बेटी पढ़ाओ संग संस्कार जगाओं
बेटी पढ़ाओ संग संस्कार जगाओं
रीत बदलने एक बात बदलने
चला नया एक पथ पकड़ने
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ को तेज धार मैं देने
भेज दिया मैं बीबी को पढ़ने।।
दिन-रात मैं मेहनत करता
लगा घर-बार पर ध्यान भी देने
हर मुसीबत सदा खुद पर सहता
चिंता न देता बीबी को लेने।।
मेहनत करती लग्न से पढ़ती
लगी पीसीएस के वो फॉर्म भी भरने
सपने देखते हम मिलकर दोनों
लगे भविष्य बच्चो का हम सुधारने।।
वक्त की गोद में क्या छिपा था
जो परिणाम परीक्षा आया अपने ही हक में
एसडीएम बनते ही क्यों फिर उसके
सुर बी धीरे-धीरे लगे बदलने।।
कार्यालय में कुछ ज्यादा समय बिताती
मामला कुछ न आया समझ में
दूरियां बढ़ रही क्यूं धीरे-धीरे
हमारे रिश्ते बिखर रहे हर एक पल में।।
बदकिस्मती से वो दिन भी आया
पति का छोटा पद अब लगा उखरने
तलाक की भी अब आ गई नौबत
किस्मत गजब तरह से लगी बदलने।।
बहुत जरूरी बेटी पढ़ाना
पर संस्कार भी होंगे उनमे भरने
छोटा बड़ा कोई पद न होता
जरूरी पति प्रेम होता खुशहाल जीवन में।।