कब आयेंगे?

कब आयेंगे?

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सुबह से वह नर्स के पीछे- पीछे घूम रही थी। बच्चे को गोद में लिए-लिए। आज तीन दिन हुए बिलासपुर के सरदार बल्लभ भाई पटेल चिकित्सालय में अपने तीन वर्ष के बेटे को लेकर आई थी। आधी रात को अचानक नीरू ठंढ से काँप उठा। थोड़ी देर में ही उसका शरीर तपने लगा था। उस समय घर में वही दोनो बच्चों के साथ थी। राघव की ड्यूटी डाकू पीड़ित एरिया में लगी थी, जहाँ से न वह आ सकता था न हाल-चाल ले सकता था, क्योंकि वहाँ टाॅवर की समस्या होती थी। बड़ा बेटा कान्हा जो सात साल का था ,उसे सोता छोड़ कर वह घर से निकली थी पड़ोसिन को बता दिया था कि वह अस्पताल जा रही है। इतनी रात को अकेली निकलने का संभवतः यह पहला ही मौका था। रिक्शे से जब वह अस्पताल के लिए निकली तो बेतहाशा घबराई हुई थी। ’’ कोई उसे गलत न समझ ले?’’ 

’’ अब जिसे जो मन आये समझता रहे। ’’ उसने स्वयं को हिम्मत दी थी। सेकेंड शो सिनेमा छुटा था उसी समय, जिसके कारण सड़के गुलजार थीं। अस्पताल पहुँची तो इमरजेंसी वाला डाँ. आराम कर रहा था । वह बाहर नहीं निकला , हाँ नर्स को आवश्यक सुझाव देकर पुनः सो गया। बच्चों के नये वार्ड में एक भी पलंग खाली नहीं थी, अतएव पुराने वाले वार्ड में उसे जगह मिली । उस हाॅल की छत एक ओर लटकी हुई थी। बरसात में ओरवाती की तरह पानी कमरे में गिरा होगा जिसका दाग अभी तक जीवित है एकदम तरोताजा। वहाँ टूटे हुए पलंग रख दिये गये थे। उन्हीं में से एक जरा से अच्छे में उसे अपने बच्चे को सुलाना पड़ा। दो पलंग पर हड्डी के ढाँचे जैसे बच्चे सो रहे थे। फर्श पर पोलीथिन , रद्दी कागज धूल-धक्कड़ ,मकड़ी के जाले झूल रहे थे। उसने एक बार कहने के लिए मुँह खोला था-

’’ सिस्टर! पलंग पर बिछा गद्दा तो एक दम फट गया है जगह-जगह रूई जमा हो गई है, इतने गंदे में कैसे रहेंगे?’’

’’ यहाँ तो यही सब है, उधर पलंग खाली होगा तब मिल जायेगा । अच्छा चाहिए तो प्राइवेट में चली जाइये , सरकारी आस्पताल और कैसा रहेगा ? "

उसने नीरू को दवाई पिलाई उसकी आवाज बेहद कर्कश थी। वह चुप रह गई , इतनी रात में कहाँ जाये बच्चे को लेकर, फिर एक सिपाही को वेतन ही कितना मिलता है कि उसके बच्चों का इलाज़ प्राइवेट अस्पताल में हो? वह रात भर नीरू को कंधे पर लिए वार्ड में टहलती रही । बैठते ही वह रोने लगता था। नर्स द्वारा दी गई दवाई से कोई फर्क न पड़ा । नीरू का बुखार जैसे का तैसा बना रहा । वह नर्स के सामने गिड़गिड़ा रही थी-

’’ सिस्टर मेरे बच्चे का बुखार नहीं उतरा, कुछ कीजिए!’’ 

 पहले तो उसने अनसुना कर दिया बाद में एक इंजेक्शन लिखकर दे दिया। दो मंजिल नीचे उतर कर वह इंजेक्शन ले आई । तब तक सुबह हो चुकी थी। पास ही बजरंगबली का मंदिर था जहाँ से पूजा की घंटियाँ सुनाई देने लगी थीं। जिन मरीजों का नाम कल लिखा जा चुका था उन्हें चाय दी जाने लगी थी। दूसरे वार्डों में झाड़ू लगने लगा था । इधर शायद कोई नहीं आता। वह फिर नर्स के पीछे-पीछे घूमने लगी थी-

’’ सिस्टर मेरे बच्चे को इन्जेक्शन लगा दो! बुखार उतर जाय इसका।’’

’’ तुम्हारे जैसे मरीज आ जाये तो हम लोग पागल ही हो जायेंगे। चलो अपने पलंग के पास आ रही हूँ।’’

डाँट खाकर वह वहाँ से हट गई लेकिन ऐसी जगह खड़ी हुई जहाँ से नर्स दिखाई दे रही थी। 

’’ ए लोग जरा भी ध्यान नहीं देती बहिन जी, बस टाइम पास करके अपनी तनख्वाह बनाती हैं कुछ कहो तो प्राइवेट अस्पताल जाने की सलाह देतीं हैं। ’’

उसी के समान कम उम्र माता थी वह भी, उसकी परेशानी देख कर बिना किसी भूमिका के बोलने लगी थी।

’’ क्या हुआ आप के बच्चे को ?’’

