मजदूर
मजदूर
राहत कार्य में भी साथ निभाते
होता न उनके बिन निर्माण
हर इमारत में सहयोग है जिनका, उनकी कर्मठता को मेरा सलाम।।
इत्र-तत्र सर्वत्र मिलते
उनकी काम ही बने पहचान
सेवा को अपना धर्म मानते, मजदूरी करना उनका काम।।
राह पथ पर सो जाते है वो
कभी रैन बसेरा भी आता काम
मजदूर चौराहे पर संगठित होते, जहां मिल जाएं कुछ काम।।
भूखा-प्यासा भी सोना पड़ता
जिस दिन मिलता नही कोई काम
रोज खाना-कमाना पड़ता उनको, बस इसी का रखते ध्यान।।
पहाड़ चीर जो सुरंग बनाते
निर्माण कार्यों में भी करते काम
खेत की मज़दूरी भी दिन-रात है करते, करना मालिक की सेवा काम।।
संघर्ष से जो कभी न डरते
उनको मेरा सलाम
कर्म श्रम है मूल मंत्र बस, मेहनत से करते काम।।
कभी लगाई-भुजाई का काम न करते
राजनीति से न जिनको होता काम
सदा भौर में अपने घर से निकलते रोटी, कमाना दो जून की रोटी उनका काम।।
गूंगे-बहरे हो जाते वो
जिनका मालिक होता भगवान समान
उसकी बात न काटते कभी वो, उनके कर्म-धर्म सब यही है धाम।।
अपराधों में लिप्त न होते
चाहें मजदूरी से मिले बढ़े दाम
सीधा, सरल-सा उनका जीवन, रोज गुजर-बसर का करे इंतजाम।।
क्या ध्यान-ज्ञान से उनको वास्ता
उन्हें पढ़ाई-लिखाई का न रहता ध्यान
मान-सम्मान की चाह न जिनको, क्या ईर्ष्या-द्वेष से उनको काम।।
रहना-खाना सोना-जागना
सदा अपने परिवार का रखते ध्यान
मज़दूरी ही मुख्य लक्ष्य, उसी की प्रार्थना करें भगवान।।
काम ही पूजा काम ही ईश्वर
सपनों पर कसते लगाम
सही दिशा में बढ़ते हमेशा, जिनके मन-मंदिर में बसते राम।।