Rohit Agnihotri
Drama
राह तकती रहीं अपलक,
सांझ की कजरारी आँखें,
सुबह की रतनारी आखें।
राह तकती रहीं...
कितनी अपनी लग...
नासूर
मैं तुझे हार ...
हर सिम्त फैली...
अब सुबह होगी ...
राजनीतिज्ञ और...
किन्तु…. होता है हृदयविहीन सदा स्मरण रहे ! किन्तु…. होता है हृदयविहीन सदा स्मरण रहे !
यह मुआ मौसम है आफ़त सी, करूं मैं क्या यह मुआ मौसम है आफ़त सी, करूं मैं क्या
मित्र की आन, बान, शान के लिए जान क़ुर्बान करता। मित्र की आन, बान, शान के लिए जान क़ुर्बान करता।
बिन दरवाज़े बिन खिड़की के इस पिंजरे का क्या करूं, इन हथेलियों पर लिखें कल को मैं कैसे बिन दरवाज़े बिन खिड़की के इस पिंजरे का क्या करूं, इन हथेलियों पर लिखें कल को ...
दर्द का हर आलम छुपा लेते हैं, ग़म तो हैं लाख पर मुस्करा लेते हैं, दर्द का हर आलम छुपा लेते हैं, ग़म तो हैं लाख पर मुस्करा लेते हैं,
हर जन्म मेरे मन में, तेरी हसरत के निशाँ होंगे। सौ बार जन्म लेंगे….. हर जन्म मेरे मन में, तेरी हसरत के निशाँ होंगे। सौ बार जन्म लेंगे…..
मैं बहती धारा मुझे बांध नहीं कोई पाया, पूजते मुझे, अपने पाप मुझे समर्पित करते मैं बहती धारा मुझे बांध नहीं कोई पाया, पूजते मुझे, अपने पाप मुझे समर्पित करते
मार दूंगा या मर जाऊंगा लेकिन, जग एक को मरा आज देखेगा।। मार दूंगा या मर जाऊंगा लेकिन, जग एक को मरा आज देखेगा।।
सील बट्टे पर रोज़ पीसे रोज़ ही रगड़ा हो। सील बट्टे पर रोज़ पीसे रोज़ ही रगड़ा हो।
यहां ना जाने कितने रंग हैं जीवन के हर रंग में पानी कम है यहां ना जाने कितने रंग हैं जीवन के हर रंग में पानी कम है
मेरे प्यार को ढोंग तुमने कहा, बेवफाई तुम्हारी तलबगारी रही। मेरे प्यार को ढोंग तुमने कहा, बेवफाई तुम्हारी तलबगारी रही।
क़ामयाबी का नया सूरज उगाना है तुझे, उलझनों को छोड़ दे, बातें पुरानी भूल जा। क़ामयाबी का नया सूरज उगाना है तुझे, उलझनों को छोड़ दे, बातें पुरानी भूल जा।
भारत का सिर-झण्डा विश्व में, गर्व से ऊंचा उठाया है।। भारत का सिर-झण्डा विश्व में, गर्व से ऊंचा उठाया है।।
मैं कब तक संभालूँ तुमको यूँ ही अकेले साथी मेरे..? मैं कब तक संभालूँ तुमको यूँ ही अकेले साथी मेरे..?
चित्तौड़ भूमि के हर एक कण से, हमनें सुनी कहानी थी। चित्तौड़ भूमि के हर एक कण से, हमनें सुनी कहानी थी।
हो जय घोष हरदम हमारा, वंदे मातरम-वंदे मातरम।। हो जय घोष हरदम हमारा, वंदे मातरम-वंदे मातरम।।
चाहत रूह की क्या हैं जान बैठे, उसकी गलियों से यूं गुज़रे की अपना पता हम भूल बैठे, चाहत रूह की क्या हैं जान बैठे, उसकी गलियों से यूं गुज़रे की अपना पता हम भूल ब...
बेज़ुबान कठपुतलियाँ, बोलती बहुत हैं। बेज़ुबान कठपुतलियाँ, बोलती बहुत हैं।
गर छोड़ दे,फिझुल का पुरूष होने का दंभ मातृशक्ति की कद्र कर,बने हम सच मे नर। गर छोड़ दे,फिझुल का पुरूष होने का दंभ मातृशक्ति की कद्र कर,बने हम सच मे नर।
आते जब भी मेहमान दर पर तारीफ किए न रहे पाते पर आते जब भी मेहमान दर पर तारीफ किए न रहे पाते पर