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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

"बरसात"

"बरसात"

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जब-जब होती है,धरा पर बरसात
मन कहता,कर कुछ नव शुरुआत
मन मे आते,नई उमंग के जज्बात
देवी बन देती,खुशियों की सौगात
वर्षा रानी की कुछ ऐसी करामात
इससे उगते,नव तरु पल्लव पात
वर्षा में नवसृजन करने की बात
इससे खिलता,मरु मन का बाग
वर्षा में पूनम चंद्र के वो ख़्यालात
दुःखी मन की मिटती,अमावस रात
जब-जब होती है,धरा पर बरसात
शोले बन जाते शबनम की बारात
बरसात ने किया सदा हमारा भला
पर इंसान निकला स्वार्थ की बला
जिसने इसे जीने की सिखाई कला
काट दिया,पारिस्थिकी तंत्र का गला
पारिस्थिकी बिगड़ने से बिगड़े हालात
इससे ऋतुओं की बिगड़ गई है,चाल
इस कारण कई सूखा,कई होती बाढ़
इन सबके ही पीछे इंसानों का हाथ
गर हम लोग ना सुधरे वक्त के साथ
एकदिन वर्षा कर देगी,हमें अनाथ
हमारे पूर्वजों से सीखे अच्छी बात
वर्षा स्वागत हेतु ब्रह्मभोज करते,साथ
ब्रह्मभोज में पूरे गांव का रहता,हाथ
इससे मिटता था,भेदभाव जांत-पांत
इस प्रेम को देख होती,अच्छी बरसात
सीखे संस्कार,पतझड़ मे आयेगी,बहार
प्रकृति से करते रहो,तुम तो संवाद
पेड़,पशु,पक्षी सबसे ही प्रेम करो,तात
छोड़ दुनियादारी,आओ नहाने बरसात
बचपन की आएगी याद,कितने थे,आजाद
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"



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