , न मैं घूमने निकली थी और न ही किसी लड़के के साथ मौज मस्ती कर रही थी, फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ दीदी ?’’ वह फिर रोने लगी । शामली वही दुखड़ा सुनते-सुनते ऊब चुकी थी तरह-तरह से समझा चुकी थी, मानसी भूलने को तैयार ही नहीं थी ’’ मानसी जिन्दगी कुछ पलों का नाम नहीं यह एक लंबा सिलसिला है जिसमें बहुत कुछ हमारी इच्छा के विपरित होता है , आगे की मंजिल पाने के लिए अपने जीवन से दुःख के अंधेरे मिटाने के लिए जीवन में मान-सम्मान पाने के लिए मनुष्य को बारंबार प्रयास करना चाहिए। और वही हम सब मिल कर कर रही हैं ।
अपने से अधिक पीड़ित को देखो नऽ! कई लड़कियों को सामुहिक बलात्कार के बाद मार कर फेंक दिया जाता है वे अपना प्रतिकार लेने के लिए जीवित नहीं रह पातीं, हम तो फिर भी ठीक हैं, हमारा जीवन तो बच गया ? देह की मैल को दिन रात जीकर आत्मा पर घूल की तरह मत छा जाने दो मानसी, देखना एक दिन सब कुछ भूल कर सब लोग तुम्हारे प्रति श्रद्धा रखेंगे और पापी लोग सदा निंदित होकर मरेंगे । चलो अब कुछ बना लेते हैं, आज हमने दोपहर का भोजन भी नहीं किया। आज का दिन हमारे लिए जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है मुकदमे के कारण और हम इसे हरदम जीते रहे , अब देखना बड़ी जल्दी भूल जायेंगे।’’ शामली ने मानसी को ही नहीं स्वयं को भी समझाया।
’’ नाराज मत होना दीदी ! तुमने मेरी बडी़ मदद की है फिर भी कहूंगी कि भगवान् की कृपा से तुम्हें इस पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ा इसीलिए तुम भूलने की बात कहती हो।’’ मानसी का स्वर जरा सा कसैला हो गया। उसकी बात सुनते ही शामली का चेहरा काला पड़ गया। पूरे शरीर में जैसे सनसनी दौड़ गई । वह धम्म से कुर्सी पर बैठ गई । उसकी हालत देख कर मानसी को अपनी गलती का एहसास हुआ
’’ माफ करना दीदी यदि मेरी बात से तुम्हें कोई ठेस पहुँची हो तो, मैं तुम्हारे लिए पानी लाती हूँ’’ वह रसोई की ओर भागी।
’’ मानसी! मानसी ! मैं इस दर्द से अनजानी हूँ ऐसा सोचना तुम्हारी भूल है ,देख रही हो न सपना को ? कभी सोचा कि इसे मैं कहा ँसे लाई इसके रिपोर्ट कार्ड में जिस सोमदत्त का नाम लिखा है उसे क्या कभी देखा तुमने ?’’ शामली की आवाज काँप रही थी।
’’ तो क्या वे आप के ........ ?’’
’’ हाँ ऽवे मेरे पति हैं । सारे समाज के सामने उन्होंने मेरे साथ अग्नि के सात फेरे लिए थे।’’
’’तो दीदी! क्या वे जीवित....... ?’’
‘‘ हाँ वे जीवित हैं लेकिन कभी अपनी बेटी को देखने नहीं आये जानती हो क्यों ?’’ शामली ने आँसू भरी निगाहें उठा कर उससे पूछा
’’ यदि आप को मुझ पर विश्वास है तो बता दीजिए दीदी!’’
