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साग़र साहित्य

Inspirational

5.0  

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हाँ हम भी होली मनाते हैं..

हाँ हम भी होली मनाते हैं..

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हाँ हम भी होली मनाते हैं.. 

रिश्तों को रिश्तों से मिलाते हैं.. 

गालों पर ग़ुलाल तो नहीं, 

पर चेहरे पर खुशियां छलकाते हैं. 

साहब हम रेल चालक हैं न, 

आप होली मनाते हो हम ख़ुश हो जाते हैं... 


देखते हैं जब दो रिश्तो को, 

मुद्द्तों.. बाद मिलते हुए.. 

दो रिश्तों को फिर से, 

पतझड़ के बाद खिलते हुए.. 

हम भी उसे देख फुले न समाते हैं.. 

साहब हम रेल चालक हैं न, 

आप होली मनाते हो हम ख़ुश हो जाते हैं... 


मैं देखता हूँ खिड़की से लोग उल्लास में हैं, 

लाल,सफ़ेद,पीला,नीला अनेकों लिबास में हैं..

सब अपने घर पहुंचने के लिए बेताब हैं.. 

हम समझ नहीं पाते हक़ीक़त है या ख़्वाब है.. 

हमें गर्व है इतने लोगों का अरमान पुरा करते हैं.. 

कई रिश्तों की तो हम इम्तहान पुरा करते हैं.. 

पर कभी-कभी घर जाने के लिए हम भी रो जाते हैं..

साहब हम रेल चालक हैं न, 

आप होली मनाते हो हम ख़ुश हो जाते हैं... 


कल रात माँ कह रही थी होली में घर आओ..

सभी लोग आये हुए हैं.. 

वीडियो कॉल कर के देखो सब को, 

सब रंग-ग़ुलाल लगाए हुए हैं.. 

हम तो वीडियो कॉल पर हीं मानो घर पहुंच जाते हैं.

साहब हम रेल चालक हैं न...

आप होली मनाते हो हम ख़ुश हो जाते हैं... 


क्या हुआ जो एक बेटा... 

इस बार होली में घर नहीं गया.

हजारों सपनों को जो घर पहुँचाना होता है.. 

हजारों रिश्तों को मिलाना होता है... 

अपना कर्तव्य निभाना होता है.. 

रंग-ग़ुलाल के बदले में आप से दुआएं पाते हैं... 

 साहब हम रेल चालक हैं न, 

आप होली मनाते हो हम ख़ुश हो जाते हैं... 


माँ की हाथों का खाना ही खाना है न, 

बाद में जा के खा लेंगे... 

अपनों से रंग लगवाना है न... 

बाद में जा के लगवा लेंगे.... 

दोस्त लोग थोड़ा चिलायेंगे .... 

बड़े भाई साहब थोड़ा गुस्सायेंगे ... 

पापा की बातें सुनेंगे....

दीदी से थोड़ा पिटायेंगे.... 

हम जानते हैं छुटकी हमसे रूठेगी.. 

छोटा भाई भी हमसे बात नहीं करेगा.. 

प्रियतमा हमसे नाराज रहेगी, 

पगली अकेले में आँशु गिराएगी.. 

पर सब के लिए कपड़ा और.. 

ढ़ेर सारा मिठाई ले जायेंगे.. 

झूठ -सच की बातें करके.. 

सबको फिर से मनायेगे... 

ये सोच के फिर हम धीरे से सो जाते हैं.. 

साहब हम रेल चालक हैं न, 

आप होली मनाते हो हम ख़ुश हो जाते हैं... 

          


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