ज़िंदा रहने की कोशिश में
ज़िंदा रहने की कोशिश में
अरमानों के बोझ बड़े हैं , और साँसों के सिक्के कम हैं ,
ज़िंदा रहने की कोशिश में, हम तुम जीते कितना कम हैं।
कितना कम दिन का उजियारा देखा, कितना बाती ने तेल पिया।
हमने छत रोटी की खातिर, अपने सपनों का मोल दिया।
इन हाथों के छाले देखो ,ये इस जीवन का सत दरपन है।
बचपन की छाती पर तुमने, अपने सपनों के भवन बनाये।
कोई नहीं कि जिसने भी, खुशियों के छोटे दीप जलाये।
सबने चाहा सब पा लेना, तीनों लोक और चार दिशाएं।
अब सबकी आंखों में पढ़ लो, कितना बंजर सूनापन है।
ये जो हम-तुम देख रहे हैं , जाने कौन जमाना है।
इक-दूजे से कटे हुए, ये इस जीवन का जुर्माना है।
सब मुस्कानें झूठी हैं, अब जाकर ये जाना है।
इस जीवन के उलझे आखर, अनपढ़ कितना मेरा मन है।