’’ वही पीड़ा! वही दर्द जिसे तुम एक पल के लिए भी भूल नहीं पा रही हो।’’
’’ क्या शादी के बाद की बात है ?’’ मानसी की जिज्ञासा चरम का स्पर्श कर रही थी।
’’ सोम एक अच्छी कंपनी में सर्विस करते हैं। हमारा अपना घर था जिसमंे जीवनोपयोगी सारे संसाधन थे। वे सुरुचि वाले व्यक्ति हैं । घर में तो एकदम सहज थे किन्तु बाहर से मैं अनजान थी उस समय कुछ लोग अक्सर उन्हें पूछने आने लगे थे। कभी चार बजे सुबह तो कभी ग्यारह बजे रात । अक्सर वे मुझसे कहला देते कि वे घर पर नहीं हैं । वे लोग कुछ बड़बड़ाते वापस चले जाते थे। जब कभी घर से निकलते या घर में घुसते उनसे मुलाकात हो ही जाती तब ये उनसे बड़े खुशामदी लहजे में बातें करते। अगले दिन मिलने का वादा करके उन्हें विदा कर देते, अगले दिन से फिर बहाने बाजी प्रारंभ कर देते। आते जाते बात-चित करते वे मेरे परिचित हो गये । वे मुझे भाभी कहने लगे। पहले दरवाजे पर खड़े-खड़े बातें होती फिर बैठक में बैठ कर वे उनका इंतजार करने लगे। उनकी बातों से पता चला कि सोम उनका तीन लाख का कर्जदार है। सुन कर मेरे तो होश उड़ गये। इस बीच घर में ऐसा कोई सामान भी नहीं आया था जिसका उधार हो सोम को अच्छी तनख्वाह मिलती थी परिवार हमारा छोटा सा ही था । मैंने उनकी बात का पूरा-पूरा विश्वास नहीं किया। घर आने पर जब मैंने बात छेड़ी तो सोम एकदम हत्थे से उखड़ गये।
’’ऐसे बदमाशों के साथ अकेली बैठती हो यही है सभ्य घर की औरत के लक्षण ? ऐसी औरतें ही अपने पति की हत्या तक करवा देतीं हैं। बताओ तो तुम्हें क्या आवश्यकता है उनसे बात करने की ? खबरदार जो आज से उनके लिए दरवाजा खोली ! ज्यादा हमदर्दी है तो जाओ उन्हीं के साथ रहो।’’ उन्होंने बात को पूरी तरह विषय से भटका कर मुझे चुप करा दिया। किन्तु मेरा प्रश्न तो अशेष था उनसे कर्ज आखिर क्यों लिया गया । उस रूपये को कहाँ खर्च किया गया ? ’’
दो-चार दिन बाद वे तीनों, भौमिक, पवन और तपन फिर आ धमके। मेरी हिम्मत न हुई उनके सामने आने की। वे बहुत देर तब डोरवेल बजाते रहे जब पड़ोसी ताक झाँक करने लगे तो मुझे उनके सामने आना ही पड़ा ’’ भाभी दरवाजा खोलो! भौमिक ने तडक कर कहा ं उसका अंदाज मुझे अच्छा न लगा।
’’ अभी वे घर पर नहीं हैं जब आयेंगे तब आप लोग आना । अभी कृपा करके जाओ। ’’ मैंने धीमी किन्तु दृढ़ आवाज में कहा । उन्होंने मेरी ओर भेद भरी नजरों से देखा।
’’ ठीक है मत खोलो दरवाजा, किन्तु अपने प्यारे पति से कह देना कि अब बहुत हुआ । जुआ खेलने के लिए पैसा लिया , हमने शराफत से दे दिया अब उसकी नियत में हमें खोट नजर आ रहा है तो हम भी अपने तरीके से वसूल करना जानते ह,ैं औरत बच्चे तो हैं बेटा तेरे ? देखते हैं कहाँ तक भागता है ? बस कल शाम तक का समय दे रहे हैं मूल ब्याज सहित पाँच लाख हमारे अड्डे पर पहुँचा दे वर्ना हमें दोष न दे आगे।’’ भौमिक ने ही सारी बातें कही और वे तीनो चले गये।
उस दिन शाम को सोमू घर नहीं आये। मैं भय से अपनी बच्ची को सीने से चिपकाये पूरी रात उनका इंतजार करती रही। ’’ वे उन लोगों के हाथ तो नहीं लग गये ? कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया ?’’ मन हजार कोठे दौड़ रहा था।
’’ एक बार आ जाये ंतो उनसे सलाह करके किसी प्रकार से रूपयों का प्रबंध करके इन दुष्टों से मुक्ति पाने का यत्न किया जाता , इस प्रकार भागने से कोई समाधान तो होने से रहा , वे औरत बच्चे का नाम लेकर धमका गये हैं न जाने क्या कर गुजरें ? मैंने पुलिस की मदद लेने के बारे में सोचा किन्तु इनसे मसविरा किये बिना कुछ भी करने की मेरी हिम्मत न पड़ी। कहीं बात और बिगड़ गई तो सारा कलंक मेरे माथे पर ही आयेगा। मायके में किसी को बताऊं तो इनकी बदनामी हो ?, ससुराल से कोई उम्मीद नहीं थी क्योकि शादी के बाद हमने उनसे कोई संबंध नहीं रखा था । वे आते तो कुछ कह सकते थे अपने पापा या भइया से। न होगा तो गहने बेच देंगे। उस पर भी पूरा
