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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२३७;अक्रूर जी द्वारा भगवान् श्री कृष्ण की स्तुति

श्रीमद्भागवत -२३७;अक्रूर जी द्वारा भगवान् श्री कृष्ण की स्तुति

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अक्रूर जी कहें कि आप कारण हैं 

प्रकृति आदि समस्त कारणों के 

नमस्कार करता हूँ मैं 

हाथ जोड़ चरणों में आपके


साधु, योगी, अंतर्यामी के रूप में 

समस्त भूत, परमात्मा के रूप में 

सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि इष्टदेव की तरह 

आपकी ही उपासना करते


बड़े बड़े यज्ञ करते हैं 

कर्मकांडी ब्राह्मण बहुत से 

और उपासना करते हैं वे 

आपकी उन्ही यज्ञों से


बहुत से ज्ञानी कर्मों का त्याग कर 

आप में स्थित हो जाते 

और बहुत से वैष्णवजन, आपके 

अनेक स्वरूपों की पूजा करते


पर्वत से जैसे नदियां निकलकर 

घूमती घामती प्रवेश करें समुन्द्र में 

वैसे ही देर सवेर उपासना मार्ग सभी 

पहुँच जाते आप के ही धाम में


प्रभु, तीन गुण आपकी प्रकृति के 

सत्व, रज और तम नाम के 

ब्रह्मा से लेकर स्थावरपर्यंत तक 

चराचर जीव हैं प्राकृत ये


आप सर्वस्वरूप होने पर भी 

प्रकृति के गुणों से लिप्त नहीं 

आपकी दृष्टि निर्लिप्त है 

अज्ञानमूलक ये गुणों वाली सृष्टि


देवता, मनुष्य,पशु, पक्षी आदि 

समस्त योनियों से व्याप्त सृष्टि ये 

परन्तु आप सर्वथा अलग इससे 

आपको नमस्कार करूँ मैं इसलिए


अग्नि मुख, पृथ्वी चरण आपका 

स्वर्ग सिर है, कान हैं दिशाएं 

देवेन्द्रगण भुजाएं, समुन्द्र कोख है 

और प्राणशक्ति वायु ये


वृक्ष और औषधियां रोम हैं 

मेघ तो केश हैं सिर के 

अस्थिसमूह और नख ही है 

ये सब जो पर्वत, आपके


दिन और रात हैं आपकी 

पलकों का खुलना और भींचना 

प्रजापति जननेन्द्रियां आपकी 

और वृष्टि ही वीर्य आपका


आपके मनोमय पुरुष रूप में 

लोक जीव जंतुओं से भरे हुए 

और जो उनके लोकपाल हैं 

सब हैं कल्पित किये गए


आप जो रूप धरें पृथ्वी पर 

लोगों के शोक मोह को धो देते 

और फिर सब बड़े आनंद से 

यश का गान करें आपके


वेदों,ऋषियों, औषधियों आदि की 

रक्षा और दीक्षा के लिए 

मत्स्यरूप धारण किया आपने 

नमस्कार करता हूँ मैं उसे


हयग्रीव अवतार ग्रहण किया 

मधु कैटभ को मारने के लिए 

नमस्कार करता हूँ मैं 

उस रूप को भी आपके


कच्छप रूप धारण करके 

मन्द्राचल धारण किया अपने 

उस कच्छप रूप को भी 

नमस्कार करता हूँ आपके


वराहरूप स्वीकार किया आपने 

पृथ्वी का उद्धार करने को 

नमस्कार करूँ नरसिंह रूप को 

प्रह्लाद का भय मिटाने वाले जो


तीनों लोक नाप लिए थे 

अपने पगों से ही आपने 

नमस्कार करता हूँ मैं 

उस वामन रूप को आपके


घमंडी क्षत्रियों को मारने के लिए 

ग्रहण किया रूप परशुराम का 

उसी रूप को हाथ जोड़कर 

मैं नमस्कार हूँ करता


राम के रूप में अवतार ग्रहण किया 

मारने के लिए रावण को 

उन रामचन्द्र के रूप में 

नमस्कार करूं मैं आपको


वैष्णवजन और यदुवंशियों का 

पालन पोषण करने के लिए 

वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध

 इस चतुर्व्यूह के रूप में प्रकट हुए


दैत्यों, दानवों को मोहित करने को 

अहिंसामार्ग प्रवर्तक बुद्ध का 

रूप ग्रहण करेंगे आप ही 

उस रूप को नमस्कार मैं करता


क्षत्रिय जब मलेच्छप्राय हो जायेंगे 

तब उनका नाश करने को 

कलिक के रूप में अवतीर्ण होंगे 

नमस्कार करूं इस रूप में आपको


भगवान्, सभी के सभी जीव ये 

माया से मोहित हो रहे आपकी 

‘ ये मैं हूँ, और यह मेरा है ‘

इस दुराग्रह में फँस रहे सभी


कर्म के मार्गों में भटक रहे हैं 

उसी प्रकार से ही मैं भी 

देह गेह, पति पुत्र आदि को सत्य समझ 

भटक रहा मोह में उनके ही


मेरी मूर्खता तो देखिये प्रभु 

नित्य समझ लिया अनित्य वस्तुओं को 

अनात्मा को आत्मा समझा और 

सुख समझ लिया है दुःख को


इस उलटी बुद्धि की कोई सीमा नहीं 

माया में छिपे रहने से 

सुख की आशा में भटक रहा हूँ 

आपको छोड़कर अन्य विषयों में


इस प्रकार भटकता हुआ मैं 

चरणकमलों में पहुंचा हूँ आपके 

आपका कृपाप्रसाद मानूँ इसे 

दुर्लभ है जो दूसरों के लिए


मुक्त होने का समय है आता 

जब जीव का इस संसार से 

तब सत्पुरुषों की उपासना से 

चित्तवृत्ति जगती है आपमें


आपकी शक्तियां अनंत हैं 

ब्रह्म हैं स्वयं आप ही 

आपही वासुदेव, आपही संकर्षण 

आप प्रद्युम्न और अनिरुद्ध भी


नमस्कार करूँ बार बार मैं 

और स्तुति करूँ आपकी 

प्रभु आप रक्षा कीजिये 

भक्त जान मुझ शरणागत की






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