हर सिम्त फैली है यह धूप
हर सिम्त फैली है यह धूप
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तेरी आँखों को छू कर एक शोख हंसी,
खुशनुमा धूप सी बिखरी है।
हर सिम्त फैली है यह धूप मेरे आँगन में,
भर गया है मेरा आँचल जिस से।
भर गया है मेरा मन फिर एक अनजानी ख़ुशी से,
तेरी ज़ुल्फ़ों को छू कर इठलाती है हवा,
और यादों की महक आती है।