कविता
कविता


अर्से से
एक सवाल तुम्हारे लिए रखा है
मौन-से हो
शायद.
उत्तर की खोज मे लगे हो !
परंतु सवाल तो बंधक ही है
तुम्हारे उत्तर मे
तुम्हारे समक्ष
उत्तर किस सांचे मे ढला होगा
कैसा होगा अनिशित है
परंतु यह निश्चित है
उस सवाल को मोक्ष
अवश्य मिल जाएगा
जो घुट रहा है
सिसक रहा है
तुम्हारे मन मे
तुम्हारे मस्तिष्क
परंतु मैं एक बात कहूँ
जो तुम्हारे लिए
सवाल भी रहेगा
और मेरा उत्तर भी
जो पूरा सच भी.होगा
और.मेरा.भ्रम भी.दूर
जो मुझ मे
तुम्हारे प्रति कुछ रचा-बसा था !
अपने चेहरे पर
मेरी इस बात से सवाल मत दर्शाओं
आश्वस्त रहो
मैं तुमहारी तरह समय नहीं लूँगा
ना ही अपनी.भांति
तुमहे व्यथित करूँगा
बस मनन करना
मुझ -सा क्यूँ नहीं था तुम मे
एक विश्वाशस
एक समर्पण
और सबसे अहम
मुझ- सी चाहत !