कविता
कविता
विश्वास नहीं
पीड़ा बहुत है
ह्रदय में मेरे
तुम्हारी स्मृतियों की
निर्जल पलके देख यूँ
दोष ना दो
सुनो, फिर सागर को
तुम क्या कहोगी
जिसके भीतर
कई सैलाब दफ़न है !
विश्वास नहीं
पीड़ा बहुत है
ह्रदय में मेरे
तुम्हारी स्मृतियों की
निर्जल पलके देख यूँ
दोष ना दो
सुनो, फिर सागर को
तुम क्या कहोगी
जिसके भीतर
कई सैलाब दफ़न है !