न होगा तो ये घर बेच कर कर्जे से मुक्ति पा जायेंगें अपना परिवार बच जाय फिर सब कुछ आ जायेगा। मैंने इन्हीं संकल्पों विकल्पों में रात गुजारी । दूसरे दिन सपना को स्कूल भेजने की हिम्मत न पड़ी मेरी । कभी बेटी की रक्त रंजित छवि आँखों के सामने घूम जाती कभी लगता बेटी का अपहरण हो गया। खोज-खोज कर परेशान हूँ मिल नहीं रही है।
वह दिन तो सुरक्षित निकल गया। रात को इनका फोन आया वह किसी अन्य का नंबर था इसलिए मैंने डरते-डरते फोन उठाया । इनकी आवाज पहचान कर खुशी से मेरा गला भर आया। उन्होंने अपने सुरक्षित होने की सूचना दी और कहा मैं सपना को लेकर कुछ दिन के लिए अपने मायके चली जाऊं वे थोड़े दिन में सब कुछ ठीक करके हमें वापस ले आयेंगे।’’ दूसरे दिन मैंने रेलवे स्टेशन जाने के लिए आॅटो मंगवाया , जैसे ही घर से निकलने को हुए भौमिक का फोन आ गया।
’’ भाभी डर कर भागने से कुछ न होगा चुपचाप घर में रहो नही ंतो और गुस्सा आ जायेगा हमें ’’
’’ सुनिए वे पैसे के इंतजाम में लगे हुए हैं, आप लोग थोड़ी मोहलत दीजिए । अभी तो आप लोगों के भय से घर ही नहीं आ रहे हैं । जब आप लोगों ने विश्वास करके दिया है तो वैसे ही प्रेम से लीजिए।’’ मैंने अपनी समस्त वाक्चातुरी का प्रयोग किया था।
’’ ठीक है हम लोग कल दोपहर को आयेंगे आप दरवाजा खोलना, बैठ कर बातें कर लेंगे।’’ उसने फोन काट दिया था ।
मैं उनके विरूद्ध जाने की स्थिति में नहीं थी। मेरी छठी इन्द्री किसी भयानक अनहोनी की सूचना दे रही थी। मैंने सोचा मोहल्ले के दो चार लोगों को बुला कर बैठा लूंगी ताकि वे किसी प्रकार की मनमानी न कर सकें।
कि वे तीनो आ धमके।
’’ दरवाजा खोलो!’’ भौमिक ने सरगोशी की। मेरा सर्वांग काँप उठा। मैं अपने स्थान पर जड ़की तरह खड़ी थी। वे आराम से बाउंडरी वाॅल कूद कर अंदर आ गये। कंधे के धक्के से प्लाईउड का दरवाजा खोल कर अंदर आ गये। बिजली की तेजी से पवन ने मेरे मुँह पर अपना हाथ रख कर पीछे से अपनी मजबूत बाहों में जकड़ लियां उतनी ही तेजी से तपन ने सपना को अपने कब्जे में ले लिया उसके हाथ में खुला हुआ चाकू था जिसे देखकर सपना सकते में आ गई थी । मैं अपनी ताकत भर पवन का प्रतिरोध कर रही थी । तपन सपना को लेकर बरामदे में चला गया। भौमिक ने मेरी साड़ी खींच कर उससे मेरे हाथ पैर बांध दिये। मेरे मुँह में कपड़ा ठुस कर कस कर बांध दिया।
पवन खुले चाकू के साथ दरवाजे की तरफ मुँह करके खड़ा हो गया। भौमिक ने अपने कपड़े उतारे और मेरी आबरू के चिथड़े करने लगा। मंैने सारे देवताओं को पुकारा किन्तु उस समय मुझे बचाने कोई नहीं आया। तीनो ने बारी-बारी से मेरी मजबूरी का लाभ उठाया। अब तक पड़ोसी अपनी खिड़कियों से झाँकने लगे थे। वे तीनो अपनी मोटर साइकिलों से भागे । सपना डर से बेहोश हो चुकी थी। शामली अपने आँचल में मुँह छिपा कर सिसक रही थी।
’’ दीदी! दीदी! मुझे माफ कर दो! मैं आप के जख़्म कुरेदना नहीं चाहती थी । मानसी उससे लिपट कर रो पड़ी। सपना इनके रोने की आवाज सुन कर दौड़ी आई थी।
’’ अरे! अरे ! आप लोग ये क्या कर रहीं हैं ? अभी-अभी तो अच्छी भली आईं हैं!’’ उसके प्रश्न के उत्तर से बचने के लिए दोनों ने खुद को संभाला।
’’ मासी तुम ही बताओ क्या हुआ तुम लोगों को ?’’
