व्यथित बहुत हूं मैं इस जग से बांध दिया है मुझ को जबसे व्यथित बहुत हूं मैं इस जग से बांध दिया है मुझ को जबसे
कोई अल्हड़ हँसता रहता है। देखे मैंने हरदिल बस्ते ! कोई अल्हड़ हँसता रहता है। देखे मैंने हरदिल बस्ते !
द्वार बंद घर पर ही रहिए महामारी से लड़ते भी रहिए द्वार बंद घर पर ही रहिए महामारी से लड़ते भी रहिए
व्यथित विचलित जब हो मन तेरा, ह्रदय में हो रही उथल-पुथल व्यथित विचलित जब हो मन तेरा, ह्रदय में हो रही उथल-पुथल
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं, पर देती हूँ सबको अभयदान मैं। खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं, पर देती हूँ सबको अभयदान मैं।
पुरुष कठोर नहीं होते बस कठोरता का आवरण ओढ़ लेते हैं। अपना गम छिपाकर परिजनों को संबल और सुरक्षाकवच... पुरुष कठोर नहीं होते बस कठोरता का आवरण ओढ़ लेते हैं। अपना गम छिपाकर परिजनों को...