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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

पत्नी

पत्नी

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वो लड़ाई भी मजेदार होती है

जब पत्नी से टकरार होती है

जीत कर भी हारना पड़ता हैं,

पत्नी के आगे

क्या शक्ति,क्या बुद्धि


सबकी लाचारी बार बार होती है

ज़्यादा तीन पांच की तो

बेलन खाने की बात होती है

पत्नी की आरती हर रोज


सुबह और शाम होती है

सब खुशियां धरी रह जाती है

गर पत्नी हमसे नाराज होती है

पत्नी को ख़ुश रख साखी,


ख़ुदा खुद बखुद ख़ुश हो जायेगा

पत्नी ही ख़ुदा तक पहुंचाने वाली

पतवार होती है

तुलसीदासजी को भक्त बनाया


कासलिदासजी को महाकवि बनाया

पत्नी में ख़ुदा की जात होती है

ये धर्मपत्नी कहलाती है,


सुख दुख में हरदम ये साथ होती है

तुझे गर सीता सरीखी पत्नी चाहिए

अपने मे राम जैसी बात होनी चाहिए


अच्छे पति बनने पर ही साखी,

अच्छी पत्नी मिलने की बात होती है।


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