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Sapna K S

Classics

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Sapna K S

Classics

एक असमंजस प्रेम

एक असमंजस प्रेम

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एक असमंजस प्रेम..

हम अक्सर कई लोगो से बात करते हैं

जिनमें से कुछ लोंगो से हमें बाते करना अच्छा लगता हैं

कभी - कभी हमारे विचार कुछ लोंगो से मिलने लगते हैं तो

कभी किसी की शैतानियाँ, नादानियाँ हमको प्यारी हो जाती हैं..


धीरे - धीरे हमें उनकी आदत सी हो जाती हैं

फिर ना चाहकर भी हम उनसे बातें करने का एक मौका नहीं छोड़ते..

हर बार हम जिनसे बातें करते हैं उनमें फ्लर्टिंग नहीं होता

और ना ही हर किसीसे हमें प्रेम होता हैं

बस उनसे कुछ अपनापन हो जाता हैं


और फिर कभी - कभी तो लोंगो को हम

भाई - बहन, चाचा - मामा, भाभी जैसे रिश्तों के नामों में बाँधकर

अपने साथ उम्र भर रख लेने की चेष्टा करते हैं..

फिर कभी एक ऐसा शक्स भी हमें मिल जाता हैं

जिस से हमें घंटो बाते करने पर भी उबन महसूस नहीं होती


लगने लगता हैं कि जिस इंसान की तलाश थी

वो आखिर हमें मिल ही गया..

फिर प्रेम की एक ड़ोर होती हैं

जिसके दोंनो तरफ

दो जीव अपने आज से ज्यादा आने वाले कल के लिए जीते हैं..


कभी कोई शक्स ऐसा भी मिल जाता हैं

जिस से मिलने पर समाज को आपत्ति होती हैं

कभी उस शक्स की उम्र, कभी बैंक बैसेंस, कभी जाति

हमसे बहुत ही अलग होती है..

जिसके लिए हमें ना चाहकर भी दूरी बना लेनी पड़ती हैं

जब दूर होते हैं


तब अक्सर यहीं सोचते हैं के

वो कैसा होगा

कहाँ होगा

हमें याद तो करता होगा ना..

लेकिन वहाँ से कोई जवाब नहीं आता

और ना ही हम अपनी बैचेनी उसे समझा सकते हैं..

धीरे - धीरे हम चुप हो जाते हैं


फिर हमारी यहीं चुपी खामोशी बनकर

हमें सबसे अलग तनहा कर जाते हैं..

अब हमारे पास बस दो ही अॉप्शन होते हैं

या तो हम उसे भुल जाए

या फिर

उसे याद करते रह जाए


और इंसान की अक्सर फितरत ही होती हैं के

वो हमेशा दुसरा अॉप्शन ही चुनता हैं..

फिर क्या

बेवफा का लेबल उसके माथे टैग कर के

हम अपना नया रोना लगते हैं

लोगों से अच्छी सिंपथी मिल ही जाती हैं

और कुछ हमसे भी ज्यादा लेबलबाज होते हैं


वो आकर ऐसी बातें करते हैं यहां नुकसान हमारा नहीं

उससे दस गुना उनका हुआ हैं..

इन सब चक्करों में

दिल के दिल में ड़रके मारे दुबक कर बैठा प्रेम

इतना अपाहीज हो जाता है के

उसे अब बैसाकी भी बोझ लगने लगती हैं..


हर किसी के आहट से भी काँप जाता हैं

मन के किवाड़ से ऐसे झाँकने लगता है

जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी माँ के आँचल के

पिछे छिपकर किसी अपरिचय व्यक्ति को देख

दुबक - सा जाता हैं..


कुछ कहने के लिए शब्द ही नहीं होते हैं अब उसके पास

क्यूँकि,

सुलझा सुलझा सा जो रहता था कभी

अब असमंजस सा हो जाता है प्रेम...


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