सहनशीलता की प्रतिमा है जो जिसे आज तुम पीड़ित करते हो थम जाओ वहीं, सहनशीलता की प्रतिमा है जो जिसे आज तुम पीड़ित करते हो थम जाओ वहीं,
अभी तक यह बेघर असहाय है, सामाजिक अव्यवस्था से पीड़ित और त्रस्त, अभी तक यह बेघर असहाय है, सामाजिक अव्यवस्था से पीड़ित और त्रस्त,
एक दवा भी है एक रक्षा कवच भी है हमारा ये एकाकीपन एक दवा भी है एक रक्षा कवच भी है हमारा ये एकाकीपन
यह कविता नारी का दर्द को आवाज़ देती है। यह कविता नारी का दर्द को आवाज़ देती है।
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं, पर देती हूँ सबको अभयदान मैं। खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं, पर देती हूँ सबको अभयदान मैं।
'पैसों के खातिर निर्धन,को न मिलती है शिक्षा, भूख से पीड़ित अनाथ बच्चे, दर-दर माँगते है भिक्षा।' दुनिय... 'पैसों के खातिर निर्धन,को न मिलती है शिक्षा, भूख से पीड़ित अनाथ बच्चे, दर-दर माँग...