चल उठ प्रण कर
चल उठ प्रण कर
चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर
मुसीबतों के बीच ठीक सीने पर वार कर
कब ना थी साथ तेरे यह मजबूरियां
जो खिलाफ है तेरे उनके खिलाफ ही यलगार कर
1. हो कितना भी गहरा दरिया फरेब का उतर कर पार कर
है मेहनत कम तेरी दो हाथों की तो भुजाओं को चार कर
शिकायत है कि किस्मत ने रखा है तुझे हाशिए पर
करके मन क्रुद्ध उस लकीर पर ही वार कर
चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर
2. हार जाना भले पर मत बैठना कभी हार कर
रुकना पड़े तो रुक आगे बढ़ने में दो कदम खुद को तैयार कर
हो मत निराश की गिर गया चलते हुए बीच रास्ते में
जिंदगी में गिरकर उठने का अनुभव भी स्वीकार
कर
चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर
3. कौन उठाता है तेरा फायदा, तू किसका जरा विचार कर
कितनों ने किया है कत्ले तेरे ऐतबार का,
तू जी रहा है कितनों का विश्वास मार कर
सब ने किया है गलत तेरे साथ,
पर तूने नही छोड़कर सिर्फ अपना नजरिया
खुद को दूसरों के नजरिए के एकसार कर
चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर प
4. चलता रह पथ पर अपने पर जरा कांटे निहार कर
सिर्फ प्रयोजित ना रह जाए जिंदगी व्यर्थ विहार भी कर
आएंगे कई गड्ढे तेरी रहगुजर में
करके करना पड़े प्रयास जितना कर के
मंजिल नाम अपने इस बार कर
चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर...!