कविता
कविता
जब भी स्मृतियों में आऊ, मुझे सुनना मत कुछ पढ़ लेना
हर कवि की प्रेम कविताओं में हूँ बस मर्म वो समझ लेना !
प्रेम मर्यादित, अपरिभाषित,प्रेम सागर-सा ,पर्वत-सा भी
प्रेम की पीड़ा प्रेम ही जाने प्रेम एक विश्वास समझ लेना !
दूरिया भूगोल में है मन तो कहें तेरे मेरे प्रीत की कथा
रोम-रोम देह मे तुम, रचे-बसे एक एहसास की तरह !
व्यक्त क्या करूँ या करूँ कुछ अपने प्रेम का नामकरण
अंतस प्रेम प्रिय मेरा ,हो तुम मेरी सांस, अरदास की तरह !.