उसने पूछा।

’’ बुखार सिर में चढ़ गया है। ’’

’’ आराम लग गया उसे?’’

 ’’ नहीं अभी कहाँ? घर जाकर डाॅक्टर को पैसे भी दिये तब भी कोई फायदा नहीं है, यहाँ के डाॅक्टर अपने निजी क्लिनिक खोल कर बैठे हैं, वहाँ से ही फुरसत नही मिलती इन्हें ।’’

 ’’इन को कोई कुछ बोलने वाला नहीं है क्या? रुला कर रख दिया।’’

’’ कौन बोले? कहीं कुछ उल्टा-पुल्टा कर दिया तो कहाँ जायेंगे।’’

वह अपनी पलंग के पास चली गई 

 उसने देखा कि नर्स अपना काम खत्म कर अपने घर के कपड़े पहन कर निकल रही हैं, उसके बदले जो नर्स आई है उसे कुछ समझा रही है। उसने वार्ड में टंगी घड़ी देखी, दो बज चुके थे। 

’’ ओह! आज तो मुँह में पानी भी नहीं गया, पानी की किसे चिंता है? नीरू को इंजैक्शन ही नहीं लग पाया अब तक। बुखार से तड़पता बच्चा छोड़ कर वह मुँह धोने कहाँ जाय? सुबह एक बार पेट भारी सा लगा था, लगा जैसे अब अगर पेट खाली न हुआ तो नीचे का कुछ फट जायेगा । टूटी पलंग पर नीरू को लेटा कर प्रसाधन में घुस गई थी, पहले ही कदम में पैर गू के चोत पर पड़ गया, उसने दरवाजे का सहारा ले लिया वर्ना उसी पर गिर पड़ती। पूरे बाथरूम में कहीं भी पैर रखने की जगह नहीं थी। कहीं खून सनी पट्टियाँ तो कहीं थाली का जूठन पड़ा था, बदबू के मारे नाक फटने को हुई अब लैाटना भी मुमकिन न था, पैर तो धोना ही था। ले -दे कर नल के पास तक पहुँची तो पानी ही नहीं था। उसने भी दीवार में पैर पोंछा और बच्चे को उठाये पानी खोजती हुई नीचे तक आई। उधर जहाँ मरीज के रिश्तेदारों को भोजन बनाने की सुविधा दी गई थी वहीं एक हेंड पंप था उजाला हो चुका था इस लिए उसकी शंका का समाधान तो न हो सका, पैर अवश्य धुल गया। तब से उसने सोच लिया कि यहाँ जब तक है अन्न-जल से दूर ही रहेगी ।

’’ सिस्टर डॅाक्टर कब आयेंगे’’

’’ क्या काम है डाॅक्टर से?’’ नर्स ने एकदम रूखी आवाज में पूछा 

’’ सिस्टर ! मेैं कल रात से आई हूँ अभी तक किसी डाॅक्टर ने मेरे बच्चे को नहीं देखा। सिस्टर ने एक इंजेक्शन लिख कर दिया था वह भी अभी तक नहीं लग पाया , कृपा कर के आप ही लगा दीजिए नऽ...!’’ वह रोआँसी हो रही थी। 

’’ आप चलो अपने बेड के पास , सुबह वाली से ऐसे ही क्यों नहीं बोली? अब जब अपने काम से फुरसत पाऊँगी तब लगा दूंगी। वह आ कर टूटी पलंग पर एक किनारे बैठ गई । नीरू लगातार कराह रहा था। आठ बजे दूसरी नर्स आ गई। वह उसके सामने भी रिरियाती रही। आठ बजे के लगभग एक युवक स्टाफ रूम में आ गया। नर्स की चाल में मस्ती आ गई । कभी वह उसे कुछ खिलाता शायद अंगूर के दाने उसके मुँह में डालता जा रहा था, नर्स हाथ में सिरिंज पकड़े जल्दी-जल्दी आती, मरीज की बाँह में सूई घोंपकर फुर्र हो जाती । स्टाफरूम से आवाज तो बाहर नहीं आ रही थी लेकिन उनका एक दूसरे के पीछे भागना, पकड़ना, एक दूसरे को प्यार भरी निगाहों से देखना , युवक के हाथ से कुछ लपक कर खाना मुँह में अदा से चुभलाते हुए बाहर निकलना, उसके साथ और कई लोग देख रहे थे। बच्चों की कराह के बीच यह सब कुछ बड़ा अशोभनीय प्रतीत हो रहा था।

 ’’ अरे! यह क्या हो रहा है बच्चे को इंजेक्शन लगाने का समय नहीं है इनके पास और मटकने के लिए समय है?’’ उसने जरा जोर से कहा अब उसका धैर्य चूक रहा था। 