’’ कुछ नहीं रेऽ ! हम लोग सोच रहे थे कि जब तू अपनी ससुराल जायेगी तब हम कैसे रोयेंगे गले मिल कर ? ’’ मानसी गीली आँखों के साथ मुस्कुरा उठी। इसी समय डोर वेल बज उठी।
’’ देख तो बेटी कौन है ?’’ शामली ने उससे छुटकारा पाकर संतोष की साँस ली।
’’ काकू माँ! काकू आये हैं। ’’ उसने निश्चल जी के हाथ से मिठाई का डिब्बा ले लिया था।
’’ आइये सर जी! आइये आप को कोटिशः बधाई! आप की मेहनत से ही आज मानसी को न्याय मिल सका। ’’ शामली ने हृदय से उनका आभार माना।
’’ बधाई तो तुम्हें देने आया हूँ तूुम्हें सरकार की ओर नारी रत्न सम्मान मिलने वाला है ये देखो हमारी संस्था के पास मैसेज आया है। ’’ उन्होने एक लिफाफा उसकी ओर बढ़ा दिया।
’’ किसलिए सम्मान मिलेगा सर जी ?’’ उसने आश्चर्य से पूछ
’’ अपने अपराधियों के साथ अन्य इंक्यावन बलात्कार के अराधियों को सजा दिलाने में सरकार की मदद करने के लिए एक लाख रूप्ये सहित प्रशस्ति पत्र मिलेगा एक बड़े समारोह में ।
’’ बाप रे इतना काम किया दीदी ने ?’’
’’ हाँ इनके ऊपर क्या गुजरी ये तो तुम जानती ही होगी ? इन्होंने अपने पड़ोसियों की मदद से थाने में रिर्पोट करवाई । अपने अपराधियों को पहचाना जब वे गिफ्तार हो गये तब इनके पति परमेश्वर घर आये । आकर इन्हे जी भर कर डाँट लगाई कि उनसे पूछे बिना थाने क्यों गई ? अब अगर उनके आदमी उन्हें या सपना को मार डालेंगे तभी इनका मकसद पूरा होगा ? जो कुछ हुआ इनकी वजह से हुआ! यदि उन्हें मुँह न लगाती तो कुछ न होता। क्या बोली थी तुम, जरा बताओ तो मानसी को! ’’ उन्होंने शामली की ओर देखा था ।
’’ उनकी बात सुन कर मेरा आहत सम्मान और घायल हो गया, मंैने कहा-जो कर गुजरे हंै ंउससे बुरा कुछ नहीं करेंगे। इज्जत आबरू खो कर जीने का अब मतलब ही क्या रह गया है ?’’ वे मेरी बात सुन कर चुप रह गये। कुछ दिन बाद मुझे मेरे मायके पहुँचा गये। उस दुर्घटना के बाद मेरी उनसे मुलाकात कोर्ट में ही होती थी। पेशी के दिन साथ देने आते थे, हमारे बीच के भावनात्क रिश्ते मर चुके थे। वे ग्यारह बजे चुपचाप कोर्ट में दाखिल होते मेरे साथ रहते और शाम को अजनबी की तरह हम अपने-अपने रास्ते चले जाते थे। मैं हर बार उनका मुँह ताकती शायद मुझे घर चलने के लिए कहें शायद ये कहें कि तुम्हें मेरे पापों की सजा मिल गई शामली, मुझे बड़ा पछतावा हो रहा है। या शायद ये कि तुम्हारे बिना घर , घर नहीं रह गया चलो पुरानी बातें भूल कर नया जीवन प्रारंभ करते हैं , परंतु उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला । माता -पिता की मृत्यु के बाद भाई भाभी ने घर खाली करा लिया। मुझे अपनी बेटी को लेकर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। ऐसे समय आरोपियों की ओर से मोटी रकम ले कर सुलह कर लेने का प्रस्ताव भी आया जिसे धिक्कार कर ठुकरा दिया मैंने। उसी समय मुझे सर जी मिले थे मेरी जैसी महिलाओं की चिन्ता करने वाले, उनके हक के लिए लडने वाले, मैंने इनके रेडीमेड कपड़े के कारखाने में काम करना शुरू किया और साथ ही इनके पुनीत कार्य की सहयोगी बन गई । पाँच वर्षो की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मेरे अपराधियों को हाईकोर्ट से आजन्म कारावास का दंड मिला । उसी दिन अंतिम बार दिखे थे सोमू , मैं उनके बोलने का इंतजार करती रही, वे अपनी मोटर साइकिल पर बैठ कर चले गये थे। एक बार घर जाकर देखा तो पता चला कि वे घर बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गये। मैंने पूरा ध्यान अपने काम में लगाया मानसी, अब देखो लोग मेरे काम की कद्र करने लगे हैं । ’’ शामली ने अपनी बात समाप्त कर एक बार निश्चल जी के चरण स्पर्श किये ।
’’ आप जैसे पुरूष के संसर्ग में रह कर कोई औरत पुरूष मात्र से घृणा कैसे कर सकती है ? कुछ पागल लोग जीवन की गाड़ी के दोनो पहियों को एक दूसरे की विपरित दिशा में कैसे लगा सकते हैं सर जी ?’’ वह श्रद्धावनत थी।