बाक़ी निशाँ
बाक़ी निशाँ
वो रास्ते
जो तेरे साथ गुनगुनाते थे ,
अब पग में कंकर चुभाते है,
मैं उनमे सरगम के विग्रह ढूंढता हूँ।
शीतल करती हवा
अब गर्म है धूल उड़ाती है
मैं फिर भी नाराज नहीं होता हूँ।
बहता मीठा पानी
अब कुछ कुछ नमकीन हो चला है,
मुझे फिर भी उसे पीना होता है,पीता हूँ।
वो राते जो हमारी यादों के
सितारों से भर जाती थी
वो हमेशा उदास बादलों के पीछे छुप आती है
मैं उनके बीच से तारों को ढूंढता हूँ।
एक अलाव दिल में
अब सिर्फ राख का ढेर है,
उसे अब भी हटाते नही बनता
उसमे आग ढूंढता हूँ।
आज भी कुछ जुगनू
रात की वीरानी में मेरे गालों पर फिसलते हैं,
हाथों में आते ही तेजाब लगते है
मैं फिर भी उन्हें हाथों में लेता हूँ।
ख़ुद को
लिख आया था जहां
वहां से गुजरते डरता हूँ
तन्हा सफर पर अब मैं
अक्सर सिर्फ अखबार पढता हूँ।
गुजर जाएगा ये दौर जानता हूँ,
सिर्फ उसके बाकी निशां रखता हूँ।