’’ यह रोज आ जाता है, अब सुबह तक यही तमाशा होगा यहाँ ।’’ जिस औरत ने सुबह उससे बात की थी वही आ गई थी पास तक। 

उसने सारा गुस्सा पीकर एक बार इस नर्स से भी निवेदन किया । इसने भी उसे पलंग के पास भेज दिया। उसे पता चला कि टेªनिज नर्सेस अपनी टेªनिंग पूरी करके अभी ’अभी गईं हैं नई अभी आईं नहीं जिसके कारण अस्पताल में नर्सेज की कमी हो गई है इसी कारण ठीक से मरीजों की सेवा नहीं हो पा रही है। 

’’ क्या करूँ ? कुछ समझ में नहीं आता , आज राघव यदि यहाँ होते तो उसे ऐसी परेशानी में न फंसना पड़तां । उसे तो जैसे इन्होंने भिखारी से भी गया बीता समझ लिया है। चैबीस धंटे में न तो डाॅक्टर देखने आया न बुखार का इंजेंक्शन लग पाया। जहाँ डाॅक्टर न पहुँचने के कारण देश की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी काल कवलित हो र्गइं वहाँ अगर उसके साथ ऐसा हो रहा है तो कौन सी बड़ी बात हो गई । उसके मन ने दलिल दी। उसने समाचार में सुना था कि इक्त्तीस अक्टूबर सन््ा1984 में जब प्रधान मंत्री को गोली मारी गई तब उन्हें एम्मस ले जाया गया जहाँ डाॅक्टर के विलंब से पहँचने के कारण वे बिना किसी चिकित्सा के ही इस संसार से कूच कर गईं। एक बच्चा पड़ोसियों के भरोसे पड़ा ह,ै कोई आया भी नहीं पूछने। किसकी सहायता नही की है उसने ? आज किसी को उसकी याद नहीं आ रही है।

यह रात भी चिंता में ही बीत गई, हाँ लेकिन एक संकल्प देकर गई। रात भर उसके दिमाग में शिकायत पत्र का मजमून बनता बिगड़ता रहा। सबेरे उसने किसी से कुछ नहीं कहा चुपचाप बच्चे को लिए-लिए अस्पतालके बाहर निकली कागज और पेन लेकर आई वह। उसने खंडहर जैसे वार्ड के पलग पर नीरू को सुला दिया । उसने अपने मोबाइल पर एक विडियो बनाया और उसे अपने गु्रप में डाल कर आगे बढ़ाने का आग्रह किया। उसने राधव को फोन लगाने का प्रयत्न किया चुंकि वह जंगली क्षेत्र में तैनात था इसलिए टावर नहीं मिलता था । आज भी उससे संम्पर्क नहीं हो सका ं इसी समय नये वार्ड से रोने की आवाज आने लगी , वहाँ कोई बच्चा मर गया था। वह काँप कर रह गई। उसने पास की पलंगों पर निगाह डाली वे दोनों खाली थीं ं पता चला कि वे बच्चे भी दुनिया छोड़ गये। उसके हाथ में कलम काँप

 उठी। 

उसने लिखा

श्रीमान् सी.एम. ओ. साहब,जिला चिकित्सालय बिलासपुर 

महेादय, 

  मैं रेखा पांडे एक सिपाही की पत्नी हूँ , मेरे पति डाकू पीड़ित क्षेत्र में तैनात है जहाँ जंगल में ट्रेन रोककर गाडी़ लूट ली जाती है। आज तीन दिन हो गये मैंने अपने बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया है किंतु अभी तक उसे किसी डाॅक्टर ने नहीं देखा। उसकी हालत बिगड़ती जा रही है यहाँ तक कि उसे बुखार का इंजेक्शन भी नहीं लग सका । यहाँ रात के समय बाहरी लोग आते हैं, रात वाली नर्स जिसके साथ बातचित में मशगुल रहती है। यदि मेरे बच्चे को कुछ होता है तो पूरी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की होगी। 

              प्रार्थी रेखा पांडे। 


उसने शिकायत पत्र सी. एम. ओ. की टेबल तक स्वयं पहुँचा दिया। 

और बच्चे को सीने से लगा कर रोने लगी। थोड़ी ही देर में उसने वार्ड में कुछ हलचल सी अनुभव की। एक नर्स आई और उसे अपने साथ नये वार्ड में ले गई। उसकी आलमारी में कुछ दवाइयाँ लाकर रख दी गई । कई डाॅक्टर्स के साथ सी. एम. ओ. साहब आये । नीरू की हालत देख कर उनके माथे पर चिंता की रेखाएं खींच गईं । उसे बिस्तर पर सुला कर वे उसकी जाँच कर ही रहे थे कि उसके हाथ-पैर ढीले पड़ गये । वह चीख पड़ी ।

’’हाय मेरा बेटा......!ऽ....ऽ...!’’.उसने नीरू की देह को अपनी छाती से लगा कर भींच लिया।


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