STORYMIRROR

Sapna K S

Classics

4  

Sapna K S

Classics

कुछ नहीं हो...

कुछ नहीं हो...

1 min
388

दर्दों से जुड़ा मेरे जजबातों का समंदर,

दिल के तालाब में कहाँ सिमट कर रहेगा..


कुछ अपने ही रिश्ते थे इतने करीब,

के अब नजर हर रिश्तों से नजर चुरायेगा..


कहना और सुनना अब महज एक समौझते सा हैं,

खामोश रहकर ही हर बिखरा रंग उछाला जायेगा..


तुम रहो या ना रहो अब क्या फर्क पड़ता हैं

तुमको ही तुम्हारा कर्मा खुद अपनी औकात पर लायेगा..


मेरा कर्तव्य बस इतना हैं,

मुझे ही मेरी आँसुओं का कर्ज खुदसे खुशियों से हैं चुकाना ..


तुमसे क्या उम्मीद करूँ मैं,

तुम ना तो वो कांधा हो, और ना ही वो सीना......


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics