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काश....तेरे कुछ ख्व़ाब

काश....तेरे कुछ ख्व़ाब

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काश....तेरे कुछ ख्व़ाब फूल बन जाते....

तो आज मेरी मज़ार यूँ सूनी ना होती.......

 

मेरी तनहाई का बेशक मलाल होता तुम्हें,

जो बेवफ़ाई तुमसे ना हुई होती,

माथा टेककर मुहब्बत भी कर जाते,

जो क़ब्र से मेरी सिसकियों की आवाज़ ना आती...

ना डर रहा खोने का तुम्हें...

ना पाने की कोई आस रही....

बस आवारगी मेरी रूह भी बदहवास रही...

एक तसल्ली बस यह रहती....

काश....तेरे कुछ ख्व़ाब फूल बन जाते....

तो आज मेरी मज़ार यूँ सूनी ना होती.......

 

ना मुझे ताजमहल की ख़्वाहिश थी,

ना किसी ख़ुदा का फकीर बनने की राह थी,

मैं बड़ी ज़िल्लत से गुज़रा,

तेरे बाज़ार में मेरी नीलामी के बाद, 

एक इत्मिनान की नींद तो सोया मैं,

कई रातों को तनहा जागने के बाद...

फिर भी तू आकर देख लेता ये आस ना होती....

काश....तेरे कुछ ख़्वाब फूल बन जाते....

तो आज मेरी मज़ार यूँ सूनी ना होती......

 


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