मैं, नारी !
मैं, नारी !
मैं, धुरी के खंभे से बंधी निरीह
मैं, अनदेखी बेड़ियॉं से जकडी बेबस
मैं, अजनबी नज़रों से घायल पीड़ित
मैं, हालातों की सतायी गई अबला
मैं, परिवार की मुख्य पात्र मगर दरबदर
मैं, समुद्र सी विशाल हृदय मगर बेहाल
मैं, शिक्षित ,सुसंस्कृत नारी मगर बेड़ियाँ अदृश्य ।
