मैं सीता बननना चाहती हूँ
मैं सीता बननना चाहती हूँ
रचनाकार सखी प्रतियोगिता - 3
सुनो
मर्यादा पुरूषोत्तम,
मैं सीता
बन्धक बन कर
लंका में ही रहना चाहती हूँ
क्यों कि रावण सा संयम
आज के मनुष्य में नहीं।
सुनो
मर्यादा पुरूषोत्तम,
मैं सीता बनकर ही सुरक्षित रहूँगी
इन हैवानों से।
नर पिचाश की तरह
घूरते है जो मुझे
हर गली चौराहे पे।
जब तुम साथ नहीं होते
तब सुरक्षित रहती हूँ
आज भी रावण के साये में।
सुनो
मर्यादा पुरूषोत्तम,
मैं बन्धक सीता ही भली
कम से कम
किसी धोबी के कहने पर
तुम मुझे जंगल में
छोड़ तो न दोगे।
सुनो
मर्यादा पुरूषोत्तम,
मैं सीता हूँ
तो तय है मेरी नियति भी।
नारी चरित्र के रक्षार्थ
आज भी मुझे
लंकेश की बन्धक रहना
उचित लगता है।
मुझे भी
सीता बना दो
निर्भया बन मरना नहीं चाहती।
सुनो
मर्यादा पुरूषोत्तम....
