इच्छा
इच्छा
पैदा हुआ दूध की इच्छा
रोकर माँगने लगा मैं माँ से
तृप्त हुआ घंटे के लिए बस
ऐसे ही बीत गए छः महीने ।
इच्छा अब कुछ खाने की हुई
मीठा मीठा ज़्यादा भाए
जीभ नमक का स्वाद भी चखे
दो दांत आगे के आए ।
दो साल में दांतों से भरा मुँह
खाना अब चबा चबा के खा रहा
इच्छा अब चटपटा खाने की
दूध अब थोड़ा कम ही भा रहा ।
खेल कूद में अब मन ज़्यादा लगे
स्कूल के लिए तैयार है होना
गुरु पढ़ा रहे विद्या हमको
इच्छा ना हमारी बसता ढ़ोना ।
इच्छा पूरा दिन खेलते रहें
ना पढ़ना हो ना हो सोना
पाँच साल बीते ऐसे ही
कभी हसीं कभी रोना धोना ।
पढ़ना एक मजबूरी सी थी
अब इच्छा प्रथम आऊँ क्लास में
दुनिया की दौड़ में लग गया मैं
और पहुँच गया दसवीं में ।
p>तीन साल अब बहुत पढ़ाई
स्कूल भी और ट्यूशन भी
डाक्टरी में प्रवेश पा लिया
माता पिता की यही इच्छा थी ।
दस साल इसी में लग गए
डाक्टर बन आया मैं घर में
इच्छा अब कि शादी हो मेरी
हस्पताल बनाऊँ बग़ल में ।
शादी हो गयी, हस्पताल चल पड़ा
धन सम्पत्ति बहुत आ गयी
बच्चे हो गए, पढ़ लिख भी गए
इच्छा अब कर दूँ उनकी शादी ।
ये भी सब हो जाएगा और
उनके भी बच्चे हो जाएँगे
समय बड़ी तेज़ी से भाग रहा
दिन बुढ़ापे के आएँगे ।
अब इच्छा होगी कि स्वस्थ रहूँ मैं
कहीं कोई बीमारी ना घेर ले
बच्चों पर बोझ ना बनना चाहता
कोई अपना मुझसे मुँह ना मोड़ ले ।
इच्छाएँ ख़त्म ना हों कभी
एक ख़त्म दूजी तैयार है
तृप्त कभी ना हो चंचल मन
जीवन का ऐसा ही व्यवहार है ।