इस समय के वेग में
इस समय के वेग में
इस समय के वेग में, तुमको प्रिये हम हार बैठे।
चांद अम्बर खोजता था, चांदनी थी गुम कहीं।
उस अमावस रात की पहली किरण थी गुम कहीं
कौन उत्तर ढूंढते हम, प्रश्न पर थे तुम कहीं।
सांझ को क्यों भोर समझा, क्यों निशा के पार बैठे।
कौन बंधन, कौन दुविधा, पथ तुम्हारा रोकती थी।
सत्य मुखरित बोलने को, कौन नियति रोकती थी
कौन साँकल खुल सकी ना, कौन चौखट रोकती थी।
अर्थ को क्यों प्रेम समझा, प्रेम से क्यों हार बैठे।
