मैं तुझे हार कर मेरी ऐ दोस्त
मैं तुझे हार कर मेरी ऐ दोस्त
मैं तुझे हार कर मेरी ऐ दोस्त,
फिर कहीं दूर, बहुत दूर चला जाऊँगा,
जहाँ से छू न सके तुझको मेरे ख्वाब,
मेरी जान ऐ वफ़ा तेरी सासों से,
हवाएँ न महकती हो जहाँ,
मैं तुझसे दूर, बहुत दूर चला जाऊँगा।
आज फिर ज़िंदगी की तरह एक शाम ढले,
और एक सुर्ख उदासी मेरे सीने में डूबती जाए,
दर्द एक गीत हो, और साज़ ऐ दर्द दिल मेरा,
मेरी तन्हाई का अब कोई नहीं मेरे सिवा।
दिन में जब थक के चूर हो कर के,
रात फुटपाथ के सहारे हो,
पेट भर जाए एक फ़िक्र बहुत,
ग़म-ऐ-जहाँ की फ़िक्र कोई और करे,
और किस दर्द का हक़ है मुझ पर ?
दर्द एहसास है,
हम जैसे मुफलिसों के लिए,
एक अमानत है एक ऐसी ज़िम्मेदारी है,
जो निभानी है हमें और मुश्किलों की तरह,
ज़ुल्म है, बेकसी है, भूख है, बेकारी है।
दर्द, एक शहर है,
मायूस निगाहों की एक बस्ती है,
एक मूरत है यहाँ भीड़ में चौराहे पर,
हाथ पत्थर के हैं फौलाद की शमशीर लिए।
ज़िन्दगी ख़ाक है और मौत यहाँ सस्ती है,
चंद अफ़सुर्दा से अरमान थे मेरे दिल के,
जो तेरी नीमबाज़ आखों के नश्तर के तले,
हो कर लहू-लुहान जो आज तेरे होठों पे खिले।
जश्न है मेरे शहर में तेरी अंगड़ाई का,
जैसे हो एक मज़ाक-सा, मेरी तन्हाई का,
जैसे कोई फूल मुस्कुराता हो, मेरी कब्र की,
ख़ामोशी पर जैसे मुफ़लिस कोई,
देता हुआ दस्तक, दर-दर।
मेरे ख्वाबों का तसव्वुर है पैरहन तेरा,
आज खामोश निगाहों का जमघट है यहाँ,
मेरी आहों से सजा है यह तस्सवुर तेरा,
क़त्ल होने को चले आज यह सब दीवाने है।
बात सच यह मेरी कोई अब माने या न माने,
तामील हो ही गए सब ख्वाबगाह और मेहराब,
कुछ तो काम आ ही गयीं हड्डियाँ मेरी आखिर।
दर्द मंज़िल है एक आखिरी उम्मीद भी है,
मेरी हमराह तेरा साथ निभाने के लिए,
मैं मुसाफिर हूँ तुझे दिल से भुलाने के लिए।
मेरी मेहबूब, मेरी आशना, मेरी हमदम,
यह रात आज मुझ पे बहुत भारी है,
यह रात जिसके बाद, होगा न रौशनी का निशाँ।
ग़ैर मुमकिन है कि एक ऐसी ज़मीं,
ऐसा आसमान बन जो तुझसे दूर हो और,
फिर भी रहे मेरे क़रीब मेरी आँखों में,
बसी है तेरी खुशबू अब भी,
न कभी ख्वाब ख़त्म हो न कभी नींद खुले।