कुछ बारिशें
कुछ बारिशें
कुछ बारिशें बरसती नहीं
अमावस के चांद जैसी
कुछ खेलती है अठखेलियाँ
बादलों में छिप कर
कुछ लम्बी परछाइयों सी
नजर तो आती है
पर पकड़ नहीं आती।
कुछ बारिशें बरसती नहीं
आँखों से आंसू बन बह जाती है
रोज इन्तजार करती है
कुछ निर्दोष निगाहें
सपने देखती है पर
धुंधलके में खो जाते है वो
अक्सर कुछ बारिशें बरसती नहीं
डूबो जाती है भीगे मन को
पानी से नहीं कुछ भावों से
हावी होने नहीं देता
ये दिमाग मन और तन पर
भीग जाती हूँ अक्सर
इन बारिशों में दरख्तों के साये में